जयंती विशेष: क्यों अधूरी रह गई थी सुरैया और देव आनंद की प्रेम कहानी?

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सुरैया हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अदकारा और गायिका थीं। 1940 और 1950 के दशक में बॉलीवुड की लीडिंग लेडी रहीं सुरैया की आज जयंती है।

सुरैया का जन्म 15 जून 1929 को लाहौर में हुआ था। उनका असली नाम सुरैय्या जमाल शेख था। जब वह 1 साल की थीं, तब उनका परिवार मुंबई आकर बस गया था। सुरैया बचपन में राज कपूर और मदन मोहन के साथ ऑल इंडिया रेडियो (All India Radio) पर गाया करती थीं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1936 में आई फिल्म ‘मेडम फैशन’ से एक बाल कलाकार के तौर पर की। 12 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला गाना ‘नई दुनिया’ गाया था। आगे चल वह हिंदी सिनेमा की जानी मानी अदाकारा बनीं।


अपने करियर के दौरान उन्होंने 67 फिल्मों में काम किया और 338 गाने गाये। उन्हें अपनी नार्थ इंडियन मुस्लिम अदाकारी के लिए जाना जाता था। सुरैया को ‘मलिका-ए- हुस्न’ (Queen of Beauty), ‘मलिका-ए- तरन्नुम’ (Queen of Melody) और ‘मलिका-ए- अदाकारी’ (Queen of Acting) जैसे उपनाम मिले हुए थे। अपनी अदाकारी के लिए उन्होंने कई अवार्ड भी जीते। 31 जनवरी 2004 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था।

देव आनंद और सुरैया

सुरैया अपनी फिल्मों और गानों के अलावा सबसे ज्यादा जिस बात के लिए चर्चा में रहीं, वो थी उनकी और देव आनंद की प्रेम कहानी। सुरैया देव आनंद का पहला प्यार थी। दोनों की लव स्टोरी बॉलीवुड की सबसे चर्चित लव स्टोरीज में से एक है, लेकिन इसका अंत दुखद रहा था।


देव आनंद जब इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में लगे हुए थे, तब तक सुरैया एक बड़ी स्टार बन चुकी थीं। दोनों ने साथ में 7 फिल्मों में काम किया था। एक फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद ने सुरैया को डूबने से बचाया था, जिसके बाद ही दोनों की प्रेम कहानी शुरू हुई। दोनों एक- दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन मजहब की दीवार के चलते दोनों की प्रेम कहानी आगे नहीं बढ़ पायी। अपनी नानी की मर्जी न होने के कारण सुरैया ने देव आनंद के शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। लेकिन देव आनंद से शादी नहीं हुई, तो सुरैया ने उम्र भर अविवाहित रहने का फैसला किया।

अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ (Romancing with Life) में देव आनंद ने अपनी लव स्टोरी का जिक्र भी किया है। देवानंद ने लिखा कि ‘काम के दौरान सुरैया से मेरी दोस्ती गहरी होती जा रही थी। धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई। लेकिन मजहब अलग होने के कारण हम कभी एक नहीं हो पाए।’

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