देश के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक रामविलास पासवान का आज निधन हो गया है। राजनीति में करीब 50 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले पासवान के कद का कोई दूसरा नेता मिलना आसान नहीं है। राजनीति की दुनिया में पासवान को मौसम विज्ञानी नेता के नाम से जाना जाता हैं।
दरअसल पासवान लगातार पिछली तीन सरकारों में मंत्री रहे हैं। फिर चाहे सरकार बीजेपी को हो या फिर कांग्रेस की। पासवान पर सियासी दुनिया में एक कहावत बिलकुल फिट बैठती है कि राजनीति में हमेशा के लिए न कोई दोस्त होता और नहीं दुश्मन। यहीं वजह है कि पासवान ने सभी के साथ बेहतर रिश्ते बनाए हैं और चुनाव से पहले माहौल भांपने की उनकी कला में उनसे माहिर कोई दूसरा नेता नहीं हुआ।
हालांकि, उनका राजनीतिक सफर इतना आसान नहीं रहा है। आज से तकरीबन 51 साल पहले महज 22 साल की उम्र में सिविल सर्विस एग्जाम पास कर जब पासवान बिहार के खगड़िया में अपने शहरबन्नी गांव पहुंचे थे, तो उन्हें चौराहे पर ही भीड़ दिखी, जो एक दलित व्यक्ति को 150 रुपए न लौटाने के लिए पीट रही थी।
पासवान ने सबसे पहले उस व्यक्ति को भीड़ से बचाया और फिर जिस आदमी ने दलित पर पैसे न लौटाने का आरोप लगाया, उसकी अकाउंट बुक को ही फाड़ दिया। इस घटना के बाद पासवान अपने क्षेत्र के ऐसे नायक बन गए जिसका इंतजार लोग बरसों से कर रहे थे।
इस वाकये के बाद स्थानीय लोगों ने पासवान को चुनाव लड़ने के लिए मनाया, तो उन्होंने हामी भर दी। इसके बाद वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से अलोली सीट से उपचुनाव लड़े। यह उनका पहला चुनाव था और इसमें उन्होंने कांग्रेस के बडे़ नेता को 700 वोटों से हरा दिया। बस यहीं से शुरू हुआ रामविलास पासवान का ऐसा राजनीतिक करियर, जिसके बाद उन्होंने कभी पलटकर वापस नहीं देखा।
पिछले 50 सालों में 9 बार सांसद रह चुके पासवान ने हमेशा मंझे हुए राजनैतिक खिलाड़ी की तरह सही कदम उठाए, जिसकी वजह से वे कई सरकारों के साथ रहे। रामविलास पासवान के नाम एक गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है। वे हाजीपुर से 1977 में 4.25 लाख वोटों से जीते थे। 1989 में उन्होंने फिर 5.05 लाख वोटों से जीतकर अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया था।
किस तरह शुरू हुआ रामविलास पासवान का राजनीतिक सफ़र
रामविलास पासवान के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 के दशक में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर हुई। आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनावों से वह अचानक से तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने हाजीपुर सीट पर चार लाख मतों के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की।
1989 में जीत के बाद वह वीपी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शाउन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। एक दशक के भीतर ही वह एचडी देवगौडा और आईके गुजराल की सरकारों में रेल मंत्री का पद भी संभाला। 1990 के दशक में जिस ‘जनता दल’ धड़े से पासवान जुड़े थे, उसने बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का साथ दिया और वह संचार मंत्री बनाए गए।
इसके बाद में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में वह कोयला मंत्री के पद पर भी आसीन रहे। बाबू जगजीवन राम के बाद देश में बड़े दलित नेता के तौर पर पहचान बनाने के लिए उन्होंने आगे चलकर अपनी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की। वह 2002 में गुजरात दंगे के बाद विरोध में राजग से बाहर निकल गए और कांग्रेस का साथ दिया।
वह मनमोहन सिंह की सरकार में रसायन एवं उर्वरक मंत्री नियुक्त किए गए। इस दौरान अपने दो साल के कार्यकाल में कांग्रेस के साथ उनके रिश्तों में तब दूरी आ गई जब 2009 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की हार के बाद उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। दरअसल उस समय पासवान अपने गढ़ हाजीपुर में ही हार गए थे।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा ने पासवान का खुले दिल से स्वागत किया और बिहार में उन्हें लड़ने के लिए सात सीटें दी। लोजपा ने इन चुनावों में छह सीटों पर जीत दर्ज की। पासवान, उनके बेटे चिराग और भाई रामचंद्र को भी जीत मिली थी।
एक नज़र पासवान के राजनीतिक सफर पर-
– 9 बार लोकसभा सदस्य बने।
– 1 बार राज्यसभा सदस्य चुने गए।
– 05 बार केन्द्र में मंत्री बन चुके है।
– 1969- पहली बार विधायक चुने गए ।
– 1977 में पहली बार रिकॉर्ड वोट से लोकसभा चुनाव जीते।
– 1977, 1980, 1989, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में हाजीपुर लोकसभा लोकसभा चुनाव भी जीते।
– वर्ष 1999 में रोसड़ा संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीते।
– 2010 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बने।
केन्द्रीय मंत्री
– 1989 में पहली बार केन्द्रीय श्रम मंत्री
– 1996 में रेल मंत्री
– 1999 में संचार मंत्री
– 2002 में कोयला मंत्री
– 2014 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री