सियासत की बात हो और चाणक्य का जिक्र न हो तो बेमानी है। इतिहास ‘चाणक्य’ की व्याख्या एक ऐसे उद्भट राजनीतिज्ञ के तौर पर करता है जिसने अपनी अचूक रणनीति की बदौलत साधारण से चंद्रगुप्त मौर्य को मगध साम्राज्य का अधिपति बना दिया था। तब से चाणक्य सिर्फ एक नाम नहीं रह गए, बल्कि एक उपमान बन गए और आज की राजनीति में भी पाए जाते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि आज चाणक्य बनने की सबसे बड़ी योग्यता पार्टी विशेष को छल-बल से चुनाव जिताने तक सीमित रह गयी है। बहरहाल, समकालीन सियासत की बात करें तो हर पार्टी के पास कम-से-कम एक निजी चाणक्य जरूर हैं। जिनके पास नहीं हैं, वो प्रशांत किशोर जैसों को आउटसोर्स कर रहे हैं।
प्रशांत किशोर से याद आया कि वह अब जदयू में शामिल हो गए हैं। 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दिलाकर नीतीश कुमार को लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाने में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। इस वजह से पीके नीतीश कुमार के प्रिय भी हो गए और जदयू में विधिवत शामिल भी कर लिए गए। पीके के जदयू में शामिल होते ही मीडिया ने उन्हें नीतीश का सियासी वारिस घोषित कर दिया था। लेकिन, कुछ ही महीनों में पीके को जदयू में दरकिनार कर दिया गया है। पार्टियों के लिए चुनाव से जुड़ी हर महीन रणनीति तैयार करने वाले पीके आज अपनी ही पार्टी में सियासत का ककहरा सीखते नजर आ रहे हैं।
दरअसल, लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी जदयू की ओर से प्रशांत किशोर की सक्रियता कम दिखी तो अटकलों का बाजार गर्म होने लगा। इसे देखते हुए पीके ने ट्वीट कर सफाई दी, “JDU की ओर से चुनाव-प्रचार एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी पार्टी के वरीय एवं अनुभवी नेता श्री RCP सिंह जी के मजबूत कंधों पर है। मेरे राजनीति के इस शुरुआती दौर में मेरी भूमिका सीखने और सहयोग की है।”
बिहार में NDA माननीय मोदी जी एवं नीतीश जी के नेतृत्व में मजबूती से चुनाव लड़ रहा है।
JDU की ओर से चुनाव-प्रचार एवं प्रबंधन की जिम्मेदारी पार्टी के वरीय एवं अनुभवी नेता श्री RCP सिंह जी के मजबूत कंधों पर है।
मेरे राजनीति के इस शुरुआती दौर में मेरी भूमिका सीखने और सहयोग की है।
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) March 29, 2019
पीके ने इस ट्वीट में एक नेता का नाम लिया। आरसीपी सिंह। सोशल मीडिया पर चर्चा शुरू हो गयी कि आखिर कौन हैं आरसीपी सिंह, जिनसे प्रशांत किशोर सीख रहे हैं? तो आइये हम आपको बताते हैं आरसीपी सिंह के बारे में…
नीतीश के खासमखास हैं आरसीपी सिंह
आरसीपी सिंह का पूरा नाम रामचंद्र प्रसाद सिंह है। आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के मित्र, राजनीतिक रणनीतिकार और सियासी सलाहकार हैं। माना जाता है कि जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखने वाले आरसीपी सिंह की सलाह के बिना नीतीश कुमार कोई फैसला नहीं लेते हैं। पार्टी के लिए चुनावों में रणनीति तय करना, प्रदेश की अफसरशाही को कंट्रोल करना, सरकार की नीतियां बनाना और उनको लागू करने जैसे सभी कामों का जिम्मा आरसीपी सिंह के कंधों पर है। इसलिए इन्हें नीतीश कुमार का ‘दाहिना हाथ’ या ‘जदयू का चाणक्य’ जैसे नामों से जाना जाता है।
आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के मुस्तफापुर के रहने वाले हैं। 6 जुलाई 1958 को सुखदेव नारायण सिंह और दुख लालो देवी के घर आरसीपी सिंह का जन्म हुआ।आरसीपी सिंह, अवधिया कुर्मी जाति से आते हैं। जाति की बात करना यहां इसलिए जरूरी है कि यूपी-बिहार की राजनीति अभी भी काफी हद तक जाति से ही तय होती है। रामचंद्र की शुरुआती पढ़ाई नालंदा में ही हुई। फिर पटना यूनिवर्सिटी से इतिहास से ग्रेजुएशन किया। इसी दौरान 21 मई सन 1982 को गिरिजा देवी से शादी हो गई।
गृहस्थी का बोझ बढ़ने के बाद भी आरसीपी सिंह ने पढ़ाई-लिखाई जारी रखी। जेएनयू से एक्सटर्नल अफेयर स्टडी में मास्टर्स करने के बाद 1984 में सिविल सर्विस ज्वाइन की। भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए उन्होंने यूपी कैडर को चुना और उत्तर प्रदेश सरकार के शासन में साल 1997 तक काम किया। 1993 से 97 तक कलेक्टर और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट रहे। इस बीच रामपुर, बाराबंकी, हमीरपुर औऱ फतेहपुर में उनका ट्रांसफर होता रहा।
नीतीश कुमार से मुलाकात और पॉलिटिक्स में एंट्री
सन 1998-99 में केंद्र में NDA की सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री। उनकी कैबिनेट में नीतीश कुमार कभी रेल, कभी ट्रांसपोर्ट तो कभी कृषि मंत्री बने। जब नीतीश मंत्री थे तो रामचंद्र उनके पर्सनल सेक्रेट्री हुआ करते थे। उसी दौरान रामचंद्र और नीतीश करीब आए। दोनों ने एकदूसरे को बखूबी समझा और फिर दोनों के बीच एक अटूट रिश्ता कायम हो गया।
साल 2005 में बिहार की कुर्सी संभालने के बाद नीतीश ने रामचंद्र सिंह को बिहार का प्रधान सचिव नियुक्त किया। वह मई 2010 तक इस पद पर बने रहे। फिर नीतीश के कहने पर वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) लेकर राजनीति की राह पकड़ ली। वे बिहार से जेडीयू कोटे से राज्यसभा सांसद बन गए और नीतीश के खासमखास बनकर चुनाव, सरकार और ब्यूरोक्रेसी सब संभालते हैं। कहते हैं इनको नीतीश के साथ वैसे ही देखा जाता है जैसे इंदिरा गांधी के साथ आरके धवन को देखा जाता था।
कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ आरसीपी सिंह सफल पिता भी हैं। सिंह की दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी लिपि सिंह ने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए सिविल सर्विस ज्वाइन किया और 2015 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं। वहीं छोटी बेटी लता सिंह ने वकालत में अपना करियर बनाया है।
रामचंद्र सिंह के बारे में कहा जाता है कि उनका रहन सहन बहुत सीधा-सादा है। मीडिया की चमक-दमक से दूर रहते हैं। सांसद बनने के लिए दायर एफिडेविट में उनकी कुल चल-अचल संपत्ति दो करोड़ 38 लाख रुपए बताई गयी है। आरसीपी सिंह भले ही बेहद लो प्रोफाइल मेन्टेन करते हैं, लेकिन ब्यूरोक्रेसी और पॉलिटिक्स के दांव-पेच खूब समझते हैं।