आरती साहा गुप्ता: इंग्लिश चैनल पार करने वाली एशिया की पहली महिला तैराक, जानें उनकी कुछ खास बातें

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आरती साहा (Arati Saha) एक मजबूत हौसलों वाली महिला हैं। उन्हें ‘हिंदुस्तानी जलपरी’ भी कहा जाता है। आज उनकी जन्मतिथि है। उनका पूरा नाम आरती साहा गुप्ता (Aarti Saha Gupta) था। उन्होंने महज 4 साल की उम्र से ही तैराकी शुरू कर दी थी। 29 सितंबर 1959 में इंग्लिश चैनल (English Channel) को पार करके आरती गुप्ता (Arati Gupta) ने पहली एशियाई महिला के तौर पर अपना नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज कराया था। भारत के प्रसिद्ध तैराक मिहिर सेन (Mihir Sen) से प्रेरित होकर उन्होंने इंग्लिश चैनल पार की।

बता दें, इंग्लिश चैनल (English Channel) अटलांटिक महासागर की एक शाखा है जो ग्रेट ब्रिटेन को उत्तरी फ्रांस से अलग करती है और उत्तरी सागर को अटलांटिक से जोड़ती है। वैसे तो इंग्लिश चैनल की लंबाई 560 किलोमीटर है, लेकिन तैरने के लिए इसकी मानक दूरी करीब 35 किलोमीटर है। तैराक को समुद्र में उठने वाले टाइड (ज्वार) बहाकर दूर ले जाते हैं, इसलिए उन्हें कम या ज्यादा भी तैरना पड़ता है।


जानें एशिया की पहली महिला तैराक आरती साहा (Arati Saha) के बारे में….

1. आरती साहा गुप्ता (Arati Saha Gupta) का जन्म 24 सितंबर 1940 को कलकत्ता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। आरती के पिता का नाम पंचुगोपाल था। आरती की एक बहन और एक भाई थे, महज़ ढाई वर्ष की उम्र में आरती ने अपनी माँ को खो दिया था।

2. आरती (Aarti Saha) ने 4 साल की उम्र में तैराकी शुरू की थी। 19 साल की छोटी-सी उम्र में उन्होंने इंग्लिश चैनल को पार करके दुनिया को हैरत में डाल दिया था।

3. उन्होंने 6 साल के स्टेट करियर में 1945 से 1951 के बीच 22 पुरस्कार जीते।


4. फ्रांस के केप ग्रिस नेज और इंग्लेंड के सैंडगेट के बीच 69 किलोमीटर के फासले को उन्होंने सिर्फ 16 घंटे और 20 मिनट में तय किया था।

आरती साहा गुप्ता: इंग्लिश चैनल पार करने वाली एशिया की पहली महिला तैराक, जानें उनकी कुछ खास बातें

5. साल 1951 में पश्चिम बंगाल स्टेट में उन्होंने 100 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक में 1 मिनट 37.6 सेकंड का समय लेकर डॉली नज़ीर का रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिया था।

6. साल 1960 में आरती साहा को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

7. 23 अगस्त 1994 को पश्चिम बंगाल में आरती साहा (Arati Saha)की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु पीलिया की वजह से हुई थी। भले ही आज वह हमारे बीच नहीं है लेकिन अपनी उपलब्धियों से वह हमेशा अमर रहेंगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।

8. भारतीय डाक ने उनके सम्मान में साल 1998 में एक डाक टिकट भी जारी किया।


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