खामोश ‘सुनामी’ लिख गई नई कहानी

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चुनाव सुधार की दृष्टि से भी कुछ अपवाद को छोड़ इसे सुखद शुरुआत कही जा सकती है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह लोकसभा चुनावों में ही होगा, जहां भौगोलिक ²ष्टि से क्षेत्रफल बहुत बड़ा होता है और प्रत्याशी के न पहुंच पाने से कार्यकर्ता भी बेपरवाह रहता है? कुछ भी हो, इसे सकारात्मक नजरिए से देख सारे चुनावों में यही पैटर्न अपनाना चाहिए।

उत्तर, पूर्व, मध्य और पश्चिम ने जहां भाजपा का कद बहुत बढ़ाया, वहीं दक्षिण ने कांग्रेस को कम और भाजपा को ज्यादा निराश किया। दिल्ली की कुर्सी तय करने वाले उत्तर प्रदेश सहित उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर ने अबकी बार भाजपा और गठबंधन को 180 सीटों में से 148 सीटें दीं जो 2014 की तुलना में 2 ज्यादा हैं।


उत्तर प्रदेश में अकेले भाजपा ने 62, सहयोगी अपना दल की 2 मिलाकर 64 सीटें जीतकर देश की राजनीति में क्षेत्रीय क्षत्रपों को खूब छकाया। यहां महागठबंधन को केवल 15 और कांग्रेस 1 पर सिमट गई। बिहार में 40 में से 39 सीटों में भाजपा और उसके गठबंधन ने रिकार्ड जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस केवल 1 सीट जीत सकी।

उत्तराखंड की सभी 5 सीटों पर भाजपा का कमल खिला। झारखंड की 14 सीटों में से भाजपा 11 सहयोगी आजसू 1 तथा कांग्रेस व जेएमएम को 1-1 सीट मिली।

दिल्ली की 7, हिमाचल की सभी 4 तथा चंडीगढ़ की अकेली सीट भाजपा को मिली, लेकिन पंजाब में कांग्रेस को 8, जबकि अकाली-भाजपा गंठबंधन को 4 और आप को सिर्फ 1 सीट मिली सकी। वर्ष 2014 में अकाली-भाजपा 6, कांग्रेस 3 और आप 1 सीट जीत पाई थी। हरियाणा की सभी 10 सीटों पर इस बार भाजपा को सफलता मिली, जबकि पिछली बार 7 सीट ही जीत पाई थी। जम्मू-कश्मीर में 6 सीटें हैं जिनमें भाजपा व नेशनल कान्फ्रेंस ने 3-3 पर जीत दर्ज की है।


भाजपा ने पूर्वी राज्यों में जिस तरह से 2014 से घुसपैठ की कोशिशें तेज की थीं, उसमें काफी हद तक सफल भी दिखी। पश्चिम बंगाल में 42 सीटें हैं। भाजपा का 2014 में 2 सीटों से शुरू सफर इस बार 18 सीटों तक पहुंचा और तृणमूल कांग्रेस को 22 पर समेट दिया। कांग्रेस को 2 सीट मिलीं। ओडिशा की 21 सीटों में बीजद को 12 भाजपा को 8 तथा कांग्रेस को 1 सीट मिली। त्रिपुरा में वामदल का सफाया करते हुए पिछली बार माकपा द्वारा जीती दोनों ही सीटों पर कमल फहराया।

नगालैंड और मिजोरम की अकेली सीटें क्रमश: एनडीपीपी और एमएनएफ के खाते में गईं। मणिपुर में कांग्रेस ने अपनी एकमात्र सीटी खो दी जो भाजपा के खाते में गई, जबकि दूसरी एनपीएफ के खाते में। असम की 14 सीटों में 9 भाजपा, 3 कांग्रेस, और 1-1 एआईयूडीएफ तथा निर्दलीय ने हासिल की, जबकि कांग्रेस पूर्ववत 3 ही जीत सकी। सिक्किम की अकेली सीट पर इस बार सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने जीत दर्ज की। अरुणाचल प्रदेश की दोनों सीटें भाजपा को मिली। जबकि मेघालय की दो सीटों में 1-1 पर कांग्रेस तथा एनपीपी ने जीत हासिल की वहीं अंडमान-निकोबार तथा पुदुच्चेरी की अकेली सीट पर कांग्रेस को जीत मिली।

देश के पश्चिमी हिस्से ने भी भाजपा और गठबंधन को जमकर समर्थन दिया। यहां पर 78 सीटें हैं जो गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दादर नगर हवेली और दमण-दीव की हैं। गुजरात की सभी 26 सीटें भाजपा को मिलीं, जबकि महाराष्ट्र की 48 सीटों में भाजपा 23 और सहयोगी शिवसेना को 18 सीटें मिलीं जो 2014 की तुलना में 1 कम है। कांग्रेस 1 सीट जीत पाई, जबकि एनसीपी को 4 मिलीं जबकि 1 पहली बार एआईएमआईएम तथा निर्दलीय के खाते में गई। गोवा की दो सीटों में भाजपा व कांग्रेस 1-1 पर जीतीं। यहां की 1 सीट कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली। जबकि केंद्र शासित प्रदेश दादर और नगर हवेली की अकेली सीट पर एनडीए से छीनकर निर्दलीय ने जीती तथा दमन-दीव से फिर भाजपा जीती।

देश के मध्य यानी मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कुल 65 सीटें हैं। इन सभी पर पूरे देश की खास निगाह थी, क्योंकि तीनों जगह दिसंबर में कांग्रेस की राज्य सरकारें सत्ता में लौटी हैं, लेकिन नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे, क्योंकि यहां 62 सीटों पर भाजपा व सहयोगियों ने बाजी मारी।

मप्र में 28 पर भाजपा तथा 1 में कांग्रेस जीती, छग की सीटों में 9 पर भाजपा तथा 2 पर कांग्रेस जीत सकी। जबकि राजस्थान में 2014 ने नतीजे ही दोहराए हैं। 24 सीटों पर भाजपा, तो एक पर सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को जीत मिली।

राष्ट्रीय राजनीति में दक्षिण का शुरू से खास स्थान रहा है। इस बार भी नतीजे बेहद अलग व चौंकाने वाले थे। तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, केरल, तेलंगाना का मिजाज भी अलग-अलग था। यहां की 129 सीटों से दिल्ली का रास्ता खोजने की बात तक की जा रही थी, लेकिन हुआ बेहद अलग।

इस बार तमिलनाडु की 38 सीटों (1 वेल्लोर में चुनाव बाद में होगा) में जहां भाजपा खाता नहीं खोल पाई, वहीं सहयोगी 1 सीट ही जीत सकी। 2014से 2019 के बीच राज्य की राजनीति में 360 डिग्री का बदलाव आया। यहां डीएमके को 23, सहयोगी कांग्रेस 8, सीपीआई-सीपीएम को 2-2 तथा एआईएडीएमके सहित आईयूएमएल तथा वीसेके को 1-1 सीट मिली है।

कर्नाटक की 28 सीटों में 25 पर भाजपा तथा 1 पर सहयोगी निर्दलीय ने जीत हासिल की जबकि जेडीएस-कांग्रेस गठबन्धन केवल 2 जीत सका। यहां भाजपा ने बड़ी कामियाबी हासिल की जबिक राज्य में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार है।

आंध्रप्रदेश में इस बार जबरदस्त उलटफेर दिखा। यहां 25 सीटों में वाईएसआर कांग्रेस को 22 तो तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) को केवल 3 सीटें मिलीं। साथ हुए विधानसभा चुनाव में भी वाईएसआर कांग्रेस ने सत्तारूढ़ तेदेपा के मुकाबले इकतरफा जीत हासिल कर राज्य में सत्ता हथिया ली। केरल की 20 सीटों में 18 पर कांग्रेस और उसके गठबंधन को जीत मिली। जबकि 1-1 पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तथा अन्य जीते।

तेलंगाना के नतीजे कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए सुखद रहे। पांच महीने पहले ही प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में लौटी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने लोकसभा की 17 सीटों में से 9 पर जीत हासिल की, जबकि उसकी सहयोगी एआईएमआईएम ने 1 भाजपा ने आश्चर्यजनक रूप से 4 तथा कांग्रेस ने 3 सीटों पर जीत हासिल की। लक्षद्वीप की अकेली सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने जीती। इस सीट पर संभवत: देश में सबसे कम केवल 125 वोट भाजपा को मिले।

इस बार दक्षिण का अलग मिजाज और पूर्व के कुछ अंचल छोड़ मोदी पर भरोसे की अण्डरकरंट थी। वह नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ही रहे जो पूरे आत्मविश्वास से कहते थे ‘अबकी बार 300 पार।’ हुआ भी वही जहां भाजपा ने अकेले 303 सीटें जीतीं वहीं गठबन्धन मिलाकर 353 का ऐसा भारी बहुमत सामने है जहां विपक्ष का नेता फिर नहीं होगा। 1984 फिर याद आ रहा है तब एक अलग राष्ट्रवाद था इस बार कुछ अलग। देखना होगा राष्ट्रवाद को समर्पित इस चुनाव के बाद मोदी जी की दूसरी पारी में जिम्मेदारी और चुनौतियों से अलग ही अंदाज में सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास के तर्ज पर कैसे निपटते हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

 

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