नॉर्थ बिहार लिबरेशन आर्मी: बाहुबली शंकर सिंह और जातीय राजनीति का सफर

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नॉर्थ बिहार लिबरेशन आर्मी: बाहुबली शंकर सिंह और जातीय राजनीति का सफर

बाहुबली शंकर सिंह और नॉर्थ बिहार लिबरेशन आर्मी का उदय

नॉर्थ बिहार लिबरेशन आर्मी, नब्बे के दशक के दौरान उत्तर बिहार में यादव बाहुबलियों के मुकाबले के लिए राजपूतों द्वारा पूर्णिया में बनाई गई एक सेना थी। इस संगठन के मुखिया शंकर सिंह थे, जिनका प्रभाव उस दौर में काफी था। इस सेना के संस्थापकों में टोला सिंह और मधुसूदन सिंह उर्फ बूटन सिंह शामिल थे। बूटन सिंह बाद में नीतीश कुमार की समता पार्टी से जुड़े, लेकिन उनकी हत्या हो गई। उनकी पत्नी, लेसी सिंह, बाद में धमदाहा से विधायक बनीं और वर्तमान में मंत्री भी हैं।


शंकर सिंह का नेतृत्व

नॉर्थ बिहार लिबरेशन आर्मी की कमान शंकर सिंह ने संभाली। इस गिरोह में राजपूतों के साथ-साथ यादव जाति के भी लोग शामिल थे। यह नब्बे के दशक से पहले की बात है। लेकिन राजनीति में लालू यादव के उभार के बाद जातीय गोलबंदी में बदलाव हुआ। पूर्णिया में जातीय राजनीति इस तरह से बनी कि जाति के हिसाब से गिरोह बने।

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पूर्णिया की जातीय राजनीति

पूर्णिया में पप्पू यादव को पिछड़ी जाति का समर्थन मिला, जबकि शंकर सिंह को राजपूतों का और अवधेश मंडल को अति पिछड़ी जाति का समर्थन प्राप्त था। माना जाता है कि पूर्णिया के पूर्व सांसद पप्पू सिंह का समर्थन इस आर्मी को मिलता रहा है। पप्पू सिंह पूर्णिया से बीजेपी के सांसद रहे हैं और वर्तमान में जन सुराज के साथ हैं।


शंकर सिंह का राजनीतिक सफर

शंकर सिंह ने जब राजनीति में कदम रखा, तो उन्होंने लोक जन शक्ति पार्टी का दामन थामा और 2005 में विधायक बने। इसके बाद वे लगभग हर चुनाव में उतरे, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस बार भी उनका कार्यकाल डेढ़ साल का रहेगा। चुनाव से पहले उन्होंने लोजपा से इस्तीफा दिया था।

अवधेश मंडल और शंकर सिंह की अदावत

शंकर सिंह की जिस अवधेश मंडल से अदावत रही है, वह अवधेश मंडल इलाके में फैजान गिरोह का मुखिया था। राजनीति में उसने अपनी पत्नी बीमा भारती को आगे किया, जो पांच बार विधायक बनीं। उस दौर में ये सेनाएं घोड़ों पर गैंगवॉर करती थीं और इन गिरोहों का असर पूर्णिया, कोसी और भागलपुर तक फैला था। शंकर सिंह की पत्नी जिला परिषद की अध्यक्ष रहीं।

निष्कर्ष

नॉर्थ बिहार लिबरेशन आर्मी का इतिहास और बाहुबली शंकर सिंह का सफर, बिहार की जातीय राजनीति के कई पहलुओं को उजागर करता है। यह संगठन और इसके नेता, अपने समय में काफी प्रभावशाली थे और उन्होंने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। अब देखना होगा कि भविष्य में इस संगठन और इसके नेताओं का क्या भूमिका रहती है।

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