खुर्जा ताप विद्युत संयंत्र पर आईईईएफए की रपट मनगढ़ंत, निराधार : डी.वी. सिंह

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नई दिल्ली, 4 नवंबर (आईएएनएस)| टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डी.वी. सिंह ने कंपनी की तरफ से खुर्जा में स्थापित किए जा रहे ताप विद्युत संयंत्र पर अमेरिकी संस्था, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकॉनॉमिक्स एंड फिनांसियल एनेलिसिस (आईईईएफए) की रपट को मनगढ़ंत, गलत और निराधार बताया है।

सिंह ने यहां आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा कि बिजली की कीमत, पर्यावरण प्रदूषण सहित अन्य सभी बिंदुओं पर आईईईएफए के आंकड़े सरासर गलत हैं और टीएचडीसीआईएल के आंकड़े से कतई मेल नहीं खाते।


उल्लेखनीय है कि आईईईएफए की हाल की एक रपट में खुर्जा सुपर थर्मल पॉवर संयंत्र को आज के समय में अप्रासंगिक, दिल्ली की हवा के लिए नुकसानदायक और महंगी बिजली पैदा करने वाला बताया गया है। रपट में कहा गया है कि 12,676 करोड़ रुपये लागत वाली यह भारी भरकम परियोजना ऋणदाताओं के लिए एक और गैर निष्पादित संपत्ति साबित होगी।

महंगी बिजली के सवाल पर सिंह ने कहा, “आईईईएफए की रपट में बिजली दर 5.67 रुपये प्रति किलोवाट घंटा बताई गई है, जबकि टीएचडीसीआईएल की पहले साल की अनुमानित दर 3.90 रुपये प्रति यूनिट है।”

दोनों आंकड़ों में इतने बड़े अंतर के सवाल पर उन्होंने कहा, “दरअसल आईईईएएफ ने आम तौर पर ताप बिजली संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाले 2800 किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम के जीसीवी (ग्रास कैलोरिफिक वैल्यू) वाले घटिया कोयले के आधार पर कीमत तय की है, जबकि हम लगभग 4750 किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम जीसीवी के साथ जी-9 ग्रेड गुणवत्ता वाले कोयले का इस्तेमाल कर रहे हैं।”


उन्होंने आगे कहा, “हम मात्र 470 ग्राम कोयले में एक यूनिट बिजली पैदा करेंगे, जबकि आईईईएफए की गणना के अनुसार 800 ग्राम कोयले में एक यूनिट बिजली बनेगी। उन्होंने चूंकि कोयले की कीमत बढ़ा दी, इसलिए उनकी गणना में बिजली की कीमत बढ़ गई।”

आईईईएफए की रपट में संयंत्र से निकलने वाले प्रदूषण से स्थानीय लोगों पर पड़ने वाले असर और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की हवा और खराब होने की बात कही गई है।

टीएचडीसीआईएल के अध्यक्ष ने कहा, “यह तर्क भी बेबुनियाद है। क्योंकि हम इस संयंत्र को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से दिसंबर 2015 में प्रकाशित मानक से आधे पर बना रहे हैं। पर्टिकुलेट मैटर का मानक 30 मिलीग्राम प्रति न्यूटन मीटर क्यूब तय है, जबकि हमारे संयंत्र से मात्र 17 मिलीग्राम पर्टिकुलेट मैटर निकलेगा। सल्फर डॉईआक्साइड का उत्सर्जन मानक 100 मिलीग्राम प्रति न्यूटन मीटर क्यूब है, जबकि हमारे संयंत्र से यह मात्र 50 मिलीग्राम निकलेगा। इसी तरह नाइट्रोजन ऑक्साइड (नाक्स) का तय मानक 100 मिलीग्राम प्रति न्यूटन मीटर क्यूब है, जबकि हमारे संयंत्र से यह 50 मिलीग्राम निकलेगा।”

उल्लेखनीय है कि दिल्ली की हवा बारिश के दिनों को छोड़कर अक्सर खतरनाक स्तर पर बनी रहती है और आईईईएफए की रपट में खुर्जा संयंत्र से दिल्ली की हवा और खराब होने की बात कही गई है।

डी.वी. सिंह कहते हैं, “आईआईटी, कानपुर ने दिल्ली सरकार और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति को एक रपट सौंपी है, जिसमें पाया गया है कि दिल्ली में प्रमुख रूप से हवा की दिशा उत्तर-पश्चिम और पश्चिम से क्रमश: दक्षिण-पूर्व और दक्षिण की तरफ बहती है। ऐसे में हवा दिल्ली से खुर्जा की ओर जाती है, न कि खुर्जा से दिल्ली की तरफ आती है। वैसे भी दिल्ली से खुर्जा की दूरी 90 किलोमीटर है।”

रपट तैयार करने से पहले क्या आईईईएफए ने टीएचडीसीआईएल से संपर्क किया था? सिंह ने कहा, “नहीं। पता नहीं कहां से, कैसे उन्होंने रपट तैयार की। मंत्रालय को इस बारे में लिख कर भेज दिया है।”

आईईईएफए की रपट में कोयला आधारित विद्युत संयंत्र के बदले नवीकरणीय ऊर्जा की वकालत की गई है। टीएचडीसीआईएल नवीकरणीय ऊर्जा में भी काम कर रही है। सरकार ने 2030 तक 40 प्रतिशत बिजली नवीकरणीय ऊर्जा से हासिल करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में कोयला आधारित संयंत्र लगाने के पीछे क्या तर्क है?

डी.वी. सिंह ने कहा, “नवीकरणीय ऊर्जा से हमारी कोई प्रतिस्पर्धा ही नहीं है। दरअसल, बेस लोड के लिए ताप संयंत्र ही चाहिए। हम 2030 तक 40 प्रतिशत से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। लेकिन बाकी 60 प्रतिशत बिजली हम कहां से लाएंगे। दूसरी बात, देश में 48,000 मेगावाट क्षमता के ऐसे कोयला संयंत्रों की पहचान की गई है, जो बहुत पुराने हैं और अधिक कोयला खाते हैं, प्रदूषण फैलाते हैं। उन्हें रिटायर किया जा रहा है। ऐसे में नए ताप संयंत्र तो चाहिए ही।”

सिंह ने आगे कहा, “दरअसल, सिर्फ नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली की जरूरतें पूरी नहीं हो सकतीं। हमें ताप संयंत्र हर हाल में चाहिए।”

अब सवाल यह उठता है कि आखिर आईईईएफए ने यह रपट तैयार क्यों की? इसके पीछे मकसद क्या है? उन्होंने कहा, “यह तो वही बता सकते हैं। लेकिन हम भी यह जानने के लिए उनसे संपर्क करने की कोशिश में हैं। पूछेंगे कि आखिर ऐसी निराधार और गलत रपट क्यों जारी की।”

खुर्जा संयंत्र को लेकर स्थानीय स्तर पर विरोध भी हो रहे हैं। इस बारे में पेशे से सिविल इंजीनियर सिंह ने कहा, “विरोध संयंत्र को लेकर नहीं है। मुआवजे को लेकर है। जमीन का मुआवजा बहुत पहले ही दिया जा चुका था, कोई विवाद नहीं था। लेकिन बाद में लोगों की मांग पर हमने अनुग्रह राशि भी दी। फिर भी कुछ लोगों ने किसानों को उकसा दिया कि नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत चारगुना कीमत मिलनी चाहिए।”

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के संयुक्त उद्यम टीएचडीसीआईएल की तरफ से खुर्जा में कुल 1320 मेगावाट क्षमता का ताप विद्युत संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। संयंत्र की पहली इकाई (660 मेगावाट) में नवंबर 2022 तक और दूसरी इकाई में अप्रैल 2023 तक विद्युत उत्पादन शुरू होने की संभावना है। इस संयंत्र से खासतौर से उत्तर प्रदेश की बिजली जरूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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