नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह नागरिकता संशोधन कानून, 2019 को लेकर दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुए विरोध प्रदर्शन पर मंगलवार यानी 17 दिसंबर को सुनवाई करेगा। प्रधान न्यायाधीश एस. ए बोबड़े ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं देगा। उन्होंने कहा कि कोर्ट यह भी नहीं कह रहा है कि छात्र जिम्मेदार हैं या पुलिस निर्दोष है।
कोर्ट का मानना है कि छात्र होने के नाते, वे कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर कोई हिंसक प्रदर्शन नहीं होगा, तभी कोर्ट मामले पर मंगलवार को सुनवाई करेगा।
प्रधान न्यायाधीश ने वकीलों से कहा, “सही क्या है हमें पता है.. यह क्या है? सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट किया जा रहा है। हम इस पर शांति से निर्णय लेंगे।”
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पहले शांति सुनिश्चित होनी चाहिए और उसके बाद ही नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के खिलाफ दक्षिणी दिल्ली के जामिया क्षेत्र में हिंसक विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की कथित बर्बरता मामले पर सुनवाई होगी। प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने कहा, “पहले हम वहां शांति चाहते हैं और अगर आप सड़क पर उतरना चाहते हैं तो फिर उस परिदृश्य में हमारे पास न आएं।”
जामिया में छात्रों के खिलाफ पुलिस की हिंसा का आरोप लगाते हुए वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और कॉलिन गोंसाल्वेस ने अदालत के सामने मामले को रखा। प्रधान न्यायाधीश ने वकीलों से कहा कि छात्र यह नहीं कह सकते कि उन्हें कानून और व्यवस्था भंग करने का अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने अपनी चेतावनी दोहराई कि अगर विरोध प्रदर्शन, हिंसा और सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट किया जाना जारी रहा तो “हम सुनवाई नहीं करेंगे।”
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में छात्रों के खिलाफ हिंसा से संबंधित मामले को देखने पर और सीएए को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुए हंगामे पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की।