हर वर्ष ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ का उत्सव मनाया जाता है, इससे पहले 15 दिन तक भगवान जगन्नाथ आराम करते हैं। इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा कल यानी 4 जुलाई को होगी।
भगवान जगन्नाथ को श्री हरि विष्णु का अलौकिक स्वरूप माना जाता है। इस रथ यात्रा का आयोजन ओडिशा की धार्मिक नगरी पुरी में स्थित मंदिर ‘श्री जगन्नाथ पुरी’ में होता है। यह रथ यात्रा 9 दिनों तक चलेगी, इस दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा को जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर ले जाया जाएगा। गुंडीचा मंदिर में 7 दिनों तक विश्राम के बाद वे वापस अपने धाम जगन्नाथ पुरी में लौट आएंगे। आइये आपको बताते हैं इस रथ यात्रा से जुड़ी कुछ रोचक बातें ।
जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़े कुछ तथ्य
1. भगवान विष्णु ने पुरी में ‘पुरुषोत्तम नीलमाधव’ के रूप में अवतार लिया था और सभी के परम पूज्य देवता बन गए। भगवान जगन्नाथ का स्वरूप कबीलाई है, क्योंकि वह सबर जनजाति के इष्ट देवता हैं।
2. भगवान जगन्नाथ का मंदिर ‘श्री जगन्नाथ पुरी’ भारत ही नहीं, बल्कि पुरे विश्व में प्रसिद्द है। यह मंदिर भगवान विष्णु के आंठवे अवतार ‘श्री कृष्ण’ को समर्पित है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है, जिसे हिंदू पुराणों में ‘धरती का बैकुंठ’ कहा गया है।
3. कहा जाता है कि पुरी के लोग भगवान जगन्नाथ को अपना राजा और स्वयं को प्रजा मानते हैं। मान्यता के अनुसार, इस रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए अपने धाम से निकलते हैं।
4. जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए तीन विशेष रथ बनाए जाते हैं। सबसे पहले रथ पर बलराम, दूसरे रथ पर सुभद्रा और तीसरे पर भगवान जगन्नाथ सवार होते हैं।
5. ये तीनों रथ नीम की लकड़ियों से बनाए जाते हैं, इनको ‘दारु’ कहा जाता है। इन रथों की खास बात यह है कि इनके निर्माण में कील या किसी धातु का उपयोग नहीं किया जाता है।
6. रथों के निर्माण के लिए नीम की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाता है, जबकि इनका अक्षय तृतीया से शुरू होता है।
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7. भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है इसे ‘गरुड़ध्वज’ भी कहा जाता है। इस रथ में 18 पहिए लगे होते हैं और इसके ध्वज का नाम ‘त्रिलोक्यमोहिनी’ है। 45.6 फीट ऊंचे इस रथ को लाल और पीले रंग के कपड़े से ढंका जाता है।
8. भगवान जगन्नाथ के सारथी का नाम मातली है।
9. भगवान जगन्नाथ के भाई बलराम के रथ का नाम ‘तालध्वज’ है, जबकि उनकी बहन सुभद्रा के रथ का नाम ‘दर्पदलन’ है।
10. जगन्नाथ यात्रा में ‘पहंडी बिजे’ की प्रक्रिया होती है। दरअसल, रथ यात्रा के दिन तीनों मूर्तियों को श्रीमंदिर से बाहर लाने वाली प्रक्रिया पहंडी बिजे कहते हैं।
11. गुंडीचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहा जाता है। भगवान यहां पर 7 दिन विश्राम करते हैं। 7 दिन बाद वह भाई-बहन के साथ अपने धाम श्रीमंदिर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को ‘बाहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है।
12. इस रथ यात्रा को ‘गुंडीचा महोत्सव’ भी कहा जाता है।