Motilal Nehru Birth Anniversary: मोतीलाल नेहरू के ठाठबाट के किस्से: कभी 5 रुपये थी फीस, बन गए देश के सबसे अमीर वकील

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Motilal Nehru birthday nehru family history and background

Motilal Nehru Birth Anniversary: जवाहरलाल नेहरू के पिता और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू का नाम प्रथम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानियों में आता है। इसके अलावा मोतीलाल नेहरू की एक और पहचान है – देश के सबसे धनी वकील की। नेहरू परिवार की संपन्नता और धनदौलत को लेकर अक्सर तमाम बातें कही जाती रही हैं। मोतीलाल नेहरू के ठाठबाट के कई किस्से प्रचलित रहे हैं। मसलन, ये कि उस जमाने में भी उनकी फीस बहुत ज्यादा हुआ करती थी। 19वीं सदी की शुरुआत में उनका बार-बार यूरोप जाना सामान्य बात थी।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम ने उनके बारे में इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट के एक जर्नल में लिखा, “वो विलक्षण वकील थे। अपने जमाने के सबसे धनी लोगों में एक। अंग्रेज जज उनकी वाकपटुता और मुकदमों को पेश करने की उनकी खास शैली से प्रभावित रहते थे। शायद यही वजह थी कि उन्हें जल्दी और असरदार तरीके से सफलता मिली। उन दिनों भारत के किसी वकील को ग्रेट ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल में केस लड़ने के लिए शामिल किया जाना लगभग दुर्लभ था। लेकिन मोतीलाल ऐसे वकील बने, जो इसमें शामिल किए गए।”


विकीपेडिया पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, मोतीलाल नेहरू ने जन्म से पहले ही अपने पिता गंगाधर नेहरू को खो दिया। उनके बड़े भाई नंदलाल नेहरू ने उन्हें पाला। नंदलाल आगरा हाईकोर्ट में वकील थे। जब अंग्रेज हाईकोर्ट को आगरा से इलाहाबाद ले आए तो नेहरू परिवार इलाहाबाद में आ गया। फिर यहीं का होकर रह गया। नंदलाल की गिनती उन दिनों बड़े वकीलों में होती थी। उन्होंने छोटे भाई को अच्छे कॉलेजों में तालीम दिलाई और फिर कानून की पढ़ाई के लिए कैंब्रिज भेजा।

असाधारण मेधा और असरदार व्यक्तित्व के धनी मोतीलाल भाषण कला में भी प्रवीण थे। कैंब्रिज में वकालत की परीक्षा में उन्होंने टॉप किया। फिर भारत लौटकर कानपुर में ट्रेनी वकील के रूप में प्रैक्टिस शुरू की। उन दिनों ब्रिटेन से पढ़कर आए बैरिस्टरों का खास रुतबा होता था। देश में बैरिस्टर भी गिने चुने ही होते थे।

अंग्रेज चीफ जस्टिस खास तवज्जो देते थे

तीन साल बाद मोतीलाल ने इलाहाबाद आकर 1988 में हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की, तो सबकुछ आसान नहीं था। बड़े भाई नंदलाल के निधन के बाद लंबे-चौड़े परिवार का बोझ भी उनके कंधों पर आ पड़ा था। ये वो समय था जब अंग्रेज जज भारतीय वकीलों को खास तवज्जो नहीं देते थे। लेकिन मोतीलाल ने तकरीबन सभी अंग्रेज जजों को अपनी प्रतिभा से प्रभावित किया। पी. सदाशिवम लिखते हैं, ‘उन्हें हाईकोर्ट में पहले केस के लिए पांच रुपए मिले। फिर वो तरक्की की सीढियां चढ़ते गए। कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।”


सदाशिवम ने अपने लेख में लिखा, “उन दिनों सर जॉन एज इलाहाबाद में चीफ जस्टिस थे। वो मोतीलाल को बेहद काबिल वकीलों में रखते थे। जब वो जिरह करने आते थे तो उन्हें सुनने के लिए भीड़ लग जाती थी। वो हमेशा अपने केस को ना केवल असरदार तरीके से पेश करते थे बल्कि खास तरीके से पूरे मामले को समझा पाने में सक्षम रहते थे।”

देश के सबसे महंगे वकील बन गए

कुछ समय बाद मोतीलाल को एक केस के लिए बहुत मोटी रकम मिलने लगी, जो हजारों में थी। उनके पास बड़े जमींदारों, तालुकदारों और राजा-महाराजों के जमीन से जुड़े मामलों के केस आने लगे। वो देश के सबसे महंगे वकीलों में शुमार हो गए। उनका रहन सहन भी अंग्रेजों सा आधुनिक था। कोट पैंट, घड़ी, तमाम तरह की शानो-शौकत। 1889 के बाद वो लगातार मुकदमों के लिए इंग्लैंड जाते थे। वहां महंगे होटलों में ठहरते थे।

 

तब 20 हजार रुपये में खरीदा स्वराज भवन

साल 1900 में मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद में महमूद मंजिल नाम का लंबा-चौड़ा भवन और इससे जुड़ी जमीन खरीदी। उस जमाने में उन्होंने इसे 20 हजार रुपये में खरीदा । फिर इसे सजाया संवारा। स्वराज भवन में 42 कमरे थे। बाद में करोड़ों की इस प्रापर्टी को उन्होंने 1920 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को दान में दे दी।

आनंद भवन के फर्नीचर विदेश से आए

1930 के दशक में उन्होंने सिविल लाइंस के पास एक और बड़ी संपत्ति खरीदी। इसे उन्होंने आनंद भवन नाम दिया। बताया जाता है कि इस भवन को सजाने संवारने में कई साल लग गए। इसमें एक से एक बेमिसाल और बेशकीमती सामान और फर्नीचर थे। बताया जाता है कि इसके फर्नीचर और सजावट के सामान खरीदने के लिए मोतीलाल ने कई बार यूरोप और चीन की यात्राएं कीं। 1970 के दशक में इंदिरा गांधी ने इसे देश को समर्पित कर दिया।

घर में इंग्लिश मेड काम करती थी

मोतीलाल नेहरू की छोटी बेटी कृष्णा ने अपनी आत्मकथा में लिखा, “उनका परिवार तब पाश्चात्य तरीके से रहता था, जब भारत में इसके बारे में सोचा भी नहीं जाता था। डायनिंग टेबल पर एक से एक महंगी क्राकरीज और छूरी-कांटे होते थे।” कृष्णा ने ये भी लिखा, “उन दिनों उनके परिवार में उन दिनों एक या दो अंग्रेज आया काम करती थीं। परिवार में बच्चों को पढाने के लिए अंग्रेज ट्वयूटर आते थे।”

इलाहाबाद की पहली विदेशी कार नेहरू परिवार में आई

उन दिनों भारत में कारें नहीं बनती थीं, बल्कि विदेश से खरीदकर मंगाई जाती थीं। इलाहाबाद में उन दिनों शायद ही कोई कार हुआ करती थी। इलाहाबाद की सड़कों पर आई पहली विदेशी कार नेहरू परिवार की थी।

जवाहर को लंदन में कैसे रखा

जवाहरलाल नेहरू जब हैरो और ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ने के लिए गए तो रईसी से रहते थे। कहा जाता है कि पिता मोतीलाल ने उनकी सुविधा के लिए पूरे स्टाफ के साथ कार और ड्राइवर की व्यवस्था की हुई थी। जब जवाहरलाल का दाखिला लंदन में होना था तो मोतीलाल अपने पूरे परिवार के साथ चार-पांच महीने के लिए लंदन चले गए। वहां पूरा परिवार शानोशौकत से रहा।

1920 के दशक में जब मोतीलाल नेहरू ने महात्मा गांधी को सुना-समझा और उनके करीब आए तो वो वकालत छोड़कर देश की आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। हालांकि तब वो टॉप पर थे और बहुत पैसा कमा रहे थे। अक्सर ये भी कहा जाता है कि उस समय जब भी कांग्रेस आर्थिक संकट से गुजरती थी तो मोतीलाल उसे धन देकर उबारते थे। वह दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। उनका निधन 6 फरवरी 1931 को लखनऊ में हुआ।


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