नेहरू के आलोचक बौने कद के : नटवर सिंह (आईएएनएस साक्षात्कार-1)

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नई दिल्ली, 18 मई (आईएएनएस)| शेर बूढ़ा हो जाता है, मगर अपनी दहाड़ नहीं छोड़ता है, बल्कि वह अभी भी दहाड़ रहा है। राजनयिक, राजनेता, साहित्यकार नटवर सिंह की शख्सियत कुछ ऐसी ही है। दुनियाभर का सैर कर चुके नटवर सिंह के पास हमेशा कहने के लिए बहुत कुछ रहता है, इसीलिए वह हमेशा प्रासंगिक हैं।

जिंदगी के 90 वसंत देख चुके जाट नेता नटवर सिंह भरतपुर में पैदा हुए थे। आईएएनएस के साथ लंबी बातचीत में उन्होंने अपने आक्रामक अंदाज में कई मसलों पर बेबाक तरीके से अपनी बात रखी।


सफेद कुर्ता-पाजामा और नीली बंडी के अपने ट्रेडमार्क वेशभूषा में सिंह ने ढाई घंटे चली बातचीत में अत्यंत व्यवहार-कुशलता का परिचय दिया।

उन्होंने अपने व्यक्तित्व में राजस्थानी, हिंदुस्तानी और इंसान का संगम बताया, जिसमें कोई टकराव नहीं है।

जवाहरलाल नेहरू पर आपत्तिजनक व मिथ्यारोप पर हैरानी जताते हुए नटवर सिंह कहते हैं, “इस बात को दोहराना अपमानजनक है। मुझे मालूम है कि कश्मीर या चीन को लेकर उनसे गलतियां हुईं, लेकिन उस समय किसने गलतियां नहीं की थी।”


नटवर सिंह नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और यहां तक कि मनमोहन सिंह की सरकार में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर चुके हैं।

उन्होंने कहा, “एफडीआर (फैंकलिन डी. रूजवेल्ट), स्टालिन, चर्चिल, माओ, आप नाम गिनिए, सबसे गलतियां हुई थीं। नेहरू भारत के निर्माता थे। एक सुई नहीं बनती थी इस देश में, उस आदमी ने इस्पात संयंत्र, चिकित्सा संस्थान, अंतरिक्ष संगठन, आईआईटी सब कुछ बना कर दिया। उन्होंने इस देश के लिए जो किया, उसे देखिए। वह विश्वस्तरीय नेता और बौद्धिक महामानव थे। उनकी किताबों में अनोखी विषय-वस्तु पढ़ने को मिलती है। जिंदगी के 10 साल अंग्रेजों की जेल में बिताए। यह हास्यास्पद है कि बौने लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं। वह अशोक के बाद भारत में सर्वश्रेष्ठ (शासक) थे।”

इसके बाद उन्होंने कहा, “भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) और मोदी ने सरदार पटेल को अपना बना लिया। वह नेहरू की सरकार में उपप्रधानमंत्री थे। हां, उन दोनों में मतभेद था, लेकिन उन दोनों के लिए अखंड भारत की भलाई उन मतभेदों से काफी बड़ी थी। वे मानते थे कि भारत उन दोनों से बड़ा है।”

नटवर सिंह ने कहा, “गांधीजी की हत्या के बाद फरवरी 1948 में सरदार ने आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि उनके सारे बयान पूरी तरह सांप्रदायिक जहर से भरे थे, जिसके परिणामस्वरूप देश को गांधीजी की अनमोल जिंदगी का बलिदान करना पड़ा।”

उन्होंने कहा, “नेहरू की निंदा करके आप स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी केंद्रीय भूमिका को नहीं झुठला सकते हैं। क्या आडवाणी, अटलजी, हेडगेवार या गोलवलकर ने ब्रितानी जेलों में 10 साल की जिंदगी बिताई थी। लेकिन नेहरू और सरदार ने बिताई थी।”

उन्होंने कहा, “वाजपेयी 1957 में सांसद बने। वह बहुत अच्छे वक्ता थे और नेहरू की काफी आलोचना करते थे, लेकिन वीर व्यक्ति नेहरू के निधन पर अपने भाषण में विलख पड़ा था।”

नटवर सिंह को वंशवाद का कोपभाजन बनना पड़ा। खाद्य कार्यक्रम के लिए तेल पर विवादास्पद वोल्कर रिपोर्ट के बाद अक्टूबर 2005 में उन्होंने मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल से बतौर विदेशमंत्री इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद पाठक आयोग की रिपोर्ट में सिंह पर पद के दुरुपयोग का आरोप लगा।

उन पर आरोप था कि उन्होंने सद्दाम हुसैन के तेल मंत्री आमिर राशिद मोहम्मद अल-उबायदी से अपने रिश्तेदार अंदलीब सहगल का परिचय करवाया था।

वह बागी बन गए और उनके पुत्र जगत ने 2013 में भाजपा के टिकट पर राजस्थान में विधानसभा चुनाव लड़ा। इससे पहले वह 2003-08 के दौरान लक्ष्मणगढ़ से कांग्रेस के विधायक रहे थे।

अपने लंबे कॅरियर के अवसान में नटवर कहते हैं, “चीन को लेकर नेहरू और पटेल में गहरा मतभेद था। सरदार ने नेहरू की चीन के साथ गलत नीति को लेकर भला-बुरा कहते हुए सात नवंबर, 1950 को एक पत्र लिखा था। पांच सप्ताह बाद सरदार का निधन हो गया।”

उन्होंने कहा, “निस्संदेह, कालक्रम में यह मतभेद गहरा गया, लेकिन मैं यह बताना चाहूंगा कि 30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना के लिए जाने से पहले बिड़ला भवन में गांधीजी ने सरदार को बुलाकर लंबी बातचीत की थी। प्रार्थना के समय गोडसे ने उनको गोली मारकर उनकी हत्या कर दी, जिससे दुनिया में एक युग का अंत हो गया। इस घटना से पहले सरदार वहां से प्रस्थान कर चुके थे। जब खबर आई कि गांधीजी की हत्या कर दी गई है तो सरदार और नेहरू दोनों बिड़ला भवन पहुंचे और इस वेदना में एक-दूसरे के गले से लिपट गए। हम नहीं जानते हैं कि गांधीजी और सरदार के बीच बैठक में क्या बात हुई थी, लेकिन जाहिर है कि गांधीजी ने सरदार को मनाया था कि वह नेहरू के साथ मिलकर मैत्रीपूर्ण माहौल में काम करें। दोनों के बीच पत्र व्यवहार होता था, जिनमें दोनों इस बात पर जोर देते थे कि उनको अपने मतभेदों को भुलाकर एकसाथ मिलकर काम करना चाहिए।”

नटवर सिंह कहते हैं कि दोनों दूसरे दर्जे के नहीं, बल्कि असाधारण व्यक्ति थे और मतभेदों के बावजूद राष्ट्र की भलाई उनका मुख्य मकसद था।

उन्होंने कहा, “मुझे बताइए कि ये वैभवशाली लोग राष्ट्रवादी आंदोलन के कड़ाह में क्यों पैर फंसाते? गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना सभी अंग्रेजीदां थे, इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई कर चुके वकील थे।”

उन्होंने कहा कि नेहरू और पटेल गांधी के चेले क्यों बन गए? कौन-सा चुंबकीय गुण था, जिससे वे आकर्षित हुए?

उन्होंने कहा कि गांधीजी पाइड पाइपर की तरह थे। उनकी टीम के बारे में सोचिए, जिसमें मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास, राजेंद्र प्रसाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, सरदार, नेहरू, सी. राजगोपालाचारी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे वक्ता और बुद्धिमान व्यक्ति शामिल थे। वे सभी महान नेता थे।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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