प्रकृति की अराधना के महापर्व छठ पर कोरोना का साया

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नई दिल्ली, 19 नवंबर (आईएएनएस)। प्रकृति की अराधना का महापर्व छठ भी इस बार कोरोना का साया बना रहा, जबकि यह पर्व पर्यावरण को स्वच्छ बनाने रखने के साथ-साथ सेहतमंद रहने संदेश देता है। यही नहीं, यह पर्व सामाजिक सहयोग और सौहार्द की भी मिसाल पेश करता है, क्योंकि त्योहार से पहले लोग सामूहिक रूप से नदी, तालाब, पोखर आदि जलाशयों की सफाई करते हैं।

मगर, कोरोना महामारी की विवशता के कारण देश की राजधानी दिल्ली में सार्वजनिक स्थलों पर छठ मनाने की अनुमति नहीं दी गई है।


छठ पर्व जलाशयों में भी मनाया जाता है और पूरे देश में नदी-तालाबों व अन्य जलाशयों में इस पर्व पर भारी जन-समूह एकत्रित होता है, इसलिए इस पर्व के उल्लास पर इस बार कोरोना का साया बना हुआ है।

मिथिला लोक फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने कहा कि छठ का अनुष्ठान घर के बाहर ही होता है, लेकिन कोरोना महामारी को लेकर इस पर्व का विगत वर्षो की तरह नहीं रहा।

डॉ. झा ने बताया कि प्राचीनकाल में छठ पर्व मनाए जाने का साक्ष्य ऋग्वेद में मिलता है और छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक या लोकजीवन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण और जीवनशैली के बीच के संबंधों को भी रेखांकित करता है।


छठ पर्व पूजन-सामग्री व प्रसाद में भी प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं की प्रधानता होती है, जिनमें मौसमी फलों, सब्जियों व कंद-मूलों की प्रचुरता होती है। डॉक्टर बताते हैं कि इस पर्व पर प्रसाद में जो भी मौसमी फल, सब्जी, कंद-मूल आदि चढ़ाए जाते हैं, वे सभी स्वास्थ्यवर्धक होते हैं।

कोरोना-योद्धा डॉ. गोपाल झा ने आईएएनएस को बताया कि छठ पर्व की डाली पर प्रसाद में हल्दी, अदरख, नींबू, शकरकंद समेत कई तरह के कंद-मूल और मौसमी सब्जी व फल चढ़ाए जाते हैं जो अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक और इम्यूनिटी बूस्टर होते हैं।

दिल्ली के मौजपुर स्थित मुहल्ला क्लिनिक में कार्यरत डॉ. गोपाल झा ने बताया कि कोरोना से लड़ने के लिए अच्छी इम्यूनिटी जरूरी है। गोपाल झा दिल्ली में सबसे पहले कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले डॉक्टर हैं। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि जिनकी इम्यूनिटी अच्छी होगी, उन पर इस बीमारी का खतरा कम होगा। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ-साथ स्वच्छता भी जरूरी है।

छठ पूजा अब न केवल बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में होती है, बल्कि देश के उन सभी प्रांतों में छठ मनाया जाने लगा है, जहां प्रवासी पूर्वाचली स्थायी तौर पर निवास करते हैं। विदेशों में प्रवासी पूर्वाचली समुदाय छठ त्योहार मनाते हैं। मुंबई से लेकर मॉरीशस और अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया हर जगह छठ के घाट सजते हैं और व्रती सूर्यदेव को अघ्र्य देते हैं।

डॉ. बीरबल झा ने कहा, आमतौर पर ऐसा कहा जाता है कि कोई डूबते सूर्य को प्रणाम नहीं करता, लेकिन छठ ही एक ऐसा पर्व है, जिसमें लोग सिर्फ उगते सूर्य को ही अघ्र्य नहीं देते, बल्कि वे डूबते सूर्य को भी अघ्र्य देते हैं।

कार्तिक महीने की षष्ठी तिथि को सूर्योपासना के इस महापर्व में डूबते सूर्य को सांध्यअघ्र्य दिया जाता है, जबकि अगले दिन सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को प्रात:अघ्र्य दिया जाता है। इससे पहले पंचमी को खरना और चतुर्थी तिथि को व्रती के लिए नहाय-खाय की परंपरा है।

इस बार गुरुवार को खरना है। इससे पहले, बुधवार को व्रतियों के लिए नहाय-खाय का दिन रहा। अगले दिन शुक्रवार को सांध्यअघ्र्य और शनिवार को प्रात:अघ्र्य होगा।

–आईएएनएस

पीएमजे/एसजीके

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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