भारतीय राजनीति के पहले ‘किंग मेकर’ के कामराज: जिनके ‘प्लान’ से 6 मुख्यमंत्रियों को गंवाना पड़ा अपना पद

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भारतीय राजनीति के पहले 'किंग मेकर' के कामराज: जिनके 'प्लान' से 6 मुख्यमंत्रियों को गंवाना पड़ा अपना पद

K Kamraj death anniversary: भारत रत्न से सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता के कामराज को राजनीति के पहले ‘किंगमेकर’ के तौर पर जाना जाता है। उन्हें कामराज प्लान, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने जैसी अहम बातों के लिए याद किया जाता है। आज उनकी जयंती है।

के कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरदुनगर में हुआ था। उनका पूरा नाम कुमारासामी कामराज था। असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलनों में हिस्सा लेने के बाद उन्होंने करीब 3,000 दिन जेल में बिताए और जेल में रहकर ही अपनी पढ़ाई की। गांधीवादी विचारधारा के सहयोगी के कामराज तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे। उन्होंने ही एक किंग मेकर के तौर पर भारत को लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के रूप में दो प्रधानमंत्री दिए।


तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के तौर पर

कामराज पहली बार वर्ष 1954 में मुख्यमंत्री चुने गए। इस दौरान उन्होंने शिक्षा पर जोर देते हुए स्कूल खोलने और 11वीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की योजना चलाई। वह कामराज ही थे, जिन्होंने आजाद भारत में मिडडे मील योजना शुरू की। आजादी के महज 15 सालों के अंदर मद्रास के हर गांव में बिजली पहुंचाने का श्रेय भी कामराज को जाता है।

उन्होंने तीन बार मुख्यंमत्री रहने के बाद उन्होंने 2 अक्टूबर 1963 इस पद से इस्तीफा दे दिया था।

कामराज प्लान

मुख्यंमत्री पद से इस्तीफा देने के बाद, कामराज ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने की बात कही। उनके इस प्रस्ताव से नेहरू हैरान थे, लेकिन कामराज ने कहना था कि कांग्रेस के सब बुजुर्ग नेताओं में सत्ता लोभ घर कर रहा है और उन्हें वापस संगठन में लौटना चाहिए। नेहरू ने इस बात को स्वीकारते हुए इस योजना को पूरे देश में लागू करने का फैसला किया।


इस प्लान को भारतीय इतिहास में ‘कामराज प्लान’ के नाम से जाना जाता है। इस प्लान के चलते 6 कैबिनेट मंत्रियों और 6 मुख्यमंत्रियों ने अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ा। पद छोड़ने वाले कैबिनेट मंत्रियों में मोरार जी देसाई, लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम जैसे लोग शामिल थे, जबकि मुख्यमंत्री रह चुके चंद्रभानु गुप्त, एमपी के मंडलोई और उड़ीसा के बीजू पटनायक को अपना पद त्यागना पड़ा था।

कुछ ही महीनों के बाद कामराज को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया।

जब कामराज बने किंगमेकर

भारतीय राजनीति में कामराज की असली भूमिका नेहरू के निधन के बाद सामने आयी। 1964 में नेहरू के देहांत के बाद सवाल था कि अब प्रधानमंत्री कौन बनेगा। पार्टी अध्यक्ष होने के नाते जिम्मेदारी कामराज पर थी।

उस समय प्रधानमंत्री पद के प्रबल उम्मीदवार थे। लाल बहादुर शास्त्री और मोरारजी देसाई सिंडीकेट के समर्थन से शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। लेकिन 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद एक बार फिर वही सवाल खड़ा हो गया। इस बार उनका नाम भी पीएम पद के लिए सामने आया पर वह इससे पीछे हट गए। उनका कहना था कि जिसे ठीक से हिंदी और अंग्रेजी न आती हो, उसे इस देश का पीएम नहीं बनना चाहिए।

कामराज और 355 सांसदों के समर्थन से इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं।

इसके बाद लोकसभा चुनावों में हार के बाद कामराज भी तमिलनाडु में अपनी विधानसभा सीट से हार गए, जिसके बाद उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा। 2 अक्टूबर 1975 को गांधी जयंती के दिन हार्टअटैक से उनका निधन हो गया। उन्हें वर्ष 1976 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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