कॉर्बेट रिजर्व के आसपास की गरीब आबादी कल्याण निधि से वंचित (आईएएनएस विशेष)

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नई दिल्ली, 22 जून (आईएएनएस)| जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के इर्दगिर्द रहने वाले गरीबों के कल्याण के लिए निर्धारित बड़ी धनराशि को कथित रूप से राज्य के कोषागार में डाल दिया गया है। टाइगर रिजर्व के चारों ओर स्थित लक्जरी रिसॉर्ट्स और होटल अधिकारियों की मदद से सेस नहीं देते, जबकि पर्यावरण विकास के लिए उनसे कर वसूलने का प्रावधान है। ये सारी जानकारी एक शीर्ष वन्यजीव अधिकारी ने दी है। होटल उद्योग से प्राप्त पूरा राजस्व स्थानीय निवासियों पर खर्च करने, कठोर वन्यजीव कानूनों के कारण उनपर लागू प्रतिबंधों के लिए मुआवजा देने के लिए है।

उत्तराखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को 15 जून को लिखे एक पत्र में जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के कार्यवाहक निदेशक संजीव चतुर्वेदी ने कहा है कि रिजर्व से आया पर्यटन राजस्व स्थानीय आबादी के कल्याण पर नहीं खर्चा गया।


चतुर्वेदी ने वन्यजीव संरक्षण कानून का जिक्र करते हुए लिखा है, “कार्बेट टाइगर रिजर्व से पिछले चार सालों में प्राप्त पर्यटन राजस्व (37.09 करोड़ रुपये) स्थानीय निवासियों पर खर्च किया जाना था, लेकिन यह धनराशि कोषागार में डाल दी गई। सरकार का यह निर्णय राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। एनटीसीए के दिशानिर्देश में कहा गया है कि रिसॉर्ट्स और होटलों से प्राप्त होने वाले पर्यटन राजस्व और पर्यावरण विकास कर का इस्तेमाल लोगों के कल्याण और विकास पर किया जाएगा।”

पत्र में कहा गया है कि कुछ वर्षो तक टाइगर रिजर्व की 20 प्रतिशत आमदनी गरीबों के कल्याण पर खर्च की गई, लेकिन उसके बाद इसे बंद कर दिया गया।

एक व्हिसलब्लोअर नौकरशाह के रूप में लोकप्रिय संजीव चतुर्वेदी साल 2002 बैच के आईएफएस अधिकारी हैं। उन्होंने सरकार को सूचित किया कि स्थानीय होटल उद्योग से कर संग्रह के मामले में एनटीसीए के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो रहा है। एनटीसीए के आदेश के अनुसार, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अधिसूचित इलाके में स्थित प्रत्येक होटल से (श्रेणी के आधार पर) 500 रुपये से 3,000 रुपये प्रति रूम प्रति माह वसूले जाने थे।


लेकिन अधिकारियों ने कर से संबंधित दिशानिर्देशों के पालन का प्रयास नहीं किया। जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के आसपास 170 से अधिक होटल स्थित हैं, जिसमें दो दर्जन से अधिक लक्जरी रिसॉर्ट हैं।

जिम कॉर्बेट रिजर्व के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि नेपाल सहित कई देशों में वन्यजीव पर्यटन से अर्जित पूरा राजस्व स्थानीय लोगों के कल्याण और विकास पर खर्च किया जाता है। कानून के पीछे का बुनियादी सिद्धांत स्थानीय आबादी पर लागू प्रतिबंधों का उन्हें मुआवजा देना है।

भारत में कई टाइगर रिजर्व ने स्थानीय आबादी के कल्याण को नजरअंदाज कर दिया है। इस तरह की उदासीनता के कारण स्थानीय आबादी अक्सर बाघों और लुप्तप्राय वन्यजीवों का दुश्मन बन जाती है। लेकिन केरल में स्थित पेरियार नेशनल पार्क एक प्रमुख टाइगर रिजर्व है, जिसने एनटीसीए के दिशानिर्देशों का पालन किया है और उसने बड़ी धनराशि स्थानीय आबादी के कल्याण पर खर्च किया है।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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