Amrita Pritam: स्त्री मन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से टटोलने वाली लेखिका-कवयित्री थीं अमृता प्रीतम

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Amrita Pritam Google Doodle: जानिए कौन थीं अमृता प्रीतम, जिन्हें गूगल ने डूडल बनाकर किया याद

Amrita Pritam Death Anniversary: पंजाबी-हिंदी की नामचीन कवयित्री और लेखिका अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) की आज पुण्यतिथि है। अमृता प्रीतम एक ऐसी साहित्यकार हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में सौ से ज्यादा पुस्तकें लिखीं और उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। यूँ तो अमृता प्रीतम का ज़िक्र ज्यादातर गीतकार-शायर साहिर लुधियानवी और चित्रकार इमरोज़ से जुड़े किस्सों के लिए होता रहता है। लेकिन इससे इतर अमृता प्रीतम की वास्तविक पहचान थी उनकी कलम से निकली वो किस्से कहानियों जो स्त्री मन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से टटोलते लिखी गयी थीं।

Amrita Pritam: स्त्री मन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से टटोलने वाली लेखिका-कवयित्री थीं अमृता प्रीतम
जन्म शताब्दी पर अमृता प्रीतम के सम्मान में बनाया गया गूगल डूडल

अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 को ब्रिटिश इंडिया के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला में हुआ था। अब यह पाकिस्तान का हिस्सा है। अमृता का बचपन लाहौर में बीता। अमृता ने काफी कम उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था और उनकी रचनाएं पत्रिकाओं और अखबारों में छपती थीं। अमृता को एक राह दिखाने वाली महिला माना जाता है, जो पिंजर, सुनेरे और नागमणि जैसी साहित्यिक कृतियों के साथ प्रसिद्धि के लिए बढ़ी, जिसने सीमाओं पर महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की गंभीर वास्तविकता को सामने लाया। अमृता प्रीतम ने न केवल 100 से ज्यादा किताबें लिखीं, कविता और कथा साहित्य दोनों पर वह 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं।


Amrita Pritam: स्त्री मन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से टटोलने वाली लेखिका-कवयित्री थीं अमृता प्रीतम
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अमृता प्रीतम ने अपनी रचनाओं में ना सिर्फ स्त्री मन को अभिव्यक्ति दी बल्कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के दर्द को भी बखूबी उकेरा। उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए चतुर्दिक ख्याति मिली। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुए नरसंहार का अत्यंत मार्मिक चित्रण है। यह रचना भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी बहुत सराही गयी।

अमृता प्रीतम की प्रमुख कृतियां हैं –

उपन्यास- पांच बरस लंबी सड़क, पिंजर, अदालत, डॉक्टर देव, कोरे कागज़, उन्चास दिन, आह्लणा , आशू, इक सिनोही,बुलावा,बंद दरवाज़ा सागर और सीपियां

आत्मकथा- रसीदी टिकट


कहानी संग्रह- कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं, कहानियों के आँगन में

संस्मरण- कच्चा आंगन, एक थी सारा

काव्य संग्रह : लोक पीड़, मैं जमा तू , लामियाँ वतन, कस्तूरी, सुनहुड़े (साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह तथा कागज़ ते कैनवस ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह सहित 18 कविता संग्रह।

विभाजन के दौर पर लिखी ‘पिंजर’

Amrita Pritam: स्त्री मन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से टटोलने वाली लेखिका-कवयित्री थीं अमृता प्रीतम
Pinjar Movie Poster

भारत पाकिस्तान विभाजन के दौर पर अमृता प्रीतम ने ‘पिंजर’ लिखी। इस उपन्यास की नायिका पारो है जिसने विभाजन के दंश को झेला है। किस तरह उसे एक मुस्लिम युवक अगवा कर ले जाता है और उसके बाद उसे अपने घर में भी जगह नहीं मिलती। उसके बाद पारो का पूरा जीवन कैसा होता है और विभाजन की त्रासदी का महिलाओं के जीवन पर क्या असर पड़ा, उसका सजीव चित्रण इस उपन्यास में है। इस पर ‘पिंजर’ नाम से एक फिल्म भी बनी थी।

आत्मकथा का नाम ‘रसीदी टिकट’ क्यों रखा

अमृता प्रीतम की आत्मकथा का नाम रसीदी टिकट है। इसके नाम के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। हुआ यूँ कि एक बार अमृता और खुशवंत सिंह बैठकर बातें कर रहे थे। इस दौरान खुशवंत सिंह ने कहा था तेरी जीवनी का क्या है, बस एक आध हादसा, लिखना चाहो तो रसीदी टिकट पर लिख सकते हैं। अमृता ने यही नाम अपनी आत्मकथा के लिए चुन लिया। रसीदी टिकट में अमृता प्रीतम ने अपनी शादी और प्रेम का खुले तौर पर वर्णन किया है। ये किताब इतनी मशहूर हुई कि इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

टूट गई शादी, साहिर-इमरोज के इर्द-गिर्द घूमती रही जिंदगी

अमृता की शादी प्रीतम सिंह से हुई थी जिसके चलते उनका नाम अमृता प्रीतम हुआ। लेकिन उनकी शादी नहीं चली। उनके बाद अमृता की नजदीकी गीतकार साहिर लुधियानवी के साथ बढ़ी। अपनी आत्मकथा में अमृता ने इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि एक रात साहिर घर आया था, वह बीमार था उसे बुखार था। मैंने उसके गले और छाती पर विक्स मला था। उस वक्त एक औरत के तौर पर मुझे ऐसा लगा था मैं पूरी जिंदगी ऐसे ही गुजार सकती हूं। अमृता प्रीतम ने साहिर के लिए कई कविताएं लिखीं, लेकिन इनका साथ भी हमेशा का नहीं हो सका।

Amrita Pritam: स्त्री मन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से टटोलने वाली लेखिका-कवयित्री थीं अमृता प्रीतम
साहिर और अमृता

फिर इमरोज (इंदरजीत सिंह) नामक एक चित्रकार अमृता के दोस्त बने और आजीवन उनके साथ रहे। इन दोनों का साथ लगभग 40 साल का रहा। हालांकि इमरोज को ये पता था कि अमृता के मन में साहिर बसते थे, फिर भी उन्होंने अपना प्रेम अभूतपूर्व तरीके से निभाया।

अमृता प्रीतम को मिले कई प्रतिष्ठित पुरस्कार

Amrita Pritam: स्त्री मन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से टटोलने वाली लेखिका-कवयित्री थीं अमृता प्रीतम
Getty Images

अमृता प्रीतम को 1956 में साहित्य अकादमी पुस्कार से नवाजा गया। साल 1969 में उन्हें पद्मश्री मिला। 1982 में उन्हें साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार उनकी रचना ‘कागज़ ते कैनवस’ के लिए दिया गया। 2004 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार पद्मविभूषण भी प्रदान दिया गया। 86 वर्ष की उम्र में 31 अक्तूबर 2005 को उनका निधन हुआ।

अमृता की कविताएं प्रेम में आकंठ डूबी हुई हैं। इमरोज के लिए उन्होंने ये कविता लिखी थी:

मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूंगी
मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं

या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी

Amrita Pritam: स्त्री मन को बेहद संजीदगी और खूबसूरती से टटोलने वाली लेखिका-कवयित्री थीं अमृता प्रीतम
अमृता और इमरोज

या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी

मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हे की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी!!


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