प्रशांत किशोर: बिहार की राजनीति में नया विकल्प

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प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीति में नए विकल्प के रूप में उभरने की तैयारी कर ली है। उनकी योजना अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार उतारकर सत्ता में आने की है। इसके लिए प्रशांत किशोर अपने संगठन जन सुराज को राजनीतिक पार्टी में बदलने जा रहे हैं। इस नई पार्टी का राजनीतिक स्वरूप दो अक्टूबर को सामने आएगा।

सक्रिय कार्यकर्ताओं की तैयारी


फिलहाल, जो सक्रिय कार्यकर्ता और नेता जन सुराज के साथ जुड़े हुए हैं, उन्हें ट्रेनिंग दी जा रही है। कल पटना में एक बड़ा कार्यक्रम कार्यशाला का आयोजन किया गया है, जिसमें प्रदेश भर के समर्थक और संगठन से जुड़े लोग बड़ी संख्या में शामिल होंगे। पिछले महीने पटना में हुई एक बैठक में कई प्रमुख हस्तियों ने पार्टी का दामन थामा था, जिनमें आनंद मिश्रा भी शामिल हैं।

जमीनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश

प्रशांत किशोर पिछले दो सालों से गांव-गांव जाकर लोगों से संवाद कर रहे हैं और पदयात्रा के जरिए अपनी जमीनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। अब तक वे करीब 2700 गांवों की पदयात्रा कर चुके हैं, जिसमें चंपारण से लेकर तिरहुत, मिथिला, कोसी, और मुंगेर प्रमंडल के गांव शामिल हैं। उनका टारगेट चुनाव तक पूरा बिहार घूमने का है, हालांकि यह लक्ष्य पूरा करना कठिन लग रहा है। फिर भी, यह कहना गलत नहीं होगा कि वे बिहार में इकलौते नेता हैं जो गांव-गांव जाकर लोगों की समस्याएं सुन रहे हैं और स्थानीय परेशानियों को समझ रहे हैं।


उत्तर बिहार को चुना केंद्र बिंदु

प्रशांत किशोर ने अपनी सियासी लॉन्चिंग के लिए उत्तर बिहार को चुना है, जो एक बहुत पिछड़ा इलाका है। यहां की बाढ़ और सुखाड़ की समस्या, पुरुषों का रोजगार के लिए पलायन और बुनियादी ढांचे की कमी उन्हें अपनी राजनीति के केंद्र में रख रहे हैं। पीके न केवल इन मुद्दों को उजागर कर रहे हैं, बल्कि उनके समाधान का दावा भी कर रहे हैं।

राजनीतिक महत्व

उत्तर बिहार को केंद्र बनाना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नीतीश कुमार के कार्यकाल में विकास का केंद्र मध्य बिहार खासकर पटना के आसपास रहा है। उत्तर बिहार को लगता है कि उनके साथ सौतेला व्यवहार हुआ है। इस क्षेत्र ने हमेशा सत्ता परिवर्तन का नेतृत्व किया है। लालू यादव और रामविलास पासवान की सफलता में उत्तर बिहार का बड़ा योगदान रहा है। 2005 में नीतीश कुमार को भी इसी क्षेत्र से बड़ी सफलता मिली थी।

नई टीम और नई ऊर्जा

पीके के कार्यक्रमों में महिलाओं की अच्छी-खासी संख्या रहती है और उनकी यात्रा सुबह से शाम तक चलती है। नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से वे विकल्प पेश कर रहे हैं। उनके पास नई टीम है और एनडीए और इंडिया में जो जगह नहीं बना पा रहे, उन्हें एक नया मंच मिल रहा है। पीके का सोशल मीडिया नेटवर्क तगड़ा है और पैसे की कमी नहीं है।

चुनौतियां और संभावनाएं

हालांकि, अनुभव की कमी एक चुनौती है, लेकिन पीके की पहचान और उनकी रणनीति उन्हें एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश कर रही है। राजद की एक चिट्ठी पिछले दिनों वायरल हुई थी, जिससे पता चलता है कि मुस्लिम और दलित वोट बैंक में पीके की पकड़ मजबूत हो रही है। ब्राह्मण होने के नाते, उन्हें उस समुदाय में लाभ मिलने की संभावना है, जबकि पिछड़ी जातियों में प्रभाव जमाना एक चुनौती होगी।

कुल मिलाकर, प्रशांत किशोर का आगामी साल का डेब्यू विरोधियों के लिए चिंता का विषय बन सकता है। उनके नए दृष्टिकोण और जमीनी स्तर पर काम करने की रणनीति बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला सकती है।

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