भारत में मेट्रोमैन के नाम से मशहूर ई. श्रीधरन आज अपना 87वां जन्मदिन मना रहे हैं। राजधानी दिल्ली समेत देश के विभिन्न शहरों में मेट्रो सेवा के जरिये पब्लिक ट्रांसपोर्ट की तस्वीर बदलने वाले श्रीधरन का जन्म 12 जून 1932 को केरल के पलक्कड़ ज़िले के पत्ताम्बी में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल और पलक्कड़ के Victoria College से हुई। आगे चलकर उन्होंने आंध्र प्रदेश के काकीनाडा ज़िले के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
करियर के शुरूआती दौर में श्रीधरन ने कुछ दिनों के लिए कोझीकोड के एक पॉलिटेक्निक कॉलेज में बतौर लेक्चरर काम किया। इसके अलावा बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट में भी अपरेंटिस की नौकरी की। साल 1953 में यूपीएससी द्वारा कराये जाने वाले इंजीनियरिंग सर्विसेज एग्जाम में पास किया और आईएएस (IES) ऑफिसर बने। 1954 के दिसंबर पहली पोस्टिंग मिली और श्रीधरन दक्षिण रेलवे में प्रोबेशनरी असिस्टेंट इंजीनियर का ओहदा संभाला।
6 महीने का काम 46 दिन में पूरा
भारत सरकार की सेवा में लगे आईईएस श्रीधरन पहली बार 1964 में सुर्खियों में आए। तब एक साइक्लोन की वजह से रामेश्वरम से तमिलनाडु को जोड़ने वाले पंबन ब्रिज क्षतिग्रस्त हो गया था। इस ब्रिज पर रेल का आवागमन होता था। लेकिन पुल टूटने के कारण काफी दिक्कतें होने लगी। उस दौरान श्रीधरन को इसकी मरम्मत का जिम्मा सौंपा गया। इस काम के लिए रेलवे ने उन्हें 6 महीने का डेडलाइन दिया। लेकिन श्रीधरन ने सबको चौंकाते हुए सिर्फ 46 दिनों के अंदर ब्रिज की मरम्मत करवा दी। श्रीधरन के इस काम को देखकर रेल मंत्री एस के पाटिल ने उन्हें सम्मानित किया था।
श्रीधरन अक्टूबर, 1979 में कोचीन शिपयार्ड से जुड़े। तब यह संस्था घाटे में चल रही थी। श्रीधरन ने यहां भी करिश्मा कर दिखाया और सालों से अटके एमवी रानी पद्मिनी जहाज़ के (MV Rani Padmini ship) निर्माण को 2 सालों में ही पूरा करवा दिया।
कोंकण रेलवे का कायाकल्प
साल 1987 में ई.श्रीधरन को वेस्टर्न रेलवे का जनरल मैनेजर नियुक्त किया गया। 1990 में वह रिटायर हो गए। लेकिन तत्कालीन रेल मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस के अनुरोध पर श्रीधरन ने बतौर सीएमडी कोंकण रेलवे के कायाकल्प का बीड़ा उठाया। गोवा में जुआरी नदी पर बनने वाले इस ब्रिज का प्रोजेक्ट काफी अलग था, क्योंकि यह इंडिया का पहला मेजर प्रोड्क्ट था जो BOT (Build-Operate-Transfer) तकनीक पर आधारित था। इसका स्ट्रक्चर टिपिकल इंडियन रेलवे सेट-अप से बिल्कुल अलग था। इसमें 93 ट्यूनल बनाए गए। श्रीधरन की देख-रेख में ही मुंबई-कोच्चि रूट पर ट्रेन लाइन्स बिछाई गई। 7 साल में श्रीधरन ने ये काम पूरा कर दिया।
इस तरह बन गए ‘मेट्रो मैन’
1970 में डिप्टी चीफ इंजीनियर रहते हुए श्रीधरन को कलकत्ता मेट्रो की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह भारत की पहली मेट्रो रेल सेवा थी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिहाज से एक क्रांतिकारी प्रोजेक्ट था। श्रीधरन की देख-रेख में ही भारत को कोलकाता मेट्रो के रूप में पहली मेट्रो रेल मिली। जिसके चलते चारों ओर उनकी खूब तारीफ हुई।
कोंकण रेलवे प्रोजेक्ट के बाद श्रीधरन ने दिल्ली मेट्रो प्रोजेक्ट अपने हाथों में लिया। साल 2000 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) के मैनेजिंग डायरेक्टर रहते हुए श्रीधरन ने दिल्ली और एनसीआर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की शक्ल और सूरत बदल कर रख दी। टारगेट से पहले काम पूरा करने के अपने रिकॉर्ड को श्रीधरन ने यहां भी बरक़रार रखा। दिल्ली मेट्रो में उनके अभूतपूर्ण योगदान के लिए फ़्रांस सरकार ने उन्हें Chevalier de la Legion d’honneur से सम्मानित किया था। भारत सरकार ने उन्हें 2001 में पद्मश्री और 2008 में पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। लोग उनको ‘मेट्रो मैन’ कहकर पुकारने लगे।
साल 2011 में श्रीधरन ने दिल्ली मेट्रो से विदा लिया और तब से डीएमआरसी उनके बगैर चल रहा है। हालाँकि, देश भर में मेट्रो परियोजनाओं से उनका रिश्ता कायम है। विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री जोर देते हैं कि हरेक परियोजना पर उनकी छाप हो और इसके चलते वे सबसे पुराने और बुजुर्ग सरकारी कर्मचारी बन गए हैं जो अब भी सेवा में सक्रिय हैं। हम उनके लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं।