झारखंड के रहने वाले 83 साल के ‘वाटरमैन’ सिमोन उरांव ने पर्यावरण संरक्षण के लिए खुद को समर्पित कर दिया। झारखंडी पहचान लिये हुए बेहद साधारण वेशभूषा में चुपचाप पर्यावरण के लिए काम करने वाले सिमोन उरांव ने पर्यावरण को बचाने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। केवल चौथी क्लास तक पढ़ने वाले सिमोन पिछले एक सदी से सूखे के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। उन्होंने जल संचयन के लिए अकेले छह गांवों में तालाब खुदवाए। इसके अलावा वृक्षारोपण के जरिए अनूठी मिसाल पेश की। अब इन गांवों में साल में तीन फसलें उपजाई जा सकती हैं।
पर्यावरण संरक्षक सिमोन उरांव को साल 2016 में उनके पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। हालांकि जब इसकी घोषणा हुई तब सिमोन को पुरस्कार मिलने की जानकारी नहीं थी। उन्होंने अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स से बताया कि पुरस्कार मिलने की जानकारी उन्हें मीडिया के किसी दोस्त से मिली।
सिमोन ने 1955 से 1970 के बीच बांध बनाने का अभियान जोरदार ढंग से चलाया। उन्होंने जब यह काम शुरू किया तो 500 लोग उनसे जुड़ गये और साथ मिलकर जल संरक्षण का काम करने लगे। जब सिमोन 28 साल के थे तो उन्होंने बारिश के पानी को नियंत्रित करने के अल्पविकसित बांधों को बनाया। अपनी देशी तकनीक के जरिये गांववालों के सहयोग से सिंचाई के लिए पहला बांध गायघाट का निर्माण किया।
उन्होंने फिर गिरना बांध का निर्माण किया। 450 फीट लंबी इस नहर का निर्माण उन्होंने जंगल और पहाड़ को काट कर किया। इसके बाद उन्होंने देशवाली बांध का निर्माण किया। उन्होंने कई बंजर जमीन को खेती के लायक बनाया। साधारण जल संरक्षण के उपायों से उन्होंने 51 गांवों का भाग्य बदल लिया। अब इन गांवों में खेती करने के लिए पानी की दिक्कत नहीं होती। आज उनका गांव झारखंड में कृषि हब के रूप में विख्यात है और यहां 20 हजार मीट्रिक टन सब्जी का उत्पादन होता है।
मीडिया में आई खबरों के अनुसार पर्यावरण संरक्षण के मकसद को पूरा करने के लिए दो बार जेल जा चुके हैं और दोनों बार अदालत ने उन्हें समाजिक कार्यकर्ता बताकर रिहा कर दिया।