यूपी: कोरोना से ज़िंदगी की जंग हारने वाली मंत्री कमला रानी पार्षद से बनीं थी सांसद, ऐसा रहा राजनीतिक सफर

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यूपी: कोरोना से ज़िंदगी की जंग हारने वाली मंत्री कमला रानी पार्षद से बनीं थी सांसद, ऐसा रहा राजनीतिक सफर

उत्तर प्रदेश की कैबिनेट मंत्री और कानपुर के घाटमपुर से विधायक कमला रानी वरुण (Kamla Rani Varun) की कोरोना वायरस संक्रमण से मौत हो गई। बीते 18 जुलाई को कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उन्हें लखनऊ पीजीआई में भर्ती कराया गया था। रविवार को इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। उत्तर प्रदेश में किसी मंत्री की कोरोना संक्रमण से यह पहली मौत है। कमला रानी वरुण योगी सरकार में प्राविधिक शिक्षा मंत्री थीं। आइये जानते हैं कमला रानी वरुण के राजनीतिक सफर के बारे में…

कमलरानी वरुण का जन्म लखनऊ में 3 मई 1958 को हुआ था। समाजशास्त्र से एमए कमलरानी की शादी एलआईसी में प्रशासनिक अधिकारी रहे किशन लाल वरुण से हुई थी। किशन लाल वरुण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित स्वयंसेवक भी थे। बहू बनकर कानपुर आईं कमलरानी ने पहली बार 1977 के चुनाव में बूथ पर मतदाता पर्ची काटने के लिए बतौर राजनीतिक कार्यकर्ता अपने करियर की शुरुआत की।


निगम पार्षद से शुरू हुआ सफर

उनके पति किशनलाल ने प्रोत्साहित किया तो वह आरएसएस द्वारा मलिन बस्तियों में संचालित सेवा भारती के सेवा केंद्र में बच्चों को शिक्षा और गरीब महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और बुनाई का प्रशिक्षण देने लगीं। साल 1989 में बीजेपी ने उन्हें कानपुर शहर के द्वारिकापुरी वार्ड से पार्षद का टिकट दिया। चुनाव जीत कर नगर निगम पहुंची कमलरानी अगले चुनाव यानि 1995 में भी उसी वार्ड से दोबारा पार्षद निर्वाचित हुईं।

साल 1996 में बनीं लोकसभा सांसद

भाजपा ने 1996 में उन्हें उस घाटमपुर (सुरक्षित) संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतारा और कमलरानी अप्रत्याशित जीत हासिल कर लोकसभा पहुंची। साल 1998 में जब फिर से चुनाव हुए तो कमलारानी ने फिर इसी सीट से जीत दर्ज की। लेकिन, साल 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्हें महज 585 मतों के अंतराल से बसपा प्रत्याशी प्यारेलाल संखवार के हाथों पराजय झेलनी पड़ी।

बतौर सांसद कमलरानी ने लेबर एंड वेलफेयर, उद्योग, महिला सशक्तिकरण, राजभाषा व पर्यटन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समितियों में रहकर काम किया। साल 2012 में पार्टी ने उन्हें रसूलाबाद (कानपुर देहात) से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वह जीत नहीं सकी। साल 2015 में पति की मृत्यु के बाद 2017 में वह घाटमपुर सीट से भाजपा की विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंची थीं।



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