दरभंगा लोकसभा सीट: किसके सिर सजेगा ताज, कीर्ति आजाद, संजय झा या सन ऑफ मल्लाह?

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दरभंगा लोकसभा सीट: किसके सिर सजेगा ताज, कीर्ति आजाद, संजय झा या सन ऑफ मल्लाह?

दरभंगा को बिहार की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्ता के लिए मशहूर दरभंगा पर रामायण काल से ही राजा जनक तथा उत्तरवर्ती हिंदू राजाओं के आधिपत्य रहा है। इसलिए दरभंगा अपने समृद्ध अतीत और प्रसिद्ध दरभंगा राज के लिए जाना जाता है। बागमती नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन आदि महान विद्वानों की रचनास्‍थली रहा है।

दरभंगा बिहार का एक प्रमुख लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। इस लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। दरभंगा के उत्तर में मधुबनी, दक्षिण में समस्तीपुर, पूर्व में सहरसा एवं पश्चिम में मुजफ्फरपुर तथा सीतामढ़ी जिला है। यह क्षेत्र आम और मखाना के उत्पादन के लिए मशहूर है। यहां के शैक्षिक संस्‍थानों में मिथिला शोध संस्थान, मखाना राष्‍ट्रीय शोध केंद्र, दरभंगा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, महिला अभियंत्रण महाविद्यालय आदि प्रमुख हैं। बिहार की प्रमुख रियासतों में एक था दरभंगा राज। लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह अपनी ही रियासत के तहत आने वाले दरभंगा नॉर्थ सीट से 1952 में हुए देश का पहला आम चुनाव हार गए थे।


वक्त के साथ बदली राजनीति

दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह संविधान सभा के सदस्य भी थे। इस सीट से निर्वाचित श्रीनारायण दास, सुरेंद्र झा सुमन और एमएए फातमी ही इस संसदीय क्षेत्र के निवासी रहे हैं। अन्य सांसद दरभंगा के लिए बाहरी ही रहे हैं। बहरहाल, बीतते दौर के साथ दरभंगा ने कई बदलाव देखे हैं। कभी कांग्रेस की राजनीति का गढ़ रहा दरभंगा वक्त के साथ कभी समाजवादी राजनीति की प्रयोगशाला बनी तो कभी दक्षिणपंथी राजनीति की कर्मभूमि बन गई। 1971 तक दरभंगा लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रहा।

दरभंगा ने दिए ललित नारायण मिश्रा जैसे दिग्गज नेता

बिहार के दिग्गज नेता रहे और भूतपूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।1980 में कांग्रेस यहां आखिरी बार जीती थी। तब पंडित हरिनाथ मिश्र लोकसभा चुनाव जीते थे। उसके बाद यहां से समाजवादी और संघ की पृष्ठभूमि के उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं। चुनावी राजनीति में दरभंगा का इतिहास बहुत पुराना है। ब्रिटिश भारत में यहां पहली बार 1893 में चुनाव हुआ था। इस चुनाव में दरभंगा राज परिवार के लक्ष्मेश्वर सिंह निर्वाचित हुए थे। इसके बाद कई चुनावों में दरभंगा राज परिवार के सदस्य जीतते रहे थे। कालांतर में दरभंगा की जनता ने अपने क्षेत्र से कई दिग्गज नेताओं को लोकसभा और विधानसभा भेजा। ये अलग-अलग सरकारों में मंत्री भी रहे।

लोकसभा चुनाव का इतिहास

लोकसभा चुनाव 1957 में यहां से पीएसपी के अब्दुल जलील जीतकर दिल्ली गए थे। 1972 में यहां से ललित नारायण मिश्रा चुनाव जीते थे। मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने पहले जनता दल और बाद में आरजेडी के टिकट पर यहां से 4 बार 1991, 1996, 1998 और 2004 में चुनाव जीता। 1999 में पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद यहां से मैदान में उतरे और जीतकर लोकसभा की सदस्यता हासिल की। लेकिन 2004 में राजद के टिकट पर फिर मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने यहां से फतह हासिल की। इसके बाद 2009 और 2014 के दो चुनावों में कीर्ति आजाद ने भारी अंतर से ये सीट जीती। दोनों बार उनके सामने राजद के नेता मोहम्मद अली अशरफ फातमी मैदान में थे।


क्या कहता है जातीय समीकरण

दरभंगा को यादव, मुसलमान और ब्राह्मणों का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। इस सीट पर मुसलमान वोटरों की संख्या साढ़े तीन लाख है, जबकि यादव व ब्राह्मण वोटरों की संख्या तीन-तीन लाख के करीब है। सवर्ण जातियों में राजपूत व भूमिहार वोटरों की आबादी एक-एक लाख के करीब है।

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इस क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 1,307,067 है। इसमें महिला मतदाताओं की संख्या 601,794 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 705,273 है। दरभंगा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- गौरा बौरम, बेनीपुर, अलीनगर, दरभंगा ग्रामीण, दरभंगा और बहादुरपुर। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 3 सीट राजद के खाते में गए, 2 जदयू और एक सीट भाजपा ने जीती। माना जाता है कि यहां यादव, मुस्लिम और ब्राह्मण जाति के वोटर निर्णायक होते हैं।

क्या हैं दरभंगा के मुद्दे

जाति-धर्म की परवान चढ़ती राजनीति और सामाजिक आंदोलनों का गवाह रहे दरभंगा की राजनीति में हर दौर में विकास ही मुख्य मुद्दा रहा है। दरभंगा में कमला, बागमती, कोशी, करेह औ‍र अधवारा नदियाँ बाढ़ के रूप में हर वर्ष लाखों लोगों के लिए तबाही लाती हैं। विडंबना ये है कि एक से एक कद्दावर नेताओं की कर्मभूमि रही यह धरती आज भी बाढ़ की विभीषिका से निजात नहीं पा सकी। रोजगार के लिए पलायन आज भी यहां की सबसे बड़ी समस्या है।

इस बार मैदान में कौन-कौन

दरभंगा से निवर्तमान सांसद पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद हैं। कीर्ति बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे होते हैं और दरभंगा से भाजपा के टिकट पर 3 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट बोर्ड में घोटाले के आरोप लगाते हुए उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसके बाद कीर्ति आजाद को भाजपा से निलंबित कर दिया गया। अब कीर्ति आजाद कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं और महागठबंधन उम्मीदवार के रूप में 2019 चुनाव में उतरने की पूरी तैयारी में हैं।

बहरहाल, दरभंगा लोकसभा सीट पर इस बार का लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहा है। एक तरफ कीर्ति झा आजाद कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। वहीं दूसरी तरफ खुद को ‘सन ऑफ मल्लाह’ कहने वाले और बॉलीवुड फिल्मों के सेट डिजायनर रहे मुकेश सहनी भी टिकट की आस लगाए हुए हैं। 38 साल के सहनी की पार्टी का नाम विकासशील इंसान पार्टी है और वह महागठबंधन का हिस्सा हैं। हालाँकि, दरभंगा सीट न मिल पाने की स्थिति में वह मुजफ्फरपुर से भी किस्मत आजमा सकते हैं। इसके अलावा पिछले दो चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे राजद के मोहम्मद अली अशरफ फातमी के मधुबनी से चुनाव लड़ने की संभावना है। राजग खेमे की बात करें तो इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए जदयू के संजय झा अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।


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