Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: बाल गंगाधर तिलक की 100वीं पुण्यतिथि पर जानें उनके जिंदगी से जुड़ी खास बातेंं

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Know the special things related to his life on the 100th death anniversary of Bal Gangadhar Tilak

Bal Gangadhar Tilak Death Anniversary: भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में बाल गंगाधर का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। वे हिन्दुस्तान के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक थे। उन्होंने हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्‍त करवाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1 अगस्त को, पूरा भारत तिलक की 100 वीं पुण्यतिथि मनाएगा।

तिलक एक शिक्षक, अधिवक्ता, पत्रकार, विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और एक सुधारक थे। गंगाधर तिलक को बाद में लोकमान्य की उपाधि दी गई। इससे इन्हें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नाम से भी जाना जाने लगा। स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ उनका यही कथन लोगों के दिलों में संघर्ष जगा गया और उन्हें ‘लोकमान्य’ के नाम से प्रसिद्ध कर गया।


प्रारंभिक जीवन-

तिलक का जन्म महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरि) के चिक्कन गांव में 23 जुलाई 1856 को हुआ था। उनके पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। स्कूल के दिनों से ही बाल गंगाधर तिलक की गिनती मेधावी छात्रों में होती थी। वे पढ़ने के साथ-साथ प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम भी करते थे, अतः उनका शरीर स्वस्थ और पुष्ट था।

साल 1879 में तिलक ने बी.ए. तथा कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। घरवाले और उनके मित्र संबंधी यह आशा कर रहे थे कि तिलक वकालत कर धन कमाएंगे और वंश के गौरव को बढ़ाएंगे, परंतु तिलक ने प्रारंभ से ही जनता की सेवा का व्रत धारण कर लिया था। पेशे से शिक्षक और पत्रकार, तिलक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक समाज सुधारक और स्वतंत्रता कार्यकर्ता के रूप में की।

राजनीतिक सफ़र-

साल 1890 में तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए थे। कांग्रेस में शामिल होने के बाद तिलक ने पार्टी के स्वरूप को ही बदल डाला। इससे पहले कांग्रेस को ब्रिटिश राज को ठीक तरह से चलाने में इस्तेमाल होने वाले औजार की तरह ही देखा जाता था। लेकिन तिलक के राष्ट्रवाद ने कांग्रेस के चरित्र को बदल दिया और वह भारतीय जनमानस की वास्तविक अभिव्यक्ति का प्रतीक हो गई.।


इस दौरान तिलक पर देशद्रोह के आरोप भी लगे और वह जेल भी गए लेकिन ब्रिटिश सरकार के जुल्म, तिलक के हौसले और विश्वास को नहीं डिगा सके। कांग्रेस के भीतर भी तिलक को जोरदार विरोध का सामना करना पड़ा। लेकिन तिलक को भी बंगाल के बिपिन चंद्र पाल और पंजाब के लाला लाजपत राय जैसे देशभक्त नेताओं का साथ मिला। उनकी इस तिकड़ी को ”लाल बाल पाल” के नाम से जाना गया।

कु​रीतियों को खत्म करने का किया काम-

बालगंगाधर तिलक क स्वतंत्रता सरकारी अधिनियमों द्वारा समाज सुधार को अनुचित मानते थे। इन विचारों के कारण ही अँग्रेज लेखकों ने तिलक को रूढिवादी और प्रतिक्रियावादी कहा है। उन्होंने इंडिया स्पेशल कांफ्रेंस के वार्षिक अधिवेशनों में बाल विवाह के विरुद्ध प्रस्ताव रखे। तिलक ने विधवा विवाह के पक्ष में अपना प्रस्ताव रखा।

तिलक का कहना था कि समाज में जो भी सुधार हो रहे हैं उनकों पहले अपने जीवन में अपनाना चाहिये। बाद में समाज पर लागू करना चाहिये। तिलक ने स्पष्ट घोषणा की कि समाज सुधार में वेदेशी सत्ता का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये। क्योंकि विदेशी सत्ता द्वारा अधिनियम बना देने मात्र से समाज सुधार संभव नहीं है।

साल 1890 में बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस के साथ जुड़े और देश में व्याप्त कुरीतियों को खत्म करने की दिशा में काम करना शुरु किया। बताया जाता है कि तिलक की वजह से ही महाराष्ट्र में भव्य तरीके से गणेश उत्सव मनाया जाता है। उन्होंने सार्वजनिक उत्सवों के जरिए लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम किया।

साल 1916 में बाल ​गंगाधर तिलक ने होमरूल लीग की स्थापना की। इसका उदेश्य स्वराज्य की स्थापना करना है। उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को होमरूल लीग के उद्देश्यों को समझाया। इसके बाद 25 जुलाई 1856 को जन्में बाल गंगाधर तिलक का 1 अगस्त 1920 में निधन हो गया।

लोकमान्य तिलक के प्रेरणादायी विचार-

– स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।

– कमजोर बनने के बजाय शक्तिशाली बनें और यह विश्वास रखें कि भगवान हमेशा आपके साथ हैं।

– आपका लक्ष्य किसी जादू से पूरी नहीं होगा, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपको बस मेहनत करनी पड़ेगी।

– आप सिर्फ अपना कर्म करते जाइए, उसके परिणामों की चिंता मत करिए।

– अगर भगवान छुआछूत को मानते हैं तो मैं उन्हें भगवान नहीं कहूंगा।

– बड़ी उपलब्धियां कभी आसानी से नहीं मिलती और आसानी से मिलने वाली उपलब्धियां महान नहीं होतीं।

– मुश्किल समय में असफलताओं के डर से बचने की कोशिश मत कीजिए, ये तो निश्चित रूप से आपके रास्ते में आएंगे ही।

– आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान अवतार नहीं लेते, मेहनती व्यक्तियों के लिए ही वे अवतरित होते हैं, इसलिए कार्य करना शुरू करें।

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