परीक्षा में कम मार्क्स लाने वालों के लिए भी हैं कई अवसर, बस इन सुधारों की है जरूरत

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Andhra Pradesh: साल भर के अंदर 2 लाख से भी ज्यादा छात्रों ने करवाया प्राइवेट से सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर

बढ़ती प्रतियोगिता के इस दौर में अक्सर किसी की प्रतिभा को उसके द्वारा प्राप्त किए गए अंको के आधार पर नापा जाता है। जो जितने ज्यादा मार्क्स लाया वो उतना प्रतिभाशाली माना जाता है। ऐसे में अक्सर वो छात्र परेशान हो नजर आते हैं, जो परीक्षा में ज्यादा अच्छे मार्क्स नहीं ला पाते।

प्रतिभा का आकलन हो या लोगों द्वारा सराहना या फिर कॉलेज में एडमिशन की बात हो, हमेशा उन छात्रों को फायदा होता है जिन्होंने अच्छे मार्क्स प्राप्त किए हों। यह बात एकदम सच है कि सफलता के लिए शिक्षा अति आवश्यक है लेकिन इस केवल मार्क्स के आधार पर किसी की प्रतिभा को मांपना भी सही नहीं होता। हम अक्सर भूल जाते हैं कि कुछ जाने- माने चेहरे जैसे कि क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर, देश के प्रथम नोबेल विजेता रवींद्रनाथ टैगोर, अल्बर्ट आइंस्टाइन आदि वो लोग हैं, जो शिक्षा में बेशक कुछ खास न कर पाएं हो। लेकिन उन्होनें अपनी प्रतिभा से दुनिया भर में अपना नाम बनाया।


इन उदाहरणों से समझा जाए तो परीक्षा में काम मार्क्स प्राप्त करने वाे छात्रों को निराश होने की बिलकुल जरूरत नहीं है। बस जरूरी है कि उन्हें अध्यापक और अभिभावकों द्वारा प्रेरित किया जाए। साथ ही सही मार्गदर्शन दिया जाए इसके लिए न सिर्फ अभिवावक और अध्यापकों को काम करने की जरूरत है, बल्कि देश की सरकार को भी इस क्षेत्र में कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। ताकि इन छात्रों के लिए नए अवसर बनाए जाएं।

आज हमारे देश में शिक्षा की नीति को देखा जाए तो यह काफी हद तक केवल एक नंबर गेम बनकर रह गई है। इसमें छात्रों को सिखाने की बजाए याद कराने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। इस 90% वाले गेम में काम मार्क्स प्राप्त करने वाले छात्र अक्सर निराशा का सामना करते हैं। उन्हें आगे एडमिशन के लिए धक्के खाने पड़ते हैं। अक्सर यह भी देखा जाता है कि बोर्ड की परीक्षा में 90% से अधिक नंबर लाने वाले छात्र अक्सर आगे की एंट्रेंस परीक्षाओं में पास नहीं हो पाते हैं। तो क्या फायदा है इन 90% मार्क्स का। दरअसल, बॉर्ड शिक्षा को बेहतर बनाने की बजाए अच्छे नंबर दिलाने की प्रतियोगिता में शामिल हो गए हैं। पिछले दशक में आइसीएससी (ICSC) और आइएससी (ISC)बोर्ड सर्वाधिक प्रतिशत मार्क्स देने वाले बॉर्ड थे। लेकिन अब ज्यादातर बोर्ड इस रेस में शामिल हो गए हैं। इससे छुटकारा पाने का एक उपाय है- एकल राष्ट्रीय बोर्ड जैसे NEET।

किन सुधारों की है जरूरत?

keyword है पूरे में से पूरे मार्क्स पाने का मुख्य कारण


छात्रों द्वारा पूरे नंबर पाने का मुख्य कारण कीवर्ड मार्किंग (Keyword) है। अगर पेपर चेक करने वाला आंसर शीट में तय keyword को पाता है तो पूरे नंबर दे देता है यहां ST (शॉर्ट आंसर टाइप) और एव्ववव (लांग आंसर टाइप) प्रश्नों की अहमियत खत्म हो गई है और इसलिए हमें कीवर्ड-आधारित मूल्यांकन से बाहर आना चाहिए। जरूरी है कि उत्तर की उपयुक्तता के आधार पर छात्र का मूल्यांकन करा जाए।

मूल्यांकन का सही तरीका ढूंढने की है आवश्यकता

आज के दौर में छात्र की योग्यता को उसकी मेमोरी पावर के आधार पर आंका जाता ,है जिसका मूल्यांकन तीन घंटे के अंतराल में कुछ प्रश्नों के उत्तर देने की प्रणाली के माध्यम से परीक्षण किया जाता है। जरूरत है कि मूल्यांकन को व्यापक बनाया जाए। इसमें स्कूल पाठ्यक्रम और प्रैक्टिकल, जीवन कौशल की दक्षता, व्यक्तिगत क्षमता और विशेष रुचि तथा सामुदायिक कार्य और सामाजिक प्रभाव को शामिल किया जाना चाहिए।

सीटें बढ़ाने की जरूरत

शिक्षा नीति में अंतिम बार सुधार वर्ष 1992 में हुआ था, जिसके बाद से हमारी आबादी 59 फीसद बढ़ गई है। इन 27 सालों में कोई सुधार नहीं हुआ, जबकि सीटों की मांग काफी बढ़ गयी है। सरकार को जरूरत है कि सामाजिक रूप से शिक्षा को बेहतर बनाया जाए और शिक्षा में भारी निवेश किया जाए।

टॉपर्स का चयन केवल मार्क्स के आधार पर न हो

टॉपर छात्रों और औसत अंक पाने वाले छात्रों का मूल्यांकन इस बात पर भी करना चाहिए कि उन्होंने राष्ट्र और समाज की भलाई के लिए क्या किया। इससे माता-पिता और छात्रों में ज्यादा अंकों को लेन की व्यग्रता को नियंत्रित किया जा सकेगा। इससे छात्रों और अभिभावकों का इससे जुड़ा तनाव कम होगा। इसी के साथ हमें प्रत्येक क्षेत्र में हर साल नौकरियों की अनुमानित संख्या को भी बताना होगा जिससे लोग केवल IIT, IIM और मेडिकल के लिए मारामारी न करें।

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