राम प्रसाद बिस्मिल एक महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि, अनुवादक , बहुभाषाविद् और साहित्यकार थे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका अहम रही। आजादी के लिए महज 30 साल की उम्र में उन्हें फांसी दे दी गई थी। आज भारत के इस वीर पुत्र की जन्मतिथि है।
काकोरी कांड से हिल गई थी ब्रिटिश सरकार
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। बिस्मिल एक बेहतरीन कवि थे। साथ ही उनके दिल में स्वतंत्रता के प्रति काफी जोश था। उन्होंने अपने जीवन काल में आजादी के लिए कई पुस्तकें और कविताएं लिखी और उन्हें खुद ही प्रकाशित भी किया। लेकिन उन सभी पुस्तकों को ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था। बिस्मिल ने ‘मैनपुरी कांड’ और ‘काकोरी कांड’ को अंजाम देकर अंग्रेजी साम्राज्य को हिला दिया था। काकोरी कांड में शामिल होने की वजह से अंग्रेजों ने राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई थी। फांसी के फंदे पर लटकते हुए उन्होंने ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ के कुछ शेर पढ़े और हंसते- हंसते आजादी के लिए फांसी के फंदे पर लटक गए।
‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ वाले बिस्मिल
बिस्मिल ने अपने छोटे से जीवन में बहुत सी रचनायें लिखी, जो सीधा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ होती थी। कविता ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ कवि बिस्मिल अज़ीमाबादी की रचना है, लेकिन इसे आज भी राम प्रसाद बिस्मिल के नाम से ही याद किया जाता है। ‘बिस्मिल’ उपनाम के अतिरिक्त वह ‘राम’ और ‘अज्ञात’ के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ‘मिट गया जब मिटने वाला’ राम प्रसाद बिस्मिल की आखिरी रचना थी। उन्होंने देश प्रेम में कई कविताएं लिखी। उनकी कुछ प्रमुख कविताएं आप भी पढ़िए।
राम प्रसाद बिस्मिल की प्रमुख कविताएं
सरफ़रोशी की तमन्ना
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।
करता नहीं क्यों दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूं मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है।
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है।
यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून,
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है।
हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है।
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम,
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है।
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज,
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है।
ऐ मातृभूमि तेरी जय हो
ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो,
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो।
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में,
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो।
तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो,
तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो।
वह भक्ति दे कि ‘बिस्मिल’ सुख में तुझे न भूले,
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो।
कुछ अशआर
इलाही ख़ैर वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं जो हम फरियाद करते हैं।
ये कह कहकर बसर की उम्र हमने क़ैदे उल्फत में,
वो अब आज़ाद करते हैं वो अब आज़ाद करते हैं।
सितम ऐसा नहीँ देखा जफ़ा ऐसी नहीँ देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं जो हम फरियाद करते हैं।
मिट गया जब मिटने वाला
मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या,
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या।
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या।
ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या।
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या।
आख़िरी शब दीद के काबिल थी ‘बिस्मिल’ की तड़प,
सुबह- दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या।