उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 15 जनवरी से कुंभ मेला आरंभ होने जा रहा है। अध्यात्म और संस्कृति के इस समागम में 180 देशों से लोग पहुँच रहे हैं। मकर संक्राति के दिन पहला शाही स्नान होगा और संगम में डुबकी लगाने के लिए विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत पहुंच चुके हैं। प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्था और भगवाधारी साधुओं की भीड़ में जो एक खास व्यक्ति लोगों का ध्यान खींच रहे हैं, वो हैं मुस्लिम टोपी लगाए सफेद दाढ़ियों वाले मुल्ला जी। कुंभ में पहली बार आने वालों को ‘मुल्ला जी लाइट वाले’ का बोर्ड देखने में भी थोड़ा अजीब लग सकता है। लेकिन, यहां आने वाले साधुओं के लिए वह बेहद खास हैं। कई साधुओं की तो उनसे दोस्ती भी है।
दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले 76 वर्षीय महमूद की 1986 में जूना अखाड़ा के साधुओं से जान-पहचान हुई। जूना अखाड़ा नागा साधुओं का सबसे पुराना और सबसे बड़ा अखाड़ा है। उन्होंने महमूद को अपने तंबुओं के बाहर लाइट लगाने का काम दिया। तब से हर छठे साल वह 800 किलोमीटर का सफर तय कर प्रयागराज के संगम तट पर पहुंचते हैं और मेले में हिस्सा लेते हैं।
कुंभ की अपनी यात्रा के बारे में वह कहते हैं, ‘मैं एक इलेक्ट्रिशियन हूं। रात के वक्त आप आएंगे तो देखेंगे कि जितने इलाके में साधुओं का टेंट फैला है वह रंग-बिरंगी लाइटों से जगमग है। ये सब मैंने किया है।’
कुंभ ही नहीं मुजफ्फरनगर में जनमाष्टमी और मेरठ में नौचंडी मेले की लाइंटिंग भी महमूद ही करते हैं। वह कहते हैं, ‘मैं 1986 में हरिद्वार में पहले कुंभ में शामिल हुआ था। नासिक के अलावा मैं हर जगह कुंभ में जा चुका हूं। अब तो मुझे याद भी नहीं कि अब तक कितने कुंभ देख चुका हूं। हो सकता है आप जोड़ लें।’
जूना अखाड़ा के नागा बाबा संगम गिरि का टेंट कुंभ में महमूद के टेंट के पास लगा है। वह कहते हैं, ‘मैं जितने भी कुंभ में गया हूं वहां मैंने इन्हें देखा है। मुझे कभी उनसे उनका असली नाम पूछने की जरूरत नहीं लगी। हमारे लिए वह हमेशा मुल्ला जी रहेंगे… हमारे दोस्त।’
वह आगे कहते हैं, ‘हिंदुओं के लिए हम गुरु हैं, मुस्लिमों के लिए हम पीर हैं। वे (मुस्लिम) निराकार को मानते हैं और हम मूर्ति पूजा करते हैं। हमारे रास्ते अलग हो सकते हैं पर हम सबकी मंजिल एक ही है। इलाहाबाद तक पहुंचने के 25 अलग-अलग रास्ते हैं। रेलवे स्टेशन के लिए हर कोई अलग-अलग रूट पकड़ता है, लेकिन आखिर में सब स्टेशन ही पहुंचते हैं।’
साधुओं के सामने भी दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ता हूं
महमूद कहते हैं कि साधु उनके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करते हैं। वह कहते हैं कि जिस दिन यह सम्मान खत्म हो जाएगा वह उनका आखिरी कुंभ होगा। उन्होंने कहा, “बाबा मुझे बिल्कुल घर जैसा फील करवाते हैं। कई बार वे मुझे अपनी गद्दी पर भी बैठने के लिए कहते हैं, लेकिन मैं उनका इतना सम्मान करता हूं कि गद्दी पर नहीं बैठता। मैं इन साधुओं के सामने भी दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ता हूं।”
महमूद कहते हैं कि यदि साधुओं ने उनके साथ दूसरों की तरह व्यवहार किया होता तो संभवतः वह कुंभ नहीं आते। तीन दशकों में कुंभ उनकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। क्या वह अगले कुंभ में शामिल होंगे? इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं, ‘इंशाअल्लाह! अल्लाह ने चाहा तो मैं जरूर आऊंगा।’