मप्र में भाजपा की जीत के पीछे सत्ता और संगठन का समन्वय

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भोपाल 10 नवंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में आगामी तीन साल तक भाजपा की सरकार रहने वाली है क्योंकि उपचुनाव में उसने बड़ी जीत हासिल की है। भाजपा की इस जीत को सत्ता और संगठन के समन्वय की जीत माना जा रहा है।

राज्य में 28 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हुए और भाजपा के खाते में कम से कम 19 सीटों का आना तय है और यह जीत भाजपा की सरकार को स्थायित्व देने वाली है। ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा को पूर्ण बहुमत के लिए सिर्फ आठ सीटों की जरूरत थी और उसे इससे कहीं ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं।


भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान पर गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि एक तरफ जहां संगठन प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और संगठन महामंत्री सुहास भगत के नेतृत्व में मतदान केंद्र तक कार्यकर्ताओं को सक्रिय बनाने की रणनीति पर काम कर रही थी तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रचार की कमान संभाले हुए थे।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा मुख्यमंत्री चौहान और पूर्व केंद्रीय मंत्री सिंधिया तीन ऐसे चेहरे थे जिन पर प्रचार की पूरी कमान थी और उन्होंने राज्य की सभी 28 सीटों पर पहुंचकर पार्टी के उम्मीदवार के लिए वोट मांगे।

एक तरफ जहां प्रमुख नेताओं को पार्टी ने सक्रिय किया था तो वहीं संगठन से जुड़े पदाधिकारियों को अलग-अलग विधानसभाओं की जिम्मेदारी दी गई। इतना ही नहीं मंत्रियों को भी विधानसभा क्षेत्रों में तैनात किया गया था साथ ही उनसे यह भी कहा गया था कि जिस मंत्री के इलाके में पार्टी हारेगी उसे मंत्री पद तक खोना पड़ सकता है। इसी का नतीजा रहा कि मंत्रियों ने भी किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी।


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने एक रणनीति के तहत चुनाव लड़ा। सरकार जनहित के फैसले लेते हुए किसान, महिलाओं, आदिवासियों से लेकर अन्य हितग्राहियों के खाते में योजनाओं की रकम भेजती रही तो दूसरी ओर प्रचार का अभियान पूरी तेजी से चला। भाजपा में टीम भावना का समन्वय नजर आया-सत्ता और संगठन के समन्वय ने कार्यकर्ताओं में भी जोश बनाए रखा परिणाम स्वरूप भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई है।

–आईएएनएस

एसएनपी/एएनएम

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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