पेइचिंग में शिनच्यांग के गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासतों का प्रदर्शन

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 बीजिंग, 4 अगस्त (आईएएनएस)| शिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश चीन के पश्चिमोत्तर में स्थित है, जहां कई जातियां बसी हुई हैं और विविधतापूर्ण संस्कृतियां हैं।

 हाल में शिनच्यांग के कुछ गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की प्रदर्शनी चीनी राज्य परिषद के सूचना कार्यालय के न्यूज ब्रीफिंग हॉल में लगाई गई, जिसमें शिनच्यांग की रंगबिरंगी जातीय संस्कृतियों को दर्शाया गया। महाकाव्य ‘मानस’ शिनच्यांग में किरगिज जाति का लोक साहित्य है, जिसमें बहादुर मानस और उसकी सात पीढ़ी संतानों के किरगिज प्रजा को लेकर बाहरी आक्रमणकारी दुश्मनों और शक्तियों के साथ संघर्ष की कहानी सुनाई जाती है। किरगिज जाति का महाकाव्य ‘मानस’, तिब्बती जाति का महाकाव्य ‘केसार’ और मंगोलिया जाति का महाकाव्य ‘बंगेल’ चीनी अल्पसंख्यक जातियों के सुप्रसिद्ध तीन महाकाव्य हैं। साल 2006 में महाकाव्य ‘मानस’ को चीनी राष्ट्रीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल किया गया।


मौजूदा प्रदर्शनी में शिनच्यांग के किजि़ल्सू किरगिज स्वायत्त प्रिफेक्च र की ऊछ्या कांउटी में बलिमति नुजकली ने अपने गुरु के साथ महाकाव्य मानस का कुछ भाग गाकर सुनाया। वर्तमान में बलिमति नुजकली मीडिल स्कूल में पढ़ता है, लेकिन वह अपने गुरु से तीन साल में महाकाव्य मानस का गायन सीख चुका है। उसने कहा कि अपनी जातीय संस्कृति को विरासत में लेते हुए आगे विकास करना चाहता है। इस तरह उसे जरूर अच्छी तरह सीखना चाहिए।

वेवुर जाति के सांगफी कागज स्थानीय शहतूत पेड़ की छाल से बनाया गया एक किस्म की कागज है, जिसे साल 2006 में राष्ट्र स्तरीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल किया गया। शिनच्यांग के भीतर और मध्य व पश्चिमी एशियाई क्षेत्र में कई प्राचीन सांस्कृतिक पुरातात्विक खोज में बड़ी मात्रा में सांगफी कागज वाले ग्रंथों का पता लगाया गया।

लम्बे समय में सांगफी कागज के प्रसार कार्य में जुटे शिनच्यांग राष्ट्रीय पेंटिंग इंस्टीट्यूट के महासचिव वेइ पाओशान ने कहा कि सांगफी कागज की तीन विशेषताएं हैं, जिसने ऐतिहासिक संस्कृति के संरक्षण के लिए बड़ा योगदान दिया है।


वेइ पाओशान के मुताबिक, प्राचीन काल में इस प्रकार के कागज का प्रयोग मुख्य तौर पर हस्तलिपि, चित्र और दरबारी दस्तावेज में प्रयोग किया जाता था। उसकी तीन सबसे बड़ी विशेषताएं हैं। पहला, इस कागज पर लिपि लिखने और चित्रित करने के हजार वर्ष बाद भी रंग नहीं उड़ता। दूसरा, यह कागज कीड़ों से नष्ट नहीं होता। तीसरा, इस कागज में नमी नहीं आती और फफूंदी भी नहीं लगती। इस वजह से इतिहास में बड़ी मात्रा में मूल्यवान हस्तलिपि और चित्र इस कागज से अच्छी तरह सुरक्षित हैं। वह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास की साक्षी बन गई है।

कजाक जाति की चानशओ कढ़ाई और बूशओ कढ़ाई का प्रयोग मुख्य तौर पर पर्दे, रजाई, वस्त्र, टोपी, जूते आदि वस्तुओं में किया जाता है। साल 2008 में इसे राष्ट्र स्तरीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल किया गया। शिनच्यांग के थाछंग क्षेत्र में अर्मिन काउंटी की नुरदाना एडलरहन ने 9 साल की उम्र से ही चानशओ कढ़ाई सीखनी शुरू की थी। उसने कहा कि कजाक जाति की चानशओ कढाई इस जाति के घुमंतू जीवन से संबंधित है। वह अपने पूर्वजों के इस तकनीक का अच्छी तरह उत्तराधिकार करेगी।

(साभार-चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पेइचिंग)

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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