अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी अखबार में विज्ञापनों पर ज्यादा खर्च कर रही मोदी सरकार, 5 साल में खर्च किये इतने करोड़

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नई दिल्ली। हिंदी भाषी राज्यों में गहरी पैठ बनाने के लिए स्पष्ट संदेश के तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले पांच सालों में अंग्रेजी अखबारों में विज्ञापनों पर 719 करोड़ रुपये से अधिक धन खर्च करने के मुकाबले हिंदी अखबारों में विज्ञापनों पर 890 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं। ऐसे समय में जब प्रिंट मीडिया को डिजिटल प्लेटफॉर्म से कड़ी चुनौती मिल रही है, मुख्य रूप से फेसबुक और गूगल जो वैश्विक स्तर पर 68 प्रतिशत डिजिटल विज्ञापनों को साझा करते हैं, हिंदी और क्षेत्रीय अखबार बड़े पैमाने पर (बड़े, मध्यम और छोटे) इस ट्रेंड को झुठला रहे हैं और देश में पनप रहे हैं।

आरटीआई से खुलासा हुआ कि हिंदी अखबारों में सबसे आगे दैनिक जागरण रहा जिसे 2014-15 से 2018-19 की अवधि में 100 करोड़ रुपये से अधिक के सरकारी विज्ञापन मिले।


दैनिक भास्कर को 56 करोड़ रुपये और 62 लाख रुपये के विज्ञापन मिले, जबकि हिंदुस्तान को 50 करोड़ रुपये और 66 लाख रुपये (लगभग) के सरकारी विज्ञापन मिले।

पंजाब केसरी 50 करोड़ 66 लाख (लगभग) के सरकारी विज्ञापनों को हथियाने में कामयाब रहा और अमर उजाला ने सरकारी विज्ञापनों से 47.4 करोड़ रुपये की कमाई की।

नवभारत टाइम्स को तीन करोड़ रुपये और 76 लाख (लगभग) और राजस्थान पत्रिका को 27 करोड़ रुपये और 78 लाख रुपये (लगभग) के सरकारी विज्ञापन मिले।


इस वर्ष दूसरी तिमाही के लिए भारतीय पाठक सर्वेक्षण (आईआरएस) के अनुसार, हिंदी और क्षेत्रीय अखबार को पाठक वृद्धि के मामले में सबसे ज्यादा फायदा मिला।

जब कुल पाठक संख्या की बात आती है, तो अंग्रेजी ने पहली तिमाही के 2.9 प्रतिशत के मुकाबले 3 प्रतिशत के साथ मामूली वृद्धि देखी, जबकि हिंदी अखबारों ने 17 प्रतिशत की पहुंच बनाई।

रजिस्ट्रार ऑप न्यूज पेपर्स फॉर इंडिया (आरएनआई) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदी और क्षेत्रीय भाषा के अखबारों का प्रसार वित्तीय वर्ष 2009-2018 की अवधि में अंग्रेजी अखबारों के 2 प्रतिशत वृद्धि के मुकाबले क्रमश: 6 प्रतिशत और 7 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है।

जब अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्रों की बात आती है, तो द टाइम्स ऑफ इंडिया ने बाजी मारी है। यह 217 करोड़ रुपये से अधिक का सरकारी विज्ञापन हासिल करने में कामयाब रहा।

आरटीआई से पता चला कि 157 करोड़ रुपये से अधिक का सरकारी विज्ञापन हासिल कर द हिंदुस्तान टाइम्स दूसरे स्थान पर रहा जबकि डेक्कन क्रॉनिकल 40 करोड़ रुपये से अधिक के सरकारी विज्ञापनों के साथ तीसरे स्थान पर रहा।

द हिंदू (द हिंदू बिजनेस लाइन सहित) को पांच साल की अवधि में 33.6 करोड़ रुपये से अधिक के विज्ञापन मिले, जबकि द टेलीग्राफ को 20.8 करोड़ रुपये से अधिक के सरकारी विज्ञापन मिले।

द ट्रिब्यून को 13 करोड़ रुपये के विज्ञापन मिले, जबकि डेक्कन हेराल्ड को इस अवधि में 10.2 करोड़ रुपये से अधिक सरकारी विज्ञापन मिले।

द इकनॉमिक टाइम्स को 8.6 करोड़ रुपये से अधिक के विज्ञापन मिले, जबकि द इंडियन एक्सप्रेस को 26 लाख रुपये से अधिक और फाइनेंशियल एक्सप्रेस को 27 लाख रुपये से अधिक के सरकारी विज्ञापन मिले।

इसी अवधि में, इंटरनेट विज्ञापनों पर सरकारी खर्च में लगभग चार गुना वृद्धि देखने को मिला। 2014-15 और 2018-19 के बीच इंटरनेट विज्ञापन पर खर्च 6.64 करोड़ रुपये से बढ़कर 26.95 करोड़ रुपये हो गया।

सरकार ने मई 2014 और मार्च 2019 के बीच कुल विज्ञापन पर 5,700 करोड़ रुपये खर्च किए। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान, प्रचार प्रयोजनों पर पांच वर्षो में कुल 5,726 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।


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(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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