मूवी रिव्यू : 1971 भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश के उदय पर आधारित है फिल्म ‘RAW’

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मूवी रिव्यू : 1971 भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश के उदय पर आधारित है फिल्म 'RAW'

बॉलीवुड में इन दिनों देश भक्ति का क्रेज चढ़ा दिखाई देता है। देश प्रेम से जुड़ी कई फिल्में का लगातार सिनेमा घरों में दस्तक दे रही हैं। अब इसी थीम को आगे बढ़ाते हुए इस सप्ताह रिलीज़ हुई है फिल्म रॉ (RAW) यानी रोमियो अकबर वॉल्टर। जॉन अब्राहम स्टारर फिल्म रॉ 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के जन्म की पृष्ठभूमि पर बनाई गई है।

क्या है फिल्म की कहानी

कहानी अकबर (जॉन अब्राहम) से शुरू होती है, जिसे पाकिस्तानी इंटेलिजेंस अफसर खुदाबख्श (सिकंदर खेर) के हाथों खूब टॉर्चर किया जा चुका है। थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उसके नाखून तक उखाड़ दिए गए हैं। पाकिस्तान इंटेलिजेंस को अकबर के भारतीय रॉ के जासूस होने का शक है। वहां से कहानी फ्लैशबैक में ट्रैवल करती है।


बैंक में काम करनेवाला रोमियो ईमानदार और बहादुर है। वह बैंक में काम करनेवाली श्रद्धा (मौनी रॉय) से प्यार करता है। वह अपनी मां के साथ रहता है। एक समय उसके पिता ने देश के लिए अपनी जान गंवाई थी और उसके बाद उसकी मां ने देशभक्ति के जुनून से दूर एक आम जिंदगी में उसकी परवरिश की थी, मगर बैंक में होनेवाली डकैती उनकी जिंदगी बदलकर रख देती है। बैंक में हुई रॉबरी का वह जांबाजी से मुकाबला करता है। उस रॉबरी के बाद रोमियो को बताया जाता है कि उसे रॉ के चीफ श्रीकांत राय (जैकी श्रॉफ) द्वारा रॉ के एक जासूस के रूप में चुना गया है और अब उसे अकबर मलिक बनकर पाकिस्तान से खुफिया जानकारी जुटानी है। जासूस के रूप में उसे कड़ी ट्रेनिंग जी जाती है।

पाकिस्तान आकर वह इजहाक अफरीदी (अनिल जॉर्ज) का दिल जीतता है और और कुछ ही समय में उसका विश्वासपात्र बन जाता है। वह भारत को पाकितान द्वारा बदलीपुर में होनेवाले हमले की योजना की जानकारी देता है। इस खुफिया मिशन पर उसका साथ देता है पाकिस्तानी रघुवीर यादव। सब कुछ ठीक चल रहा होता है, मगर श्रद्धा के पाकिस्तान में डिप्लोमैट के रूप में आने पर खुदाबख्श को कुछ ऐसा सुराग मिलता है, जिससे उसे अकबर पर शक हो जाता है। वह उसे टॉर्चर करके उसका सच उगलवाना चाहता है। क्लाइमैक्स तक आते-आते वह किस तरह से वॉल्टर बनता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

फिल्म रिव्यू

रॉबी ग्रेवाल ने फिल्म को लेकर बहुत ही डिटेल रिसर्च की है, मगर फिल्म का फर्स्ट हाफ बेहद धीमा है। रॉबी ने फर्स्ट हाफ में बैकड्रॉप और किरदारों को सेट करने में बहुत ज्यादा वक्त लगाया है। कई जगहों पर कन्फ्यूजन खटकता है। जासूसी वाली फिल्म में थ्रिल का अभाव नजर आता है। जिस ऐक्शन की उम्मीद जॉन से की जाती है, वह फिल्म में नदारद है। सेकंड हाफ में कहानी अपने मिजाज में आती है। नाटकीयता से दूर इसके रियलिस्टिक अप्रोच आपको भाता है, मगर क्लाइमैक्स का पंच उस तरह से असरदार साबित नहीं होता।


सिनेमटॉग्रफी की बात करें तो तपन तुषार बसु ने लाजवाब काम किया है। खास तौर पर बारिश वाले दृश्य बेहतरीन बन पड़े हैं। उन्होंने फिल्म के कलर टोन को विषय के मुताबिक रखा है। जॉन अब्राहम अपनी भूमिका में हर तरह से उपयुक्त हैं। अपने अलग-अलग बहुरूप को उन्होंने बहुत ही खूबी से कैरी किया है। खुदाबख्श के रूप में सिकंदर खेर फिल्म का सरप्राइज पैकेज साबित होते हैं। उन्होंने पाकिस्तानी आईएसआई अधिकारी के रूप में दमदार अभिनय किया है। जैकी श्रॉफ अपनी भूमिकाओं को एक अलग आयाम देने के लिए जाने जाते हैं और श्रीकांत राय के रूप में वे इस बार भी सफल रहते हैं। मौनी रॉय ने फिल्म का हिस्सा बनने के लिए हामी क्यों भरी, यह समझ से परे है। फिल्म में उनका रोल है ही नहीं। इजहाक अफरीदी के रूप में अनिल जॉर्ज ने बेहतरीन काम किया है। वे अपनी भूमिका में याद रह जाते हैं। रघुवीर यादव का छोटा-सा रोल फिल्म में राहत का काम करता है। अन्य किरदार औसत रहे हैं।  संगीत पक्ष फिल्म की कमजोर कड़ी है। बैकग्राउंड स्कोर ठीक-ठाक है।

फिल्म क्यों देखें ?

अगर आप जॉन अब्राहम के फैन हैं और देशभक्ति वाली फिल्मों से आपको लगाव है तो आप इस फिल्म को देखने जरूर जाएं साथ ही अगर आप 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध के बारे में जानकारी चाहते हैं या दिलचस्पी रखते हैं तो भी आप ये फिल्म देख सकते हैं।

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