Birthday Special: क्यों राहुल गांधी को नाम बदल कर करना पड़ा था काम?

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राहुल गांधी आज अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं। वह भारतीय राजनीति के एक बड़े नाम हैं। भारत के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवारों में से एक नेहरू- गांधी परिवार में जन्में राहुल फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे हैं।

राहुल गांधी के नेतृत्व में, हाल ही में कांग्रेस ने 2019 का लोकसभा चुनाव हारा है, जिसके बाद ही वह पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ना चाहते हैं। वह बेशक राजनीती का बड़ा नाम हैं, लेकिन उनकी पहचान का श्रेय काफी हद तक उनकी पारिवारिक पहचान को माना जाता है। लंबे समय से राजनीति में सक्रीय राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी पीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत करती है। उनके इस जन्मदिन पर आइये जानते हैं उनके जीवन के बारे में।


नेहरू- गांधी परिवार में जन्म

राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 को दिल्ली में हुआ था। वह देश के सबसे बड़े राजनैतिक परिवार में जन्में थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट कोलंबिया स्कूल और देहरादून के दून स्कूल से पूरी की। राहुल गांधी ने फ्लोरिडा के रोल्लिन्स कॉलेज से ग्रेजुएशन और 1995 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से एम. फिल किया।

सुरक्षा के कारण नाम बदल कर किया काम

राहुल गांधी ने राजनितिक परिवार में जन्म लेने के कारण कई हादसे भी देखें। 1984 में उनकी दादी इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गयी। इसके बाद 1991 में पिता राजीव गांधी की भी हत्या कर दी गयी। इन्हीं के चलते उनका बचपन सुरक्षाकर्मियों के बीच बीता।

हायर स्टडीज के लिए विदेश में भी उनकी सुरक्षा बड़ा मुद्दा बनी रही। सुरक्षा को देखते हुए सिर्फ उनकी सुरक्षा एजेंसी और विश्वविद्यालय समिति को ही उनकी सही पहचान मालूम रहती थी। राहुल बचपन से एक सामान्य जीवन से दूर रहे थे, जबकि उन्हें यह मौका लंदन में मिला। पढ़ाई के बाद राहुल ने एक आम नागरिक की तरह लंदन में मॉनीटर ग्रुप के साथ तीन साल तक काम किया। यहां भी उन्हें सुरक्षा को देखते हुए अपनी पहचान छुपानी पड़ी और उन्होंने ‘रॉल विंसी’ के नाम से काम किया। उनके सहकर्मियों को भी नहीं पता था कि वह गांधी परिवार के सदस्य हैं।


राजनैतिक जीवन की शुरुआत

वर्ष 2002 में राहुल भारत वापस लौटे उन्होंने मुंबई में इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी आउटसोर्सिग फर्म, बेकॉप्स सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड स्थापित की, लेकिन राजनीती के चलते उन्हें यह फर्म छोड़नी पड़ी।

गांधी परिवार के वारिस राहुल के सियासी जीवन की शुरुआत भी अचानक ही हुई थी। साल 2003 में वह कांग्रेस की बैठकों और सार्वजनिक समारोहों में नजर आए। साल 2004 में अमेठी का दौरा करने के साथ उनके सियासत में आने की चर्चा शुरू हो गई। उन्होंने राजनीति में आने का ऐलान मार्च 2004 के लोकसभा चुनाव के साथ किया। उन्होंने अमेठी से चुनाव लड़ा और तीन बार वहां से सांसद रहे। कांग्रेस के गढ़ अमेठी में कांग्रेस की जीत का सिलसिला 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल की हार के साथ टूटा।

राजनीति में आने से लेकर अबतक राहुल का सफर काफी उतार- चढ़ाव भरा रहा है। कांग्रेस उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार मानती है तो वहीं, अन्य राजनैतिक दल उन्हें बस उन्हें गांधी परिवार का वारिस मानते हैं और इसे नेपोटिस्म करार देते हैं। अक्सर उनकी काबिलियत पर भी सवाल उठते रहते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार राहुल गांधी के राजनैतिक जीवन पर एक बड़ा सवाल है।

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