इंसानियत की नई मिसाल, हिंदू-मुस्लिम परिवारों के बीच किडनियों का आदान- प्रदान

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इंसानियत की नई मिसाल, हिंदू-मुस्लिम परिवारों के बीच किडनियों का आदान- प्रदान

इंसान धर्म के नाम पर चाहे कितना भी लड़ ले, कितना भी भेदभाव कर ले लेकिन इंसानियत को कभी नहीं बांट सकता। इंसानियत धर्म, जाती आदि से कई बड़ी होती है। इसी की एक मिसाल कश्मीर और बिहार से आई है, जिसमें धर्म से कई ऊपर उठ कर दो परिवारों के लोगों ने एक दूसरे की जान बचाई।

जहां आज भी भारत में अनेकता में एकता है वहीँ, कुछ लोग इस एकता को तोड़ने की कोशिश करते हैं। आए दिन साम्प्र्दायिक आधार पर लड़ाई- झगड़ों की खबरें आती हैं। लेकिन कश्मीर और बिहार की इस खबर ने साबित किया कि इंसानियत धर्म से काफी बड़ी है।


दरअसल, कश्मीर के बारामुला जिले के करेरी गांव निवासी अब्दुल अजीज नाजर (53) को किडनी स्टोन की बीमारी थी। जिसके चलते उन्होंने अपनी एक किडनी खो चुके थे। कई वर्षों से इस बीमारी से परेशान अब्दुल काफी वक्त से किडनी डोनर की तलाश में थे। कश्मीर के अब्दुल की तरह बिहार के सुजीत कुमार सिंह (46) भी अपनी पत्नी मंजुला देवी (42) के लिए एक किडनी डोनर की तलाश में लगे हुए थे।

इसी तलाश में अब्दुल और सुजीत ने एक किडनी डोनर ढूंढने के लिए मोबाइल ऐप पर नाम रजिस्टर करवाया था। इसी बीच मोहाली के एक निजी अस्पताल के डॉक्टर्स ने दोनों के रिकार्ड्स देख के बताया कि वह एक दूसरे को किडनी दान कर सकते हैं। डॉक्टर्स की बात मान कर सुजीत अपनी किडनी अब्दुल को देने के लिए तैयार हो गए। वहीँ अब्दुल की पत्नी शाजिया बेगम (50) भी अपनी किडनी सुजीत की पत्नी मंजुला को देने के लिए तैयार हो गई। इसके बाद दोनों परिवारों में किडनी का यह आदान-प्रदान 3 दिसंबर 2018 को सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

दोनों परिवारों की इस पहल ने धर्म की दीवारें तोड़ी और इंसानियत की नई मिसाल पेश की। इस केस से जुड़े रहे डॉक्टर प्रियदर्शी रंजन ने कहा कि ‘चिकित्सा विज्ञान की नजर में धर्म मायने नहीं रखता। डॉक्टर का धर्म मरीज की जान बचाना है। दोनों परिवारों ने धर्म की दीवार तोड़कर एक दूसरे की जान बचाई, जिस पर मुझे और सभी भारतवासियों को गर्व है।’


वहीँ मीडिया से बात करते हुए अब्दुल अजीज नाजर ने बताया, ‘उनकी एक किडनी हिंदू की है जिसे पाकर वह नया जीवन महसूस कर रहे हैं।’ साथ ही उन्होंने कहा कि वह काफी गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं लेकिन राज्य सरकार की तरफ से उनकी कोई मदद नहीं की गई। वहीँ, सुजीत कुमार सिंह जो इंडियन एयरफोर्स से सेवानिवृत्त होने के बाद इंडियन ओवरसीज बैंक में काम करते हैं, उन्होंने अपनी पत्नी को किडनी मिलने के बाद अब्दुल और शाजिया बेगम का बहुत शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा, ‘मेरी पत्नी की दोनों किडनी खराब हो चुकी थीं। हम लोग किडनी हासिल करने के लिए दर-दर भटक रहे थे। फिर किसी ने सलाह दी कि आप एक मोबाइल ऐप में अपना नाम पंजीकरण करवाएं। हमें अब्दुल अजीज का परिवार मिला जिनकी मदद से आज मेरी पत्नी जिंदा है। ‘

दो अलग धर्मों के लोगो की यह पहल साबित करती है कि इंसानियत धर्म से काफी बड़ी है। साथ ही इस घटना ने यह भी साफ कर दिया कि कुछ लोग चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, भारत की अनेकता में जो एकता है उसे नहीं तोड़ सकते।

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