मप्र के ‘लेटर-वार’ में छिपा है ‘दबाव’ का राज (लीड-1)

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भोपाल, 22 मई (आईएएनएस)| लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले आए एग्जिट पोल में भाजपा को बहुमत मिलने के रुझान ने मध्य प्रदेश की सियासत में गर्माहट ला दी है। भाजपा को एग्जिट पोल के अनुसार लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद राज्य सरकार के अस्थिर होने की संभावना नजर आने लगी है तो दूसरी ओर कांग्रेस इन रुझानों को महज ‘मनोरंजन पोल’ करार दे रही है। इसी के चलते भाजपा और कांग्रेस के बीच ‘पत्र-युद्ध’ (लेटर वार) शुरू हो गया है, जो नौकरशाही पर दबाव बनाने की कोशिश के साथ कार्यकर्ताओं को अपनी सक्रियता दिखाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

लोकसभा चुनाव के सातवें और अंतिम चरण का मतदान होने के बाद रविवार की शाम से विभिन्न समाचार माध्यमों के एग्जिट पोल के नतीजे आने लगे। इन एग्जिट पोल में भाजपा को बहुमत मिलने की संभावना जताई गई है। इसके बाद से ही मध्य प्रदेश की सरकार के भविष्य पर सवाल उठने लगे क्योंकि वर्तमान कांग्रेस सरकार बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से चल रही है।


राज्य के नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने सोमवार को राज्यपाल को पत्र लिखकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की। इसमें उन्होंने ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा कराने की इच्छा जाहिर की। इस पत्र की प्रतिलिपि भार्गव ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को भी भेजी थी। कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष भार्गव को जवाब देते हुए उनकी जानकारी पर न केवल सवाल उठाया बल्कि सरकार द्वारा 73 दिनों में किए गए कामों का ब्योरा भी दिया।

मुख्यमंत्री कमलनाथ के जवाब पर नेता प्रतिपक्ष ने मंगलवार रात को एक और पत्र लिखा। इस पत्र में भार्गव ने कमलनाथ की ओर से दिए गए जवाब को सतही जवाब करार दिया, साथ ही समस्याओं की गंभीरता को कम करने का आरोप लगाया। भार्गव की ओर से दोबारा लिखे गए पत्र में कहा गया कि समस्याएं इतनी विकराल हैं कि दो पृष्ठों के पत्र के माध्यम से इनका उत्तर नहीं दिया जा सकता है।

एक तरफ जहां नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखा, जिसका कमलनाथ ने जवाब दिया, उस पर भार्गव ने दोबारा खत लिखा। इसके अलावा मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिह चौहान को भी एक पत्र लिखा। इस पत्र में किसान कर्ज माफी से लेकर किसानों को फसल के भुगतान का ब्योरा दिया गया है। साथ ही चौहान पर चुनाव के दौरान किसानों और आम जनता के बीच भ्रम फैलाने का आरोप लगाया गया है।


राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया का मानना है, “यह ‘पत्र-युद्ध’ कार्यकर्ताओं को अपनी सक्रियता दिखाने के साथ नौकरशाही पर दबाव बनाने का हिस्सा है, ताकि, मतगणना के दौरान नौकरशाही पर दबाव रहे और संबंधित राजनीतिक दल की इच्छा के विपरीत जाने का वह साहस न जुटा सके। यही कारण है कि मतदान पूरा होने के बाद और मतगणना से पहले यह पत्र-युद्ध शुरू हुआ है।”

संभावना जताई जा रही है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले राज्य में प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा के बीच शुरू हुआ पत्र-युद्ध चुनाव नतीजे आने के बाद दलों में तोड़फोड़ की हद तक पहुंच सकता है। मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस के 10 विधायकों को भाजपा की ओर से प्रलोभन देने की बात कह चुके हैं। यह बात कमलनाथ को स्वयं विधायकों ने बताई है।

राजनीतिक विश्लेषक सॉजी थामस का कहना है, “भाजपा विधानसभा के विशेष सत्र के जरिए कमलनाथ सरकार को निर्दलीय व सपा और बसपा से मिल रहे समर्थन की हकीकत का आकलन करना चाहती है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री कमलनाथ आक्रामक होकर भाजपा के हर हमले का करारा जवाब देना चाहते हैं, ताकि उनकी सरकार की कमजोरी जाहिर न हो। लिहाजा लेटर वार इसी का नतीजा है। यह लेटर-वार आगे कहां तक जाएगा, इसका अभी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।”

राज्य की वर्तमान विधानसभा की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि कमलनाथ सरकार सपा-बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से चल रही है। विधानसभा में 230 विधायक हैं, जिसमें कांग्रेस के 114 और भाजपा के 109 विधायक हैं। वहीं बसपा के दो, सपा का एक और चार निर्दलीय विधायक हैं। भाजपा की नजर बसपा-सपा और निर्दलीय विधायकों पर है। ये विधायक कई बार सरकार को नजरें दिखा चुकी हैं। लोकसभा के नतीजे भाजपा के समर्थन में आते हैं तो कमलनाथ सरकार के लिए मुसीबत हो सकती है, इसे कोई नकार नहीं सकता।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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