बिहार : क्या जमुई में रालोसपा के ‘पंखे’ की हवा में भी जलेगा लोजपा का ‘चिराग’?

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LJP Leader Chirag Paswan Attack On CM Nitish Kumar

बिहार के जमुई लोकसभा क्षेत्र (सुरक्षित) से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने पिछले लोकसभा चुनाव में तो आसानी से यहां जीत दर्ज कर ली थी, मगर आसन्न लोकसभा चुनाव में लोजपा और विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है।

नक्सल प्रभावित जमुई सीट का महत्व ऐसे तो बिहार की आम लोकसभा सीटों की तरह देखा जाता रहा है, पर चुनाव में लोजपा के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के पुत्र और निर्वतमान सांसद चिराग पासवान के एक बार फिर चुनाव मैदान में रहने और महागठबंधन की ओर से रालोसपा के भूदेव चौधरी को मुकाबले में उतरने से मुकाबला दिलचस्प बन गया है।


बॉलीवुड से राजनीतिक में आए चिराग लोकसभा चुनाव 2014 में यहां से राजद के सुधांशु शेखर को पराजित कर लोकसभा पहुंचे थे। लोकसभा चुनाव 2009 में राजग के प्रत्याशी भूदेव चौधरी ने राजद के उम्मीदवार श्याम रजक को 29,747 मतों से पराजित कर दिया था। इस तरह देखा जाए तो पिछले दो चुनावों से इस सीट पर राजग का कब्जा रहा है।

इस बार हालांकि चुनाव में बिहार में राजनीतिक समीकरण बदले हैं। पिछले चुनाव में जहां लोजपा और रालोसपा राजग के घटक दल में थी वहीं जद (यू) ने अपने बलबूते चुनाव लड़ा था। इस बार लोजपा और जद (यू) राजग का हिस्सा हैं, लेकिन रालोसपा अब राजद नीत महागठबंधन का घटक बन गई है। तालमेल के तहत राजग में जमुई सीट लोजपा के पास ही है लेकिन महागठबंधन में यह रालोसपा के खाते में गई है।

जमुई क्षेत्र के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत यहीं से की है।


तारापुर, शेखपुरा, सिकंदरा, जमई, झाझा और चकाई जैसे छह विधानसभा वाले इस लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या करीब 17 लाख है। बिहार के अन्य लोकसभा क्षेत्रों की तरह इस सीट पर भी जातीय समीकरण से चुनाव परिणाम प्रभावित होते रहे हैं। हालांकि लोजपा के नेता और राजग प्रत्याशी चिराग इसे सही नहीं बताते। उन्होंने कहा, “मुझे सभी जातियों का समर्थन मिल रहा है। पांच साल में मैंने इस क्षेत्र में कई विकास के कार्य करवाए हैं। विकास कार्य को लेकर ही हमलोग मतदाताओं के बीच जा रहे हैं और लोग समर्थन भी दे रहे हैं।”

वैसे, जमुई में चुनाव को लेकर लोगों में दिलचस्पी भी देखी जा रही है। बस अड्डों से लेकर नुक्कड़ों तक में राजनीति की चर्चा जरूर हो रही है, मगर इन चर्चाओं का मुख्य बिंदु नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ही हैं।

जमुई क्षेत्र के तारापुर इलाके के एक चाय की दुकान पर बैठे लोगों में शामिल रंजन देश की हित की बात करते हुए मोदी के साथ जाने की बात करते हैं तो वहीं चाय की चुस्की लेते हुए एक अन्य युवक मोदी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हैं, इसके बाद वहां दो गुटों में इसे लेकर चर्चा गरम हो जाती है।

80 प्रतिशत से ज्यादा कृषि पर आधारित रहने वाले लोगों का यह संसदीय क्षेत्र भले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो, पर सभी प्रत्याशियों की नजर सवर्ण मतदाताओं को आकर्षित करने में लगी है।

क़े क़े एम. कॉलेज के पूर्व प्राचार्य जय कुमार सिंह का कहना है कि भूदेव चौधरी की लोकप्रियता चिराग के मुकाबले कम है, जिस कारण चिराग अपनी पैठ मतदाताओं में बना पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुकाबला कड़ा है, मगर अन्य चुनावों की तरह यहां जातीय समीकरणों को भी नकारा नहीं जा सकता। यादव, मुस्लिम और सवर्ण जाति की बहुलता वाले इस लोकसभा क्षेत्र में पिछड़ी जातियों की संख्या भी अच्छी खासी है।

हालांकि वरीय अधिवक्ता सीताराम सिंह कहते हैं, “महागठबंधन इस चुनाव में जहां पूरी तरह फूंक-फूंककर कदम रख रही है और विरोधी को मात देने की लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रही है, जबकि चिराग के राजनीति कद के बढ़ने के कारण वे लोगों की पसंद बने हुए हैं। ऐसे में यहां मुकाबला कड़ा और दिलचस्प है।”

उन्होंने कहा, “पिछले पांच साल में चिराग के प्रयास से जमुई में विकास के कई ऐसे कार्य हुए हैं, जो उन्हें जनता की पसंद बनाता है, जिसका उन्हें लाभ अवश्य मिलेगा।”

जंगल, पहाड़, और नदियों से घिरे जमुई संसदीय क्षेत्र में ऐसे तो कई क्षेत्रीय समस्याएं हैं, मगर इन समस्याओं की जड़ में नक्सलियों की पैठ को मुख्य कारण माना जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि नक्सलियों की पैठ के कारण जहां इस क्षेत्र में विकास कार्य ठप हो जाते रहे हैं, वहीं लोगों का पलायन बदस्तूर जारी है।

इस क्षेत्र में 11 अप्रैल को पहले चरण के तहत मतदान होना है।

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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