मोदी चाहते हैं अदालतों में मामलों का शीघ्र निपटारा

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 नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (आईएएनएस)| भारतीय अदालतों में 3.30 करोड़ से ज्यादा मामले निपटारे के लिए लंबित है। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार ने अंतत: केंद्रीय कानून व न्याय मंत्रालय को देश की ‘न्यायिक प्रणाली में देरी और बाधाओं को कम करने के उपाय’ को तलाशने के निर्देश दिए हैं।

 सरकार ने कानून मंत्रालय से लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए मौजूदा प्रणाली में संरचनात्मक बदलाव की पहल करने के लिए कहा है। जिला स्तर पर यहां के अधीनस्थ अदालतों में वर्षो से 2.84 करोड़ मामले अपने निपटारे की राह देख रहे हैं।


इसी बीच, 25 सितंबर को कानून व न्याय मंत्रालय ने मामले में विचार करने (ब्रेन स्ट्रोमिंग) के लिए एक सत्र आयोजित किया था और सरकार के महत्वपूर्ण कानूनी विशेषज्ञों से देश में लंबित मामलों की समस्या को निपटाने के लिए सुझाव मांगे गए थे।

न्याय विभाग में संयुक्त सचिव जी.आर. राघवेंद्र का मंत्रालय के सभी इकाईयों को संबोधित करते हुए पत्र में कहा गया है कि ‘मामलों के त्वरित निपटारे के लिए कोर्ट प्रक्रिया की री-इंजीनियरिंग’ एक ऐसा विचार है जिससे न्यायपालिका का बोझ कम हो सकता है।

दूसरा उपाय जिला व निचली अदालत को बेहतर आधारभूत संरचना मुहैया कराना और अधीनस्थ न्यायपालिकाओं की संख्या को बढ़ाना है।


मोदी सरकार इसके अलावा प्रदर्शन मानक को तय करने पर विचार कर रही है, जो न्यायिक प्रणाली में जवाबदेही बढ़ाने के लिए प्रभावी उपाय हो सकता है। पत्र से यह भी पता चला है कि कानून मंत्रालय शुक्रवार को अपना विमर्श सत्र आयोजित करेगा।

जून 2019 में, सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्ययाधीश रंजन गोगोई ने शीर्ष अदालत व हाई कोर्ट में मामलों के लंबित प्रकरणों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था। सीजेआई ने जजों की संख्या बढ़ाने और हाई कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति को 65 वर्ष तक बढ़ाने की सलाह दी थी।

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में, न्यायमूर्ति गोगोई ने खुलासा करते हुए कहा था कि उच्च न्यायपालिका बढ़ते मामलों का निपटारा करने में इसलिए सक्षम नहीं है क्योंकि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की संख्या कम है, जहां आवंटित पदों में से 37 फीसदी पद रिक्त हैं।

सूत्रों ने कहा कि लंबित मामलों को देखते हुए, मोदी ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को मामले को सुलझाने के लिए उचित कदम उठाने के लिए कहा था।

आंकड़े बताते हैं कि उच्च न्यायालयों में करीब 43 लाख मामले कथित रूप से लंबित हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट में यह आंकड़ा करीब 60,000 के पास है।

अंतत: लंबित मामलों के चलते सबसे ज्यादा गरीब प्रभावित होते हैं। सिविल विवाद में, तो स्थिति और खराब है, जहां बड़ी संख्या में मामले 30 वर्षो से लंबित हैं।

एक अन्य चिंता का विषय जेलों में कैदियों की अत्यधिक संख्या है, जहां हजारों विचाराधीन कैदी वर्षो से अपने ट्रायल का इंतजार कर रहे हैं।

जहां तक राज्यों का सवाल है, उत्तरप्रदेश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है, जहां 61 लाख मामले लंबित है, उसके बाद महाराष्ट्र (33.22 लाख), पश्चिम बंगाल (17.59 लाख), बिहार (16.58 लाख) और गुजरात (16.45 लाख) का स्थान है।

गुजरात और महाराष्ट्र के अधीनस्थ अदालतों में सबसे ज्यादा सिविल मामले लंबित हैं।

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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