मन में ज़हर डॉलर के बसा के,
फिरती है भारत की अहिंसा।
खादी की केंचुल को पहनकर,
ये केंचुल लहराने न पाए।
ये भी है हिटलर का चेला,
मार लो साथी जाने न पाए।
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू,
मार लो साथी जाने न पाए।
ये वही कविता है जो मजरूह सुल्तानपुरी (majrooh sultanpuri) ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु के लिए लिखा था और इसी कविता के लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा था। मजरूह सुल्तानपुरी का नाम बॉलीवुड के सबसे सफल गीतकारों के लिस्ट में शामिल है। मजरूह शायर भी थे। इन्होंने बॉलीवुड में एक से बढ़कर एक गीत लिखा है।
मजरूह का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था। इन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए एक से बढ़ कर एक गीत लिखे हैं। पेश हैं उनके कुछ सदाबहार गीत-
इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल (Dharam Karam (1975))
इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल
दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
इक दिन बिक जायेगा …
ला ला ललल्लल्ला
(अनहोनी पग में काँटें लाख बिछाए
होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए ) \- (२)
ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी
फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये, तरम्पम,
धारा, तो बहती है, बहके रहती है
बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल
एक दिन …
(परदे के पीछे बैठी साँवली गोरी
थाम के तेरे मेरे मन की डोरी ) \- (२)
ये डोरी ना छूटे, ये बन्धन ना टूटे
भोर होने वाली है अब रैना है थोड़ी, तरम्पम,
सर को झुकाए तू, बैठा क्या है यार
गोरी से नैना जोड़, फिर दुनिया से डोल
एक दिन …
क्या हुआ तेरा वादा (Hum Kisise kum nahi)
क्या हुआ तेरा वादा, वो क़सम वो इरादा (२)
भूलेगा दिल, जिस दिन तुम्हें
वो दिन जिन्दगी का आखिरी दिन होगा
क्या हुआ तेरा वादा, वो क़सम वो इरादा
याद है मुझको तूने कहा था
तुमसे नहीं रुठेंगे कभी
फिर इस तरह से आज मिले हैं
कैसे भला छूटेंगे कभी
तेरी बाहों में बीते हर शाम
के तुझे कुछ भी याद नहीं
क्या हुआ …
ओ कहने वाले मुझको फ़रेबी
कौन फ़रेबी है ये बता
हो जिसने गम लिया प्यार की खातिर
या जिसने प्यार को बेच दिया
नशा दौलत का ऐसा भी क्या
बेवफ़ा ये तुझे याद नहीं
क्या हुआ …
भूलेगा दिल जिस दिन तुम्हें
वो दिन जिन्दगी का आखिरी दिन होगा
क्या हुआ तेरा वादा, वो कसम वो इरादा
पत्थर के सनम (Patthar Ke Sanam 1967)
पत्थर के सनम, तुझे हमने, मुहब्बत का ख़ुदा जाना
बड़ी भूल हुई, अरे हमने, ये क्या समझा ये क्या जाना
चेहरा तेरा दिल में लिये, चलते चले अंगारों पे
तू हो कहीं, सजदे किये हमने तेरे रुख़सारों पे
हम सा न हो, कोई दीवाना, पत्थर के …
सोचा न था बढ़ जाएंगी, तनहाइयां जब रातों की
रस्ता हमें दिखलाएंगी, शमा-ए-वफ़ा इन आँखों की
ठोकर लगी, फिर पहचाना, पत्थर के …
ऐ काश के होती ख़बर तूने किसे ठुकराया है
शीशा नहीं, सागर नहीं, मंदिर-सा इक दिल ढाया है
सारा आसमान, है वीराना, पत्थर के …