Putrada Ekadashi 2020: जानें किस दिन है पुत्रदा एकादशी, क्यों रखा जाता है ये व्रत और क्या है इसका महत्व

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Know why the fast of Putrada Ekadashi is kept and what is its importance

Putrada Ekadashi 2020: इस बार श्रावण पुत्रदा एकादशी 30 जुलाई को मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस व्रत को विधिपूर्वक करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा अगर निःसंतान दम्पति यह व्रत करते हैं तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।

सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रावण पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है। पुराणों में इस व्रत का पुण्य वाजपेयी यज्ञ के समान बताया गया है। पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से श्रेष्ठ संतान की प्राप्त होती है। इसलिए इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी  भी कहा जाता है।


मुहुर्त-

एकादशी तिथि प्रारम्भ: जुलाई 30, 2020 को 01:16 AM

एकादशी तिथि समाप्त: जुलाई 30, 2020 को 11:49 PM

पुत्रदा एकादशी व्रत पारण समय: 05:42 AM  से 08:24 PM


व्रत विधि

पंचांग के अनुसार एकादशी की तिथि का आरंभ 30 जुलाई को होगा। सुबह स्नान करने के बाद सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन घी का दीपक जलाएं और पीले चीजों का अर्पण और भोग लगाएं क्योंकि भगवान विष्णु का पीले वस्त्र और पीले पुष्प प्रिय हैं। इस दिन व्रत के दौरान अन्न का सेवन नहीं किया जाता है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्व

एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। एकादशी व्रत के महामात्य के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्टिर और अर्जुन को बताया था। पौराणिक कथाओं  में इस व्रत को पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। इस व्रत को रखने से घर में सुख समृद्धि आती है और भगवान विष्णु की कृपा सदैव अपने भक्तों पर बनी रहती है।

व्रत कथा

पद्म पुराण में पुत्रदा एकादशी का वर्णन कुछ इस तरह से है कि द्वापर युग में, महिष्मती पुरी के राजा एक शांत और धार्मिक व्यक्ति थे, लेकिन वे पुत्र से वंचित थे। राजा को चितिंत देख उनके शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई। जिन्होंने तब बताया कि राजा अपने पिछले जन्म में एक क्रूर और दरिद्र व्यापारी (वैश्य) थे।

एकादशी के दिन दोपहर के समय वह बहुत प्यासा हो गए और एक तालाब पर पहुंचं जहां एक प्यासी गाय पानी पी रही थी। उसने उसे रोका और खुद पानी पी लिया। राजा का यह कृत्य धर्म के विपरीत था। पिछले जन्म में अपने अच्छे कर्मों के कारण वह इस जीवन में राजा बन गया, लेकिन उसे कोई संतान नहीं हुई।

तब महामुनि ने बताया कि यदि उनके सभी शुभचिंतक पूरी प्रक्रिया का सही तरीके से पालन करते हुए श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं, और राजा को इसका लाभ प्रदान करते हैं, तो वह निश्चित रूप उन्हें एक बच्चे के रूप में आशीर्वाद मिलेगा। इस प्रकार, उनके निर्देशों के अनुसार, राजा ने अपने लोगों के साथ यह व्रत किया और परिणामस्वरूप, उनकी रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया।

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