मप्र : भाजपा में नई कार्यसमिति की कवायद तेज

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भोपाल, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में भाजपा को सत्ता में आए लगभग आठ माह और प्रदेशाध्यक्ष की ताजपोशी हुए नौ माह का वक्त गुजर गया है। अब सत्ता और संगठन दोनों का कार्यसमिति के गठन पर जोर है। इसको लेकर तमाम जिम्मेदार नेताओं की बैठकों का दौर पूरा हो चुका है और कार्यसमिति में किसे जगह दी जाए और किसे बाहर रखा जाए, इस पर सहमति बन चुकी है। यही कारण है कि सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि नई कार्यसमिति का कभी भी ऐलान हो सकता है।

राज्य में विधानसभा के उप-चुनाव हो चुके हैं और इसमें मिली जीत से शिवराज सरकार को स्थायित्व मिल चुका है, आगामी समय में मंत्रिमंडल के विस्तार के साथ नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव हेाने हैं। इसलिए पार्टी संगठन अपनी नई टीम बनाने में जुटा है। इसको लेकर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और संगठन मंत्री सुहास भगत के बीच भी बातचीत हो चुकी है।


पार्टी सूत्रों का कहना है कि संगठन साफ सुथरी छवि, ऊर्जावान, जातीय और क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखकर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपना चाह रहा है। इसको लेकर प्रदेशाध्यक्ष और संगठन महामंत्री की कई दौर की चर्चा हुई। इसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े लोगांे की भी राय ली गई है। उसी के आधार पर संगठन के दोनों प्रमुख नेताओं की मुख्यमंत्री के साथ चर्चा भी हो चुकी है।

सूत्रों का कहना है कि सत्ता और संगठन मिलकर उन सारे लोगों को अलग-अलग स्थानों पर समायोजित करने की कोशिश कर रही है जिनका जिस स्थान पर बेहतर उपयोग किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मंत्रिमंडल का विस्तार होना है, निगम व मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति की जानी है। वहीं नगरीय निकाय के चुनाव भी होना है। इन स्थितियों में संगठन को नया चेहरा देने पर जोर दिया जा रहा है। इसका आशय यह है कि नए लोगों को संगठन में आगे लाया जाएगा।

चर्चा है कि प्रदेश भाजपा की नई टीम में 10 उपाध्यक्ष और इतने ही प्रदेश मंत्री बनाए जाने के साथ ही प्रदेश के अन्य प्रमुख पदों पर नए लोगों को मौका मिल सकता है। वहीं जो लोग लंबे समय से संगठन में है उन्हें अन्य स्थानों पर जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।


ज्ञात हो विधानसभा के उप-चुनाव से पहले प्रदेषाध्यक्ष ने पांच महामंत्रियों — भगवानदास सबनानी, सरदेन्दु तिवारी, रणबीर सिंह रावत, कविता पाटीदार और हरिशंकर खटीक की नियुक्ति की थी। उप-चुनाव के बाद एक बार फिर प्रदेश कार्यसमिति के गठन की कवायद तेज कर दी गई है।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि राज्य की कार्यसमिति में कई लोग ऐसे है जो बीते एक दशक से पद पर काबिज है, इसके चलते संगठन में सक्रियता नहीं आ पा रही है जिसकी जरुरत प्रदेशाध्यक्ष और संगठन महामंत्री महसूस कर रहे हैं। लिहाजा पार्टी बड़े बदलाव के मूड में है, इससे कई बड़े नेताओं के चहेतों को कार्यसमिति से बाहर रहना पड़ सकता है। संगठन को नेताओं के करीबियों को सत्ता में हिस्सेदार बनाने पर कोई आपत्ति नहीं है मगर संगठन कार्यसमिति में सक्षम और सक्रिय लोगों को ही जगह देने के पक्ष में है। इसी के चलते कुछ द्वंद्व भी है।

–आईएएनएस

एसएनपी

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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