कोरोना में पराली का धुआं जानलेवा, 800 हेक्टेयर खेतों में सरकार हटाएगी पराली

  • Follow Newsd Hindi On  

नई दिल्ली, 30 सितंबर (आईएएनएस)। पराली के धुएं से होने वाला प्रदूषण कोरोना महामारी के दौरान जानलेवा साबित हो सकता है। स्वयं दिल्ली सरकार ने यह बात स्वीकार की है। इसलिए अब दिल्ली सरकार लगभग 800 हेक्टेयर खेतों में पराली की समस्या सुलझाएगी।

दिल्ली के खेतों में किसानों से पराली जलाने की बजाय एक विशेष घोल इस्तेमाल करने की अपील की जाएगी। इसके लिए जो किसान स्वीकृति देंगे, दिल्ली सरकार अपने खर्चे से उन किसानों के खेतों में यह घोल डालेगी। इस घोल से धान के डंठल भी समाप्त होंगे और खेतों की गुणवत्ता में भी इजाफा होगा।


मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, “दिल्ली सरकार किसानों के घर जाएगी और जो किसान इसके लिए राजी होंगे, उनके खेतों में दिल्ली सरकार अपने खर्चे पर यह छिड़काव करेगी। इसके लिए दिल्ली सरकार किराए पर ट्रैक्टर लेगी। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 20 लाख रुपए का खर्चा आएगा। यह खर्च दिल्ली दिल्ली सरकार उठाएगी।”

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुताबिक यह प्रक्रिया 5 अक्टूबर से शुरू की जाएगी और 12- 13 अक्टूबर तक खेतों में यह घोल डाला जा सकेगा।

यह दिल्ली के पूसा कृषि संस्थान में आईएआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बायो डीकंपोजर तकनीक है। इस तकनीक के माध्यम से खेतों की पराली को महज एक कैप्सूल की मदद से हटाया जा सकता है।


मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, “हर साल अक्टूबर में किसान अपने खेत में खड़ी धान की पराली जलाने के लिए विवश होता है, उस जलाई गई धान की पराली का सारा धुंआ उत्तर भारत के दिल्ली सहित कई राज्यों में छा जाता है। इसका दुष्प्रभाव स्वयं किसान और उनके गांव पर भी पड़ता है। कोरोना की इस महामारी के समय में यह प्रदूषण जानलेवा हो सकता है, गांव, शहर, किसान सभी के लिए यह प्रदूषण खतरनाक है।”

चार कैप्सूल एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होते हैं। कैप्सूल के जरिए एक किसान लगभग 25 लीटर घोल बना लेता है, गुड़, नमक और बेसन डालकर यह घोल बनाया जाता है और जब किसान उस घोल को अपने खेत में छिड़कता है, तो पराली का जो मोटा मजबूत डंठल होता है, वह डंठल करीब 20 दिन के अंदर मुलायम होकर गल जाता है। उसके बाद किसान अपने खेत में फसल की बुवाई कर सकता है।

किसान अपने खेत में पराली जलाता है, तो उसकी वजह से खेत की मिट्टी खराब हो जाती है। मिट्टी के अंदर जो फसल के लिए उपयोगी वैक्टीरिया और फंगस होते हैं, वो सब जलाने की वजह से मर जाते हैं। इसलिए खेत में पराली जलाने की वजह से किसान को नुकसान ही होता है। इसके जलाने से पर्यावरण प्रदूषित अलग से होता है। वहीं, इस नई तकनीक का किसान इस्तेमाल करते हैं, तो इससे मिट्टी की उत्पादन क्षमता बढ़ती है और वह खाद का काम करता है।

सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा, “हालांकि इस बार बहुत देर हो चुकी है, लेकिन फिर भी सभी जिम्मेदार राज्य सरकारों को अपने राज्यों में रहने वाले किसानों को पराली जलाने का कोई वैकल्पिक उपाय देना चाहिए जिससे कि प्रदूषण न हो।”

— आईएएनएस

जीसीबी/एएनएम

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
(आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर फ़ॉलो और यूट्यूब पर सब्सक्राइब भी कर सकते हैं.)