सूर्य देव इस समय धनु राशि में गोचर कर रहे हैं। सूर्य के राशि परिवर्तन को ही संक्रांति कहा जाता है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है, तो इस राशि परिवर्तन को मकर संक्रांति कहा जाता है। पंचांग के अनुसार आज यानी 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। धनु राशि से सूर्य देव निकल कर मकर राशि में इस दिन प्रवेश करेंगे। मान्यताओं के अनुसार इस दिन सूर्य देव की उपासना की जाती है। इस दान का विशेष महत्व माना गया है।
मकर संक्रांति के दिन मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थिति प्राचीन नवग्रह मंदिर का काफी महत्व है। मकर संक्रांति के दिन यहां सूर्य देव की प्रतिमा पर सूर्य की पहली किरण पड़ती है। यह देश का दूसरा ऐसा मंदिर है, जहां सूर्य की पहली किरण पड़ती है। नवग्रहों की प्राचीन मूर्तियां इस मंदिर में चारों ओर स्थापित हैं। इसी कारण से देश भर से श्रद्धालु यहां भगवान के दर्शन के लिए आते हैं।
प्राचीन नवग्रह मंदिर में मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले ही भक्तों की भीड़ जमा होनी शुरू हो जाती है। मकर संक्रांति पर सूर्य मंदिर में सूरज की पहली किरण मंदिर के गुंबद से होते हुए भगवान सूर्य की मूर्ति पर पड़ती है। सुबह तीन बजे से संक्रांति पर प्राचीन नवग्रह मंदिर में लोगों की भीड़ लग जाती है।
प्रसिद्ध नवग्रह मंदिर के पुजारी लोकेश जागीरदार की मानें तो, मकर संक्रांति, सूर्य की आगवानी का पर्व होता है। नवग्रह मंदिर सूर्य प्रधान है। यहां गर्भग्रह में सूर्य की मूर्ति बीच में विराजित है, मूर्ति के आसपास अन्य ग्रह हैं। मान्यता है कि मकर संक्रांति पर सूर्य की पूजा की जाती है, तो नवग्रह की कृपा होती है, वर्षभर के लिए हमें ग्रहशांति का फल मिलता है। प्राचीन ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार मंदिर की रचना की गई है।
नवग्रह मंदिर की वजह से खरगोन का नवग्रह नगरी भी कहा जाता है। इस मंदिर की स्थापना 600 साल पहले हुई थी। इसकी स्थापना शेषप्पा सुखावधानी वैरागकर ने की थी। शेषप्पा मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले थे। वह अष्टम् महाविद्या बगलामुखी देवी के उपासक थे।
इस मंदिर की रचना प्राचीन ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार की गई है। मंदिर में प्रवेश करते समय सात सीढ़ियां हैं, जो सातों वार का प्रतीक मानी जाती हैं। इसके बाद ब्रह्मा विष्णु स्वरूप के रूप में मां सरस्वती, श्रीराम और पंचमुखी महादेव के दर्शन होते हैं। इसके बाद गर्भगृह में जाने के लिए जहां 12 सीढ़ियां उतरनी होती है, जो 12 महीने की प्रतीक हैं। गर्भ गृह में नवग्रह का दर्शन होता है। इसके बाद दूसरे मार्ग पर फिर 12 सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हैं, जो 12 राशियों की प्रतीक हैं। इस प्रकार से सात वार, 12 महीने, 12 राशियां और नवग्रह इनके बीच में हमारा जीवन चलता है और उसी आधार पर मंदिर की रचना की गई है।