चुनावी स्याही- पहले चुनाव से अबतक नहीं बदला जिसका रंग

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लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर है। पूरे देश में होने वाले इस चुनाव में बड़े पैमाने पर खर्च और संसाधनों का इस्तेमाल होता है। इस साल लोकसभा चुनावों में 90 करोड़ लोग मतदान करने जा रहे हैं। ये लोग मिलकर तय करेंगे कि देश की सत्ता किसके हाथों में जाएगी।

चुनावों में स्याही की बहुत अहम भूमिका होती है। यह नीली स्याही हर मतदाता की अंगुली में लगाई जाती है। यह चुनावों में लोगों की भागदारी का सबूत होती है। इन चुनावों में 90 करोड़ लोगों की अंगुली पर लगाने के लिए 33 करोड़ रुपए की स्याही इस्तेमाल की जाएगी। चुनाव आयोग ने 26 लाख बोतल स्याही का ऑर्डर दिया है। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 11 अप्रैल से शुरू होगा और 7 चरणों से गुजरते हुए 19 मई को पूरा हो जाएगा। 23 मई को वोटों की गिनती होगी।


एक बोतल से लगता है 350 वोटरों पर निशान

चुनाव आयोग से जुटाई गई जानकारी के मुताबिक स्याही की एक बोतल 10 मिलीलीटर की होती है। इससे तकरीबन 350 वोटरों पर निशान लगता है। 2014 में 21.5 लाख बोतल स्याही ऑर्डर की गई थी। इस साल 4.5 लाख ज्यादा बोतलें मंगाई गई हैं। 2009 में 12 करोड़ रुपए की स्याही खरीदी गई थी। इसके मुकाबले इस साल तकरीबन तीन गुना अधिक कीमत पर स्याही मंगाई जा रही है। इस स्याही का निशान वोटर की अंगुली पर कम से कम 20 दिन तक रहता है।

सिर्फ इस कंपनी में बनती है यह खास स्याही

इस स्याही को बनाने का एकाधिकार मैसूर स्थित मैसूर पैंट्स और वॉर्निश लिमिटेड कंपनी को दिया गया है। कंपनी ने National Physical Laboratory of India के तैयार किए हुए एक केमिकल फॉर्मूले पर इस स्याही को तैयार किया है। यह स्याही कैसे बनाई जाती है यह एक रहस्य है। इस स्याही को पहली बार 1962 में इस्तेमाल किया गया था। तब 3.74 लाख बोतलों की कीमत 3 लाख रुपए रही थी।

नीली स्याही के निशान का रहता है क्रेज

चुनाव में इस नीली स्याही का बड़ा महत्व होता है। हर मतदाता की अंगुली पर यह निशान लगाया जाता है। इस निशान को लेकर मतदाताओं में खासा क्रेज होता है। असल में यह निशान इस बात का सबूत है के आपने लोकतंत्र के इस महापर्व में हिस्सा लिया है। लोग निशान लगे अंगुली की तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालते हैं। अक्सर बड़े नेता भी मतदान केंद्र से बाहर निकलकर इसी नीली स्याही लगी अंगुली को दिखाते हैं।



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