मधुमेह के इलाज में आयुर्वेदिक दवाओं के विकास पर जोर

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 नई दिल्ली, 13 नवंबर (आईएएनएस)| मधुमेह यानी शुगर की बीमारी देश में तेजी से पैर पसार रही है और यह बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनकर उभर रही है।

 ऐसे में जिन बीमारियों में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति प्रभावी साबित नहीं हो पा रही है, उनके लिए सरकार आयुर्वेदिक दवाओं को विकसित करने पर विशेष ध्यान दे रही है। विश्व मधुमेह दिवस (14 नवंबर) इस बीमारी से निपटने की तैयारी की समीक्षा का भी समय है। सरकार देश भर में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति को बड़े स्तर पर बढ़ावा दे रही है, वहीं विभिन्न सरकारी अनुसंधान एजेंसियां आयुर्वेद और चिकित्सकीय जड़ी-बूटियों के आधार पर आधुनिक दवाएं विकसित करने पर जोर दे रही हैं।


इन्हीं में वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की दो प्रयोगशालाएं राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) और केंद्रीय औषधीय और सुगंधित पादप संस्थान (सीआईएएमपी) का ताजा प्रयास भी शामिल है। इन दोनों ने अपने साझा प्रयास से बीजीआर-34 नाम की मधुमेह के उपचार की आयुर्वेदिक दवा विकसित की है। इसे टाइप-2 मधुमेह के प्रबंधन में प्रभावी पाया गया है।

एक बयान में बताया गया है कि आयुर्वेदिक फार्मूले से बनी इस आधुनिक दवा के प्रभाव को वैज्ञानिक आकलन के आधार पर प्रमाणित किया जा चुका है। इस बीमारी के गंभीर मरीजों के इलाज में इस दवा को पूरक औषधि के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। ‘ट्रेडिशनल एंड कंप्लीमेंट्री मेडिसिन’ नाम के वैज्ञानिक शोध प्रकाशन में प्रकाशित अध्ययन में भी बीजीआर- 34 को मधुमेह के मरीजों में हृदयाघात के खतरे को 50 फीसदी तक कम करने के लिए प्रभावी पाया गया है।

एनबीआरआई के पूर्व वैज्ञानिक ए.के.एस. रावत कहते हैं, “यह दवा बहुत से औषधीय पादपों से तैयार की गई है। इनमें गिलोय, मेथी, दारूहरिद्रा, विजयसार, मजीठ, मेठिका और गुड़मार शामिल हैं। ये मधुमेह का प्रभाव कम करने वाले माने गए हैं और रक्त में शर्करा की मात्रा को संतुलित करते हैं। विभिन्न अध्ययनों से साबित हुआ है कि इनसे रक्त शर्करा का प्रबंधन और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है।”


(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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