देश में चुनाव का मौसम है। सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी ऊर्जा चुनाव जीतने में लगा रहे हैं। चुनावी मैदान में उतरा हर उम्मीदवार अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए तमाम तरह के तिकड़म लगाते हैं। जिनकी वजह से चुनावी मुकाबले में हारते नजर आ रहे उम्मीदवार भी बाजी मार ले जाते हैं। अक्सर ऐसा होता रहा है कि हर प्रत्याशी अपने प्रतिद्वंद्वी का हमनाम ढूंढने की कोशिश करता है ताकि नाम की समानता के चलते कुछ लोग प्रमुख उम्मीदवार की बजाय उसी नाम के निर्दलीय उम्मीदवार को वोट दे देते हैं और वोट कट जाने से वह उम्मीदवार हार जाता है।
ऐसा ही वाकया साल 2014 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के रायगढ़ सीट पर देखने को मिला। इस चुनाव में एनसीपी नेता सुनील तटकरे को शिवसेना के अनंत गीते के हाथों महज 1944 वोटों से हार झेलनी पड़ी थी। इस हार के लिए उनके हमनाम ‘सुनील तटकरे’ जिम्मेदार माने गए थे।
पिछले चुनाव से सबक लेते हुए सुनील तटकरे ने इस बार वही चाल चली है और अपने प्रतिद्वंद्वी अनंत गीते के चार हमनाम ढूंढ़ निकाले हैं। इस खेल में पहले से ही माहिर रहे अनंत गीते भी कहाँ पीछे रहने वाले थे। उन्होंने सुनील तटकरे नाम के तीन प्रत्याशियों को ढूंढ़ लाया है। अब इस पैंतरे का फायदा किसे होगा, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा।
आपको बता दें कि पिछले आम चुनाव में रायगढ़ से ‘सुनील तटकरे’ नामक एक उम्मीदवार बतौर निर्दलीय किस्मत आजमा रहा था। वर्ष 2014 में तटकरे के हमनाम ने 9847 वोट प्राप्त किए थे, जबकि वे मात्र 1944 वोटों से चुनाव हार गए थे। साफ है कि उस हमनाम तटकरे ने गीते को फायदा पहुंचाया था। वर्ष 2014 के चुनाव में राकांपा के सुनील तटकरे को 3 लाख 94 हजार 7 वोट मिले थे, फिर भी वे हार गए थे। किस्मत देखिए कि जीतने के बाद गीते पूरे पांच साल तक केंद्र में कैबिनेट मंत्री रहे।
हालाँकि, गीते पर आरोप लगते रहे हैं कि पांच सालों के दौरान क्षेत्र में वह कम ही दिखे हैं। लेकिन इस बार तटकरे को शेकापा का समर्थन प्राप्त है। इसलिए उनकी जीत के आसार ज्यादा माने जा रहे हैं। पिछले चुनाव में शेकापा के रमेश ने राकांपा और शिवसेना को कड़ी टक्कर देते हुए एक लाख 97 हजार वोट प्राप्त किए थे। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार उनके वोट तटकरे को मिलेंगे।
गौरतलब है कि रायगढ़ कभी छत्रपति शिवाजी की राजधानी रही थी। रायगढ़ का किला काफी दुर्गम माना जाता है। रायगढ़ लोक सभा सीट (रायगड लोकसभा मतदारसंघ) पर शिवसेना का वर्चस्व है, लेकिन विधानसभा सीटों पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और पीजेंट एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया (PWPI) का दबदबा है। रायगढ़ लोक सभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीट आती हैं। इस लोक सभा सीट पर पीडब्ल्यूपी और एनसीपी के विधायकों का कब्जा है। शिवसेना सिर्फ एक सीट पर है और बीजेपी, कांग्रेस यहां से गायब हैं।