Kamika Ekadashi Vrat 2021: बुधवार, 4 अगस्त को कामिका एकादशी व्रत किया जाएगा। ये साल की 24 एकादशियों में खास मानी गई है। स्कंद पुराण में बताया गया है कि सावन महीने के कृष्णपक्ष में आने वाली इस एकादशी पर व्रत, पूजा और दान से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। लेकिन, जानबूझकर दोबारा कोई गलती या पाप नहीं होगी ऐसा संकल्प भगवान विष्णु के सामने लेने पर ही इसका फल मिलता है। इस पर्व पर तीर्थ स्नान करने और दान देने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
Kamika Ekadashi कामिका एकादशी शुभ मुहूर्त-
दिनांक 03 अगस्त दिन की तारीख 12 बजकर 59 से शुरू होगी और 04 दिन गुरुवार को 03 बजकर 17ाद पर समाप्त होगी। सर्व सिद्धि 04 अगस्त को 05 बजकर योग 44 से 05 अगस्त तक:25 बजे तक।
Kamika Ekadashi कामिका एकादशी व्रत का पारण-
एकादशी व्रत का पारण 05 अगस्त को 05 बजकर 45 मिनट से 08 बजकर 26 मिनट के बीच होगा।
विष्णु को ऐसा प्रसन्नता-
कामिका के अंतिम दिनों में विष्णु की आरती एक सुंदरी थीं। देखभाल करने के बाद पूरी तरह से देखभाल करने के बाद पूरी तरह से देखभाल करें और पालन करें।
कामिका एकादशी महत्व-
उसके पापों से काम करने की गति वाली. इस व्रत का महत्व खुद के कृष्ण कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर कोमा था।
एकादशी व्रत पूजा-विधि
- जल्दी जल्दी उठो।
- घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
- विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
- विष्णु को पुष्पित और समूहित करें।
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- गोकू की आरती करें।
- भोग को भोग भोजन। इस बात का विशेष रूप से सम्बन्ध में अच्छी बात है। विष्णु के भोग में शामिल हों। पर्यावरण के अनुकूल होने के बाद, विष्णु वातावरण में भोजन करते हैं।
- पावन भगवान विष्णु के साथ इस माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
- इस व्यक्ति का अधिक से अधिक ध्यान दें।
ब्रह्माजी ने नारद को बताया
कामिका एकादशी व्रत की कथा सुनना यज्ञ करने के समान है। इस व्रत के बारे में ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद को बताया कि पाप से भयभीत मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। एकादशी व्रत से बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है। स्वयं प्रभु ने कहा है कि कामिका व्रत से कोई भी जीव कुयोनि में जन्म नहीं लेता। जो इस एकादशी पर श्रद्धा-भक्ति से भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करते हैं, वे इस समस्त पापों से दूर रहते हैं।
बिना पानी और भोजन के किया जाता है व्रत
सावन महीने में आने वाली एकादशियों को पर्व भी कहा जाता है। सावन मास में भगवान नारायण की पूजा करने वालों से देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के बाद पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा करना चाहिए।
भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत और अन्य सामग्री चढ़ाकर आठों प्रहर निर्जल रहना चाहिए। यानी पूरे दिन बिना पानी पीए विष्णु जी के नाम का स्मरण करना चाहिए। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का भी बहुत महत्व है। इस प्रकार जो यह व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूरी होती हैं।