कॉटन की क्वालिटी सुधारने, सिंचाई सुविधा वक्त की जरूरत : उद्योग संगठन

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नई दिल्ली, 5 फरवरी (आईएएनएस)। दुनिया में कॉटन (रूई) का सबसे बड़ा उत्पादक देश भारत से इस साल रूई की निर्यात मांग काफी कमजोर है। इसकी वजह कॉटन की खराब क्वालिटी है जिसकी मांग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कम है। लिहाजा, उद्योग से बाजार के जानकार कहते हैं कि सरकार ने कॉटन के आयात पर जो 10 फीसदी शुल्क लगाया है उसका उपयोग देश में कॉटन की क्वालिटी सुधारने और सिंचाई व प्रौद्योगिकी सुविधा पर खर्च किया जाना चाहिए।

विशेषज्ञ बताते हैं कि भारतीय कॉटन की क्वालिटी सुधारने के साथ-साथ उत्पादकता बढ़ाने पर भी जोर देने की आवश्यकता है क्योंकि दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में कॉटन की उत्पादकता काफी कम है।


दुनिया के देशों में कॉटन का औसत उत्पादन 940 किलो प्रति हेक्टेयर है जहां भारत में औसत उत्पादन सिर्फ 450 किलो प्रति हेक्टेयर है। इस प्रकार वैश्विक औसत उत्पादन के आधे से भी कम है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अतुल गणत्रा ने बताया कि ब्राजील में प्रति हेक्टेयर कॉटन का उत्पादन 1,200 किलो से 1,800 किलो होता है जबकि अमेरिका में 1,100 किलो प्रति हेक्टेयर।

गणत्रा कहते हैं कि देश में कॉटन की उत्पादकता बढ़ाने के लिए सिंचाई की सुविधा का विस्तार करना जरूरी है। उन्होंने बताया कि देश में सिर्फ 22 फीसदी कॉटन का क्षेत्र सिंचित है। सिर्फ उत्तर भारत में सिंचाई की सुविधा है जहां कॉटन की खेती होती है, जिसमें मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के कॉटन उत्पादक क्षेत्र शामिल है।


देश में कॉटन का सबसे बड़ा उत्पादक गुजरात है और इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है जहां सिंचाई की सुविधा नहीं होने से किसानों को मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है। लिहाजा, देश के 78 फीसदी कॉटन उत्पादक क्षेत्र में सिंचाई सुविधा का विस्तार करने की जरूरत है।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को आम बजट पेश करते हुए कॉटन के आयात पर 10 फीसदी शुल्क लगाने की घोषणा की।

कॉटन बाजार के जानकार केडिया एडवायजरी के डायरेक्टर अजय केडिया कहते हैं कि कॉटन आयात पर शुल्क लगने से घरेलू टेक्साइटल उद्योग के लिए विदेशी कॉटन महंगा हो जाएगा जिससे उनके तैयार माल की कीमत बढ़ जाएगी, लेकिन दूसरी तरफ घरेलू कॉटन की मांग में इजाफ होगा जिससे लोकल कॉटन के दाम में बढ़ोतरी है।

घरेलू वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर बीते तीन सत्रों में कॉटन के दाम में 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई।

हालांकि, अतुल गणत्रा कहते हैं कि आयात शुल्क से देश में कॉटन के आयात पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत कॉटन आयातक नहीं बल्कि निर्यातक देश है और इस साल देश में कॉटन का स्टॉक घरेलू खपत से ज्यादा है। उन्होंने कहा, भारत में अच्छी क्वालिटी का कॉटन आयात होता है जोकि उद्योग की जरूरत है। इसलिए आयात शुल्क लगने से भी उतना आयात होगा है जितनी उद्योग की जरूरत है।

हालांकि, आयात शुल्क से जो पैसा आएगा जोकि एग्रीकल्चर सेस का हिस्सा होगा उसका उपयोग देश में कॉटन उत्पादक क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा बढ़ाने और क्वालिटी व उत्पादकता सुधारने पर किया जाए तो इससे किसानों को फायदा होगा।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पिछले महीने के आकलन के अनुसार, चालू कॉटन सीजन 2020-21 (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान देश में कॉटन का उत्पादन 358 लाख गांठ (170 किलो प्रति गांठ) है जबकि खपत 330 लाख गांठ है और निर्यात 54 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि आयात 12 से 14 लाख गांठ। पिछले साल का बचा हुआ स्टॉक 125 लाख गांठ था जबकि इस सीजन के आखिर में 30 सितंबर को बचा हुआ स्टॉक 113.50 लाख गांठ रहने का अनुमान है।

–आईएएनएस

पीएमजे-एसकेपी

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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