बेंगलुरु दक्षिण सीट: 1991 से है भाजपा का कब्जा, अनंत कुमार के निधन से खाली है सीट

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बेंगलुरु दक्षिण सीट: 1991 से है भाजपा का कब्जा, अनंत कुमार के निधन से खाली है सीट

2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए जो राज्य सबसे ज्यादा अहम साबित होने वाले हैं, उनमें एक राज्य कर्नाटक भी है। दक्षिण का एक मात्र राज्य कर्नाटक ही है, जहां भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाई है। बाकी के राज्यों में भाजपा अब भी अपनी जगह बनाने के लिए कोशिश ही कर रही है।

2014 में अगर देश में भाजपा ने पूरा बहुमत पाया तो इसमें कर्नाटक का बड़ा योगदान था। कर्नाटक की 28 में से 17 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था। हालांकि 2009 के मुकाबले 2 सीटें फिर भी कम थीं। कांग्रेस ने 2009 के मुकाबले 3 सीटें ज्यादा हासिल कर 9 सीटें जीती थीं। जेडीएस को 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।


कर्नाटक में कुछ सीटें ऐसी हैं, जो परंपरागत रूप से भाजपा का गढ़ मानी जाती हैं। बेंगलुरु दक्षिण सीट भी इन्हीं में से एक है। इस पर 1991 से लेकर अब तक भाजपा का ही कब्जा रहा है।

दिलचस्प मुकाबले की पटकथा तैयार  

बेंगलुरु दक्षिण लोकसभा सीट पर इसबार दिलचस्प मुकाबले की पटकथा तैयार हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इसबार भी देश की दो प्रमुख पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस इस सीट को जीतने के लिए रणनीति बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ने जा रही है। अबतक मिले संकेतों के मुताबिक इस सीट पर भाजपा-कांग्रेस की दो महिला उम्मीदवारों में सीधी चुनावी टक्कर हो सकती है।


भाजपा के दिग्गज नेता रहे अनंत कुमार बंगलुरु दक्षिण लोकसभा सीट का छह बार प्रतिनिधित्व कर चुके थे। उनके असामयिक निधन के बाद पार्टी के सामने अपनी इस परंपरागत सीट को बचाए रखने की चुनौती है। जानकारी के मुताबिक भाजपा इस बार यहां से अनंत कुमार की धर्मपत्नी तेजस्विनी को चुनाव मैदान में उतार सकती है।

जबकि कांग्रेस इस सीट पर इन्फोसिस के सह संस्थापक नंदन नीलकेणि की धर्मपत्नी रोहिणी नीलकेणि को टिकट देकर मैदान में उतार सकती है। 2014 के चुनाव में अनंत कुमार ने कांग्रेस उम्मीदवार नंदन नीलेकणि को 2.28 लाख वोट से हराया था।

बेंगलुरु दक्षिण लोकसभा सीट का इतिहास

कर्नाटक में कुछ सीटें ऐसी हैं, जो परंपरागत रूप से भाजपा का गढ़ मानी जाती हैं। बेंगलुरु दक्षिण सीट भी इन्हीं में से एक है। इस पर 1991 से लेकर अब तक भाजपा का ही कब्जा रहा है। 1996 से भाजपा के दिवंगत नेता अनंत कुमार यहां से लगातार जीतते रहे। 1977 में कर्नाटक राज्य बनने के बाद यहां से सिर्फ एक बार कांग्रेस जीत पाई है।

1991 में कांग्रेस से ये सीट पहली बार भाजपा के केवी गौड़ा ने छीनी थी। उसके बाद 1996 में इस सीट से भाजपा के कद्दावर नेता अनंत कुमार इस सीट से ऐसे जुड़े कि उन्हें कांग्रेस या जेडीएस कोई भी नेता हरा नहीं पाया। लेकिन पिछले साल अनंत कुमार के निधन के कारण ये सीट खाली है। भले ये सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती हो, लेकिन इस बार पार्टी को यहां पर एक भरोसेमंद चेहरा खोजना सबसे बड़ी चुनौती होगी। सबकी निगाहें इसी बात पर होंगी कि इस सीट से भाजपा किसे अपना उम्मीदवार बनाती है।

अनंत कुमार पहली बार इस सीट पर मात्र 35.08 फीसदी वोट लेकर जीते। लेकिन दो साल बाद 1998 में हुए चुनाव में उन्हें 53 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार डीपी शर्मा को 1.80 लाख वोट से हराया। 2014 के चुनाव में उन्हें सबसे ज्यादा 56.88 फीसदी वोट मिले। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार नंदन नीलेकणि को 2.28 लाख वोट से हराया।

कर्नाटक राज्य बनने के बाद कांग्रेस मात्र एक बार जीती

बेंगलुरु सीट कांग्रेस के लिए लकी नहीं रही। खासकर कर्नाटक राज्य बनने के बाद। 1977 के बाद इस सीट पर कांग्रेस को सिर्फ एक बार जीत मिली है। 1989 में कांग्रेस के आर गुंडुराव ने ये सीट जीती थी, उसके बाद कभी भी यहां कांग्रेस को जीत नहीं मिली।

दिवंगत अनंत कुमार की पत्नी तेजस्विनी का दावा मजबूत 

बेंगलुरु दक्षिण लोकसभा सीट से 6 बार के भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे अनंत कुमार के निधन के बाद उनकी सीट से उनकी पत्नी तेजस्विनी अनंत कुमार का दावा सबसे मजबूत है। कर्नाटक भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री आर अशोका ने कहा कि भाजपा विधायक, पार्षद और कार्यकर्ता सामूहिक तौर पर बेंगलुरु दक्षिण से तेजस्विनी को उम्मीदवार बनाए जाने की मांग कर रहे हैं व कार्यकर्ताओं की मांग पार्टी के आला नेतृत्व तक पहुंचा दी गई है।

सामाजिक जीवन में तेजस्विनी सक्रिय तौर पर अदम्य चेतना एनजीओ का संचालन करती रही हैं। तेजस्विनी ने एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी में बतौर साइंटिस्ट साल 1993 से 1997 तक काम किया है। वहीं वे लाइट कॉम्बेट एयरक्रॉफ्ट प्रोजेक्ट में भी शामिल रहीं। छात्र जीवन में तेजस्विनी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य रहीं और प्रदेश संयुक्त सचिव और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रही हैं।

कांग्रेस से नंदन नीलकेणि की पत्नी रोहिणी नीलकेणि की है संभावना

वहीं कांग्रेस इस सीट पर इन्फोसिस के सह संस्थापक नंदन नीलकेणि की धर्मपत्नी रोहिणी नीलकेणि को टिकट देकर मैदान में उतार सकती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इसके लिए न केवल रोहिणी नीलकेणि से संपर्क किया है बल्कि इसके लिए पहले दौर की बातचीत भी हो चुकी है।

वोक्कालिगा और ब्राह्मण सबसे ज्यादा प्रभावशाली वोटर्स

इस सीट पर सबसे ज्यादा प्रभावशाली वोटर्स वोक्कालिगा और ब्राह्मण समुदाय है। 2009 के मुताबिक इस सीट पर 4.5 लाख वोक्कालिगा वोटर्स हैं। 3.5 लाख ब्राह्मण वोटर्स हैं। वहीं 2 लाख कुरबा समुदाय के वोटर्स हैं। 2 लाख रेड्डी और 1 लाख मुस्लिम समुदाय के वोटर हैं। क्रिश्चियन समुदाय के यहां पर 2 लाख वोट हैं। अनंत कुमार ब्राह्मण समुदाय से आते थे।

गौरतलब है कि पिछले साल 12 नंवबर को 59 साल की उम्र में अनंत कुमार का निधन हुआ था। वह कैंसर से पीड़ित थे। अनंत कुमार की दो बेटियां हैं। साल 2014 के हलफनामे के मुताबिक उनके पास करीब 4.5 करोड़ की संपत्ति है। अनंत कुमार ने हुबली के लॉ कॉलेज से कानून की शिक्षा हासिल की थी।

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