सावन (श्रावण) का पवित्र माह चल रहा है। सभी लोग शिव की भक्ति में लीन हैं। हिंदू धर्म के लोग व्रत और पूजा कर शिव की अराधना कर रहे हैं। इसी बीच ‘कांवड़ यात्रा’ भी शुरू हो चुकी है। श्रद्धालु कांवड़ लेकर निकल पड़े हैं और सब जगह ‘बोल बम’ और ‘हर हर महादेव’ के जयकारे लग रहे हैं।
सनातन धर्म में श्रावण मास में की जाने वाली कांवड़ यात्रा का बहुत महत्व होता है। हर साल लाखों श्रद्धालु सुख-समृद्धि की कामना लिए इस यात्रा पर निकलते हैं।
क्या है कांवड़ यात्रा?
सावन के दौरान श्रद्धालु किसी पावन तीर्थ स्थल जैसे हरिद्वार से गंगाजल ला कर, अपने आस- पास के मंदिरों में शिवलिंग पर यह गंगाजल चढ़ाते हैं। इस पूरी यात्रा को कांवड़ यात्रा कहते हैं। भगवान शिव को समर्पित इस कांवड़ यात्रा में श्रद्धालु पवित्र गंगा जल या फिर किसी नदी विशेष के शुद्ध जल से अपने ईष्ट देव का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि अपने श्रद्धालुओं की इस भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवान शिव उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
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जो श्रद्धालु इस यात्रा पर जाते हैं, उन्हें कांवड़ियें कहा जाता है।
कौन था पहला कावंड़िया?
कहा जाता है कि रावण पहला कांवड़िया था। वह अपने आराध्य बाबा बैद्यनाथ से मिलने के लिए पैदल ही कंटकाकीर्ण मार्ग की यात्रा पर गया था। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि पहले कांवड़िये भगवान राम थे, जो मीलों यात्रा कर रामेश्वरम पहुंचे। उन्होंने वहां शिवलिंग की पूजा-अराधना की।
कांवड़ यात्रा के नियम
हिंदू धर्म में कांवड़ यात्रा का बहुत महत्व होता है और इससे भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। लेकिन कांवड़ यात्रा के कुछ नियम भी होते हैं, जिन्हें तोड़ने पर न सिर्फ यह यात्रा अधूरी रह जाती है।
- कांवड़ यात्रा के दौरान स्नान किए बिना कांवड़ को स्पर्श करना मना होता है। इस यात्रा के वक्त किसी अपशब्द नहीं बोलना चाहिए साथ ही कोई अमान्य काम भी नहीं करना चाहिए।
- कांवड़ को सिर के ऊपर रखकर नहीं ले जाया जा सकता है। इसके अलावा किसी पेड़ या पौधे के नीचे भी कांवड़ को रखना मना है।
- इस यात्रा के दौरान कांवड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता है। किसी काम से रुकने पर इसे ऊंचे स्थान पर रखना चाहिए।
- इस दौरान बोल बम और जय शिव-शंकर का जयकारा या फिर शिव मंत्रों का जप या मनन करना चाहिए।
- इसे ले जाते हुए चमड़े से बनी किसी चीज का न तो प्रयोग करना चाहिए और न ही स्पर्श करना चाहिए।
- कांवड़ ले जाते वक्त प्रकार का नशा जैसे मांस, मदिरा, भांग आदि का सेवन न करें। इस पावन यात्रा के दौरान भूलकर भी तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
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मान्यता के अनुसार जो भी कांवड़िया पूरे मन से भगवान शिव का जाप करते हुए इस यात्रा को पूरा करता है, उसे ‘अश्वमेघ यज्ञ’ जितना लाभ मिलता है और उसके सारे पाप धुल जाते हैं।