Mahalakshmi Vrat 2019: महालक्ष्मी के सोरहिया व्रत का समापन 21 सितंबर दिन शनिवार को है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से महालक्ष्मी का सोरहिया व्रत (16 दिन का महापर्व) प्रारंभ हुआ था, जिसका समापन शनिवार को होगा। जो लोग बाकी दिन व्रत नहीं रहे हैं, वे शनिवार को महालक्ष्मी का व्रत रख सकते हैं। इससे भी उन पर माता लक्ष्मी की कृपा बनेगी, जिससे सुख, समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होगी। इस व्रत को हाथीअष्टमी या गजलक्ष्मी के व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
महालक्ष्मी व्रत का महत्व
इस व्रत को करने से दरिद्रता दूर होती है। धन और वैभव की देवी माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा करने पर सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इतना ही नहीं, उनकी पूजा से श्रीहरि भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं। भक्तों को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलने के साथ ही भगवान विष्णु की भी कृपा प्राप्त होती है।
महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि
संध्याकाल में घर के पूजाघर में एक चौकी की स्थापना करें। उसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर केसर मिले चन्दन से अष्टदल बनाएं। अष्टदल पर चावल रखकर उसके ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। स्थापित कलश के पास पास हल्दी से कमल बनाकर उसके ऊपर माता लक्ष्मी की मूर्ति की स्थापना करे। मिट्टी के हाथी की प्रतिमा उसके ऊपर विराजित कर उसको सोने के गहनों से सजाएं। इस समय नया खरीदा गया सोना हाथी पर रखने से पूजा का विशेष लाभ मिलता है।
अपने सामर्थ्य के अनुसार मिट्टी या सोने, चांदी का हाथी खरीदकर लाया जा सकता है। चांदी के हाथी का महत्व सोने के हाथी से ज्यादा होता है इसलिए कोशिश करें कि पूजा के लिए चांदी के हाथी की प्रतिमा घर पर लेकर आएं। देवी महालक्ष्मी के समक्ष श्रीयंत्र रखें और उसके बाद कमल के फूल और दूसरे सुगंधित लाल फूलों से महालक्ष्मी का पूजन करें। साथ में सोने-चांदी के सिक्के पूजा में रखें। स्वादिष्ठ मिठाई और ऋतुफलों का माता को भोग लगाएं।
माता के अष्टस्वरूपों का ध्यान करें और देवी के अष्टस्वरूपों की कुमकुम, गुलाल, अबीर, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, वस्त्र और सुगंधित फूल समर्पित कर पूजा करें। माता के समक्ष सुगंधित धूपबत्ती जलाए और गाय के घी का शुद्ध दीपक लगाएं। देवी महालक्ष्मी की आरती करें। पूजास्थल पर बैठकर श्रीसूक्त, कनकधारा स्त्रोत, महालक्ष्मी स्त्रोत में से किसी एक का या संभव हो तो सभी का पाठ करें।