कृषि सुधार पर तकरार : आज फिर किसानों को मनाने की कोशिश करेगी सरकार

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। कोरोना काल में मोदी सरकार ने कृषि और संबद्ध क्षेत्र में ऐतिहासिक नीतिगत सुधार को अमलीजामा पहनाने के लिए अध्यादेश लाकर जब पांच जून 2020 को तीन नये कानूनों को लागू किया, तब कहा गया कि केंद्र सरकार के इस कदम से किसानों को अपनी उपज देश में कहीं भी और किसी को भी बेचने की आजादी मिल गई है। मगर, इन कानूनों का विरोध जून में ही शुरू हो गया था जिसमें शुरूआत में मंडियों के कारोबारी और आढ़ती शामिल थे। बाद में किसान भी सड़कों पर उतर आए।

पहले पंजाब में किसान आंदोलन कर रहे थे और अब 26 नवंबर 2020 से किसान दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। आज (सोमवार) सरकार और किसान नेताओं के बीच सातवें दौर की वार्ता होने जा रही है जिसमें सरकार एक बार फिर किसानों को नये कानूनों के फायदे समझाकर उन्हें आंदोलन की राह छोड़ने के लिए मनाने की कोशिश करेगी।


संसद के मानसून सत्र में कृषि से संबंधित तीन अहम विधेयकों के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इन्हें कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के रूप सितंबर में लागू किया गया। मगर अध्यादेश के आध्यम से ये कानून पांच जून से ही लागू हो गए थे।

कानून के विरोध में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान सितंबर में फिर सड़कों पर उतरे और अक्टूबर में जब पंजाब और हरियाणा में आंदोलन जोर पकड़ने लगा तब केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को बातचीत के लिए बुलाया और 14 अक्टूबर को कृषि सचिव ने किसान नेताओं से बातचीत की। केंद्र सरकार से किसानों की पहली वार्ता थी। किसानों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन तेज कर दिया। पंजाब में रेल सेवा ठप हो गई। इसके बाद किसान संगठनों को मंत्री स्तर की वार्ता के लिए बुलाया गया।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलमंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री सोम प्रकाश के साथ 13 नवंबर को यहां विज्ञान-भवन में किसान नेताओं के बीच नये कृषि कानून समेत किसानों की अन्य मांगों पर बातचीत हुई। यह सरकार के साथ किसान नेताओं की दूसरी वार्ता थी जो बेनतीजा रही। हालांकि आगे वार्ता जारी रखने पर सहमति बनी। लेकिन किसानों ने 26 नवंबर को दिल्ली चलो का एलान कर दिया। पंजाब और हरियाणा के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान तय कार्यक्रम के अनुसार दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे। हालांकि सरकार ने उन्हें पहले तीन दिसंबर को फिर वार्ता के लिए आमंत्रित किया था। मगर, किसानों के आंदोलन को देखते हुए उन्हें एक दिसंबर को ही बुलाया गया और विज्ञान भवन में आयोजित तीसरे दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही क्योंकि किसान संगठनों के नेता तीनों कानूनों का निरस्त करवाने की अपनी मांग पर कायम रहे और सरकार उन्हें नये कानूनों से किसानों को होने वाले फायदे गिनाती रही।


तीन दिसंबर और पांच दिसंबर को किसान नेताओं के साथ क्रमश: चौथे और पांचवें दौर की बातचीत हुई। मगर इन वार्ताओं का भी कोई नतीजा नहीं निकला। हालांकि छठे दौर की वार्ता जारी रखने के लिए नौ दिसंबर की तारीख तय हुई। मगर, इससे पहले आठ दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ किसान नेताओं की एक कमेटी के साथ मुलाकात की जिसमें यह तय हुआ है कि सरकार उन्हें किसानों की समस्याओं के समाधान को लेकर प्रस्ताव भेजेगी और उस पर उनकी सहमति के बाद आगे की वार्ता की जाएगी। मगर, नौ दिसंबर को सरकार द्वारा दिए गए प्रस्तावों को किसान नेताओं ने खारिज कर दिया जिसके बाद दोनों तरफ से पत्राचार का दौर जारी रहा और 22 दिन के गतिरोध के 30 दिसंबर 2020 को एक बार फिर किसान नेता और सरकार के प्रतिनिधि बातचीत की मेज पर आए। केंद्रीय मंत्रियों के साथ हुई छठे दौर की इस वार्ता में सरकार ने किसानों की दो मांगे मान ली जोकि वायु गुणवत्ता प्रबंधन अध्यादेश, 2020 में पराली दहन के लिए भारी जुर्माना व जेल की सजा से किसानों को मुक्त रखने तथा प्रस्तावित विद्युत संशोधन विधेयक, 2020 में बिजली अनुदान से संबंधित है।

वहीं, किसानों की दो अन्य मांगों तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की प्रक्रिया और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की कानूनी गारंटी पर चर्चा के लिए चार जनवरी 2021 की तारीख तय की गई थी। यह सातवें दौर की औपचारिक वार्ता होगी जिसमें सरकार एक बार फिर किसानों को नये कृषि सुधार के फायदे बताने की कोशिश करेगी।

–आईएएनएस

पीएमजे-एसकेपी

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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