पाकिस्तान की चिंता, अमेरिका की रुचि कश्मीर के बजाए अफगानिस्तान मामले में

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इस्लामाबाद, 23 सितम्बर (आईएएनएस)| एक ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को भारत सरकार द्वारा वापस लेने के फैसले से बौखलाया पाकिस्तान कश्मीर मामले पर पूरी ताकत से अपने हाथ-पैर मार रहा है, अफगानिस्तान को लेकर अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता का खत्म होना उसके लिए एक तगड़े झटके के समान आया है। पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के लिए अमेरिका और तालिबान के बीच की वार्ता का रद्द होना एक बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि अब उसे अमेरिका के और अधिक दबाव का सामना करना पड़ेगा जिसकी रुचि पाकिस्तान के मुद्दे कश्मीर से अधिक अफगानिस्तान के युद्ध के जंजाल से खुद को निकालने की है।

पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में शांति का कार्ड कई बार खेला। तालिबान पर उसका असर माना जाता है और माना जाता है कि तालिबान को शांति वार्ता के मेज पर लाने में उसकी भूमिका रही है। इसे अमेरिका ने भी माना था और इस माहौल में पाकिस्तान ने यह धमकी देने से परहेज नहीं किया कि अगर कश्मीर पर उसकी नहीं सुनी जाएगी तो वह अफगानिस्तान में अपनी खास भूमिका से हाथ खींच लेगा।


लेकिन, अब अमेरिका और तालिबान के बीच शांति वार्ता के ध्वस्त होने के बाद पाकिस्तान के हाथ से यह ट्रंप कार्ड जाता दिख रहा है और विश्लेषकों का मानना है कि इसका असर उसकी कश्मीर मुहिम पर बुरा पड़ेगा।

कश्मीर में आतंकवाद मामलों की विशेषज्ञ मायरा मैकडोनाल्ड ने कहा कि जब तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान के मामले को एक नतीजे तक नहीं पहुंचाता, उसके लिए कश्मीर पर भारतीय कार्रवाइयों का जवाब दे पाना मुश्किल होगा। ऐसे में वह उलझकर रह गया है।

अंतर्राष्ट्रीय मामलों के पाकिस्तानी विश्लेषक जाहिद हुसैन ने कहा कि पाकिस्तान ने इन वार्ताओं (अमेरिका-तालिबान वार्ता) में अपना बहुत प्रयास लगाया है। इसका अचानक इस तरह खत्म होना इसके लिए एक तगड़ा झटका है।


वार्ता के टूटने के बाद एक बार फिर अमेरिका का पूरा दबाव पाकिस्तान पर आना तय है जिसकी रुचि पाकिस्तान के एजेंडे कश्मीर के बजाए अपने एजेंडे अफगानिस्तान में है। अफगानिस्तान और अमेरिका लंबे समय से आरोप लगाते रहे हैं कि पाकिस्तान तालिबान आतंकियों को पनाह देता है जिससे पाकिस्तान इनकार करता रहा है।

सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ रहीमुल्ला यूसुफजई ने कहा कि वार्ता टूटने के बाद अब इसके पूरे आसार हैं कि अमेरिका तालिबान पर लगाम लगाने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाएगा। यह एक बार फिर पहले की ही तरह पाकिस्तान के लिए ‘कुछ और प्रयास करो’ वाली स्थिति बन गई है।

हालांकि पाकिस्तानी सैन्य विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका मानती हैं कि पाकिस्तान के पास अभी भी खेलने के लिए पत्ते बचे हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान तालिबान से बातचीत कर उन्हें मनाने का प्रयास करने के कई साधन रखता है।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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