आज ‘कारगिल विजय दिवस’ (Kargil Vijay Diwas) की 20वीं वर्षगांठ है। 26 जुलाई 1999 भारतीय इतिहास का एक बड़ा दिन है, क्योंकि इसी दिन भारतीय सेना ने पकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध (Kargil War 1999) में विजयी हासिल कर ली थी।
पाकिस्तानी सेना 3 मई 1999 को कश्मीर के कारगिल जिले में घुस गई थी, जिसके बाद ‘ऑपरेशन विजय’ (Operation Vijay) चला कर भारतीय सेना के जांबाजों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया था और 26 जुलाई 1999 को कारगिल चोटी को आजाद कराया था। तभी से हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में भारत के कई जांबाज सैनिक शहीद हुए थे।
शहीद हो गए थे कैप्टन मनोज कुमार पांडेय
कारगिल के युद्ध में कई भारतीय जवान शामिल थे, जिन्होंने भारत को जीत का गौरव दिया। इन्हीं में से एक थे सीतापुर के कमलापुर में जन्मे कैप्टन मनोज कुमार पांडेय। 4 मई, 1999 को उन्हें कारगिल में घुसपैठियों से भारतीय चौकियों को खाली कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पांच नंबर प्लाटून का नेतृत्व कर वह बटालिक सेक्टर में दुश्मनों पर जीत हासिल करते हुए आगे बढ़ रहे थे। इसी दौरान उन्हें भयंकर गोलीबारी का सामना करना पड़ा, पर एक जांबाज सिपाही होने के नाते वह आगे बढ़ते गए। इसी दौरान वह दुश्मन की गोली का शिकार हो गए थे।
परमवीर चक्र के लिए फौज में हुए थे भर्ती
सर्विस सेलेक्शन बोर्ड के इंटरव्यू के दौरान जब कैप्टन मनोज पांडेय से पूछा गया कि आप फौज क्यों ज्वाइन करना चाहते हैं। इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि मुझे परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) हासिल करना है और उन्होंने ऐसा कर दिखाया। शहीद कैप्टन मनोज पांडेय लखनऊ के एकलौते ऐसे सैन्य अधिकारी रहे, जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
उनका यह सपना मरणोपरांत पूरा हुआ। कारगिल युद्ध में शहीद होने के बाद उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया।
बहादुरी के आगे मौत को हराने का था जज्बा
उन्होंने अपनी पर्सनल डायरी में लिखा था, ‘अगर अपनी बहादुरी साबित करने से पहले मेरे सामने मौत भी आ गई, तो मैं उसे खत्म कर दूंगा। यह सौगंध है मेरी।’ उनकी शहादत पर ‘कैप्टन मनोज पांडेय चौराहा’ बनाया गया।
कैप्टन मनोज पांडेय उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से 1997 में गोरखा राइफल्स में कमीशंड हुए थे।