कानून को हाथों में लेना चिंताजनक है, चाहे वो भारत हो या फिर फ्रांस: मौलाना अरशद मदनी

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It is worrying to take the law into your hands, whether it is India or France

मौलाना अरशद मदनी

नई दिल्ली, 6 नवंबर (आईएएनएस)। फ्रांस एक ऐसा देश है, जिसने वर्षों तक मोरक्को, ट्यूनीशिया और अल्जीरिया जैसे मुस्लिम देशों पर शासन किया। कई मुसलमान अपनी आजीविका कमाने के लिए फ्रांस भी गए हैं और देश के वैध नागरिक बनने के लिए वहां बस गए हैं।


इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के मद्देनजर भी कई मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग फ्रांस गए और वहां बस गए, क्योंकि बहुत से लोग अपने देशों में आने वाली कठिनाइयों के कारण यूरोप और अमेरिका चले गए।

इन लोगों के पास विशेष रूप से यूरोप में कमोबेश यूरोपीय लोगों से अधिक या कम अधिकार हैं और अगर उनके पास अभी समान अधिकार नहीं है, तो वे कुछ समय बाद इन्हें प्राप्त कर लेंगे।

वहां की सरकारों ने उन्हें स्वीकार कर लिया और उन्हें वैसी ही सुविधाएं मुहैया कराईं जैसी यूरोपवासियों के पास हैं। प्रवासियों में से कई ने अपने शिल्प (क्राफ्ट) में कड़ी मेहनत की और धीरे-धीरे बड़ी सफलता हासिल की, जिससे लोगों के एक वर्ग में ईष्र्या पैदा हुई, जिससे उनके बीच एक सांप्रदायिक मानसिकता पैदा हुई।


यह घटना कमोबेश हर जगह देखी जाती है। कुछ लोग ईष्र्या करते हैं, जब वे देखते हैं कि कल के अजनबी या अश्वेत लोग आगे बढ़ रहे हैं और प्रगति कर रहे हैं। यह चंद ईष्यार्लु लोगों का तबका है, जो मस्जिदों को ध्वस्त कर रहा है, उन्हें आग लगा रहा है और निर्दोष उपासकों को मार रहा है।

यह ध्यान देने योग्य है कि इस समय फ्रांस में जो कुछ हो रहा है, उसके दो पहलू हैं : एक सरकार का पक्ष है, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब भाषा और कलम की असीमित स्वतंत्रता है, जो पुरुष, महिलाओं, बुजुर्गों और पूर्वजों के सम्मान और गरिमा को नष्ट करने की अनुमति देती है। यह स्वतंत्रता किसी को भी दुनिया के किसी भी विशुद्ध (पवित्र) व्यक्ति के कार्टून बनाने की अनुमति देती है।

इसके अलावा, यह अधिक आश्चर्य की बात है कि भारत जैसा देश अभिव्यक्ति की समान स्वतंत्रता का समर्थन करता है, बिना यह समझे कि अगर यह भारत जैसे विभिन्न धर्मों वाले देश में प्रबल होता है, तो यह शांति और सद्भाव को प्रभावित कर सकता है। सरकार इसके बुरे परिणामों पर विचार किए बिना भाषण की असीमित स्वतंत्रता का समर्थन करती है, भले ही देश की कुछ अदालतों ने कुछ पक्षपाती मीडिया घरानों को किसी विशेष धर्म को लक्षित करने की असीमित स्वतंत्रता का समर्थन करने के लिए फटकार लगाई हो।

जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से इस संबंध में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। यह उम्मीद की जाती है कि अदालत का आदेश बोलने की असीमित स्वतंत्रता के खिलाफ होगा, जिसके बाद किसी धर्म के अनुयायियों को चोट पहुंचाने की प्रक्रिया को कानूनी रूप से रोक दिया जाएगा।

सिक्के का दूसरा पहलू चाकू के हमले हैं, जो फ्रांस और दुनिया के अन्य देशों में एक के बाद एक हो रहे हैं, जिनमें अपराधी कम और निर्दोष पुरुष एवं महिलाएं अधिक मर रहे हैं।

क्या किसी को देश के कानून को अपने हाथों में लेने की अनुमति दी जा सकती है? और क्या कुछ लापरवाह मुसलमानों द्वारा कानून को अपने हाथों में लेना दुनिया के ईसाई देशों में रहने वाले लाखों मुसलमानों के लिए अच्छा हो सकता है?

अगर इस तरह की घटनाओं के बाद, इन देशों में बढ़ रहे सांप्रदायिक संगठन मुस्लिम अल्पसंख्यक के खिलाफ सक्रिय हो जाते हैं, तो इन देशों में रहने वाले लाखों मुसलमानों और उनके बच्चों का क्या होगा?

फ्रांस में मुस्लिम आबादी लगभग 57 लाख (करीब नौ प्रतिशत) है, जबकि जर्मनी में 50 (लगभग छह प्रतिशत), ब्रिटेन में 41 लाख (लगभग 6.3 प्रतिशत), स्वीडन में 80 लाख (करीब 8.1 प्रतिशत), ऑस्ट्रिया में 70 लाख (लगभग आठ प्रतिशत), इटली में 29 लाख (लगभग पांच प्रतिशत), नीदरलैंड में 80 लाख (लगभग 5.1 प्रतिशत) है। (स्रोत: विकिपीडिया)

अब फिर से सोचें, अगर कुछ नाराज मुसलमान कानून तोड़ते हैं और वहां की सांप्रदायिक ताकतें ताकत हासिल करती हैं और पर्दे के पीछे से सरकारों का संरक्षण पाती हैं, तो पूरे यूरोप में फैले मुसलमानों की आबादी का भविष्य क्या होगा?

मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आपको किसी शिक्षक या कंपनी की घृणित विचारधारा के खिलाफ विरोध नहीं करना चाहिए, लेकिन कानून को तोड़ना, अशांति फैलाना या लोगों को मारना इन देशों में इस्लाम की सच्ची तस्वीर का प्रतिनिधित्व नहीं करता है और न ही इससे वहां रहने वाले लाखों मुसलमानों का भविष्य शांति से सुरक्षित है।

मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि हम 50 साल से अपने देश में इसी तरह की राजनीति झेल रहे हैं। भारत में हिंदू गायों की पूजा करते हैं। मगर गाय की हत्या के आरोप में यहां लोग कानून अपने हाथों में लेते हैं और मुस्लिमों को मार दिया जाता है।

अगर हम यहां कानून को अपने हाथ में लेने का विरोध करते हैं, तो हम फ्रांस में इसका विरोध क्यों नहीं करेंगे? मुझे लगता है कि जिस तरह से आज दुनिया भर के मुसलमान फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, यह बहुत अच्छा होता कि वे पहले भी वहां बोलने की असीमित स्वतंत्रता के खिलाफ खड़े होते।

(लेखक जमीयत उलेमा-ए-हिंद, नई दिल्ली के अध्यक्ष हैं)

–आईएएनएस

एकेके/आरएचए

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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